सबरीमाला में जीता धार्मिक अंधविश्वास और हार गया सुप्रीम कोर्ट

Update: 2018-10-23 06:17 GMT

17 अक्टूबर को भक्तों के खुला अयप्पा देवता का मंदिर सबरीमाला हो गया बंद, लेकिन मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाईं 10 से 50 वर्ष की लड़कियां—महिलाएं

जनज्वार। सुप्रीम कोर्ट के सख्त फैसले के बावजूद अंधविश्वासियों और हिंदू कट्टरपंथियों ने केरल के तिरुअनंतपुरम के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं का प्रवेश नहीं होने दिया। कल 22 अक्टूबर को शाम 7 बजे बंद हुुए सबरीमाला मंदिर में आखिरी तौर पर भी एक दलित महिला कार्यकर्ता ने प्रवेश की पूरी कोशिश की, मगर अंधभक्तों ने प्रवेश से पहले ही रोक लिया।

ऐसे में बड़ा सवाल केरल की सीपीएम की कन्म्युनिस्ट सरकार पर है, जो देश को कभी अंधविश्वास और धार्मिक पाखंड को समाप्त करने के नाम पर स्थापित हुई थी और आज वह इस तमाशे को होने देने की मुख्य भूमिका में है।

गौरतलब है कि शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत दी थी।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सबरीमाला मंदिर में 10 साल की बच्ची से लेकर 50 साल तक की कोई महिला प्रवेश नहीं कर सकी। मंदिर 17 अक्टूबर को भक्तों के दर्शन के लिए जब खुला तब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया। यहां कई महिलाओं ने प्रवेश की कोशिश की, लेकिन भारी विरोध की वजह से उन्हें कामयाबी नहीं मिली।

गौरतलब है कि सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा की मूर्ति है। अयप्पा के बारे में कहा जाता है कि वह ब्रह्मचारी हैं। रजस्वला उम्र की स्त्रियां (10 से 50 साल) अगर मंदिर में प्रवेश करती हैं तो उनका ब्रह्मचर्य टूट जाएगा, इसलिए यहां मासिक धर्म वाली 10 से 50 वर्ष की महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है। यह प्रथा 800 साल से चली आ रही है।

अयप्पा भगवान के ब्रह्मचर्य टूटने को लेकर स्वामी अग्निवेश कहते हैं, 'ऐसे कौन से भगवान हैं जो खुद तो हिल—डुल नहीं सकते, लेकिन ब्रह्मचर्य तोड़ने के लिए लालायित रहते हैं। धर्मों में फैले अंधविश्वास को लेकर भारत में एक बड़े सुधार आंदोलन की जरूरत है तभी इंसानों के बराबरी और सम्मान का अधिकार कायम किया जा सकेगा।'

देखें पूरा वीडियो, क्या कहते हैं इस धार्मिक पाखंड के बारे में स्वामी अग्निवेश

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