उत्तर प्रदेश में हिंसक होते माहौल को लेकर महिला संगठनों ने किया लखनऊ में प्रदर्शन
इस साल उत्तर प्रदेश में छह महीनों में बलात्कार की 1398 घटनाएं दर्ज हुईं हैं, जबकि दहेज हत्या की 1195, अपहरण की 5879, यौन उत्पीड़न की 391 और घरेलू हिंसा की 8031 मामले दर्ज हुए...
दिन—ब—दिन हिंसक होते उत्तर प्रदेश के माहौल को देखते हुए विभिन्न जनसंगठनों, महिला संगठनों ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कल 24 जुलाई को प्रदर्शन किया और इस पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के नाम लिखा गया ज्ञापन सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपा। महिला संगठनों के इस ज्ञापन को सिटी मजिस्ट्रेट डीएम को सौंपेंगे और डीएम के माध्यम से यह राज्यपाल तक पहुंचेगा।
महिलाओं द्वारा व्यापक स्तर पर किये गये इस प्रदर्शन में महिला—जनसंगठन, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों में साझी दुनिया, महिला फ़ेडरेशन, एडवा, ऐपवा, इप्टा, जागरूक नागरिक मंच, आली और अमिट शामिल रहे। साथ ही कई जानी-मानी सामाजिक—राजनीतिक कार्यकर्ता, सांस्कृतिक संगठनों ने भी इसमें हिस्सेदारी की।
इस दौरान राज्यपाल के नाम लिखे ज्ञापन में इन संगठनों ने लिखा कि हम उत्तर प्रदेश में काम करने वाले महिला संगठन, जनसंगठन, सामाजिक- सांस्कृतिक संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता और आम नागरिक हैं। हम सब प्रदेश में हिंसा के माहौल से चिंतित हैं। हम आपका ध्यान राज्य की बिगड़ती कानून-व्यवस्था की ओर दिलाना चाहते हैं।
पिछले कुछ महीनों में प्रदेश में हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। खासतौर पर महिलाओं- दलितों- अल्पसंख्यकों- आदिवासियों पर हिंसा की घटनाओं में तेजी आयी है। हमारा मानना है कि इन घटनाओं ने अपराध रोकने के राज्य सरकार के दावों की असलियत उजागर कर दी है। हम यहां पर हाल की महज चंद घटनाओं का ही जिक्र करना चाहेंगे। हमने अभी चंद दिन पहले ही आदिवासियों पर भयानक अत्याचार देखा है। हमने देखा कि कैसे सोनभद्र में दबंगों ने आदिवासियों पर गोलियां चलाईं और 10 लोगों की हत्या कर दी। जानकारी के मुताबिक, लगभग 23 लोग घायल हैं।
कानपुर, उन्नाव, बागपत समेत कई शहरों में जबरन धार्मिक नारे लगाने के मुद्दे पर हमले की खबर ने मुसलमानों में डर का माहौल पैदा किया है। खबरों के मुताबिक, फतेहपुर में साम्प्रदायिक हिंसा में तो एक मदरसे में आग भी लगा दी गयी। चोरी के विवाद में बाराबंकी में एक शख्स की पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी। अलीगढ़ में बच्ची की हत्या के बाद साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश की गयी। पिछले दिनों कई जिलों से ईसाई समुदाय पर भी हमले की खबर सामने आयी हैं।
प्रदर्शन में हिस्सेदारी करने वाली ख्यात महिला अधिकार कार्यकर्ता और साझी दुनिया से जुड़ीं प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा कहती हैं, 'शायद ही कोई ऐसा दिन होता होगा जब महिलाओं पर यौन हिंसा की खबर हमें सुनने को नहीं मिलती होंगी। सीतापुर में एक स्कूल की छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना ने हम सबको झकझोर कर रख दिया है। मेरठ में सामूहिक बलात्कार की शिकार अपनी 17 साल की बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ रहे किसान ने आरोपितों से तंग आकर जान दे दी। पांच दिन पहले बाराबंकी में किशोरी की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गयी, तो इसी जिले में एक दूसरी किशोरी को बंधक बना कर सामूहिक बलात्कार किया गया।'
इसी तरह दलितों पर हिंसा की घटनाएं भी थमने का नाम नहीं ले रही हैं। मुजफ्फरनगर में ईंट भट्टे पर 14 साल की एक दलित लड़की का मृत मिली। उसका पूरा शरीर जला हुआ था। परिवारीजनों का आरोप है कि उसके साथ बलात्कार हुआ और फिर उसे जला दिया गया। पिछले महीने प्रतापगढ़ में एक दलित को हाथ-पैर काट कर चारपाई में बांधकर जला दिया गया।
इसी महीने मैनपुरी जा रही अलीगढ़-कानपुर हाईवे पर एक दलित महिला का अपहरण किया गया। उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। जब मदद के लिए उसके पति ने स्थानीय पुलिस से गुहार लगायी तो उसे ही पुलिस प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा। इसी तरह जौनपुर से एक वीडियो सामने आया। इस वीडियो में चोरी के कथित आरोप में पकड़े गए तीन दलित नौजवानों की रोंगटे खड़े कर देने वाली पिटाई देखी जा सकती है।
यही नहीं, जिन युवाओं ने अपनी मर्जी से अपना साथी चुना, उन्हें अपनों से ही सुरक्षा के लिए दर-दर गुहार लगानी पड़ रही है। ऐसी घटनाएं बरेली, अमरोहा, मुरादाबाद से हमारे सामने आयी हैं। हालत यह है कि कई बार लगता है कि पुलिस भी सुरक्षित नहीं है। इसी का नतीजा है कि संभल में दो पुलिसकर्मियों की हत्या कर अपराधी फरार हो गये।
अलग-अलग स्रोतों से मिल रहे पिछले छह महीनों के महिला हिंसा के आंकड़े चिंता पैदा करते हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इकट्ठा किये गये आंकड़े के अनुसार, पिछले छह महीने में प्रदेश में बच्चियों के साथ बलात्कार के 3,457 मामले दर्ज हुए हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक, बच्चियों पर हिंसा के मामले में प्रदेश सबसे अव्वल है।
यही नहीं, एक और आंकड़ा बता रहा है कि इस साल छह महीनों में बलात्कार की 1398 घटनाएं दर्ज हुईं हैं, जबकि दहेज हत्या की 1195, अपहरण की 5879, यौन उत्पीड़न की 391 और घरेलू हिंसा की 8031 मामले दर्ज हुए हैं। इसी तरह अनुसूचित जाति/जनजाति की महिलाओं के खिलाफ बढ़ते हिंसा के मामले भी चिंतित करते हैं।
एक अन्य खबर के मुताबिक, राष्ट्रीय महिला आयोग को पिछले पांच सालों में पूरे देश में सबसे ज्यादा यौन हिंसा की शिकायतें उत्तर प्रदेश से मिली हैं। ये सभी आंकड़े संकेत दे रहे हैं कि महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से हमारा प्रदेश बहुत बुरी हालत में पहुंच गया है। ऐसा लगता है कि प्रदेश में हिंसक प्रवृत्ति हावी हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत बहुत खराब है। अपराध रोकने के नाम पर हो रहे कथित एनकाउंटर जुर्म रोकने में नाकाम रहे हैं। ये कथित एनकाउंटर महिलाओं-दलितों-अल्पसंख्यकों-आदिवासियों व अन्य वंचित समूहों पर हिंसा नहीं रोक पाये हैं। यहां तक कि अन्य अपराधों पर भी इसका असर नहीं पड़ा है। बहुप्रचारित एनकाउंटर की कथित नीति लोगों को सुरक्षित माहौल नहीं दे पा रही है। कानून व्यवस्था की इस हालत ने हम प्रदेश वासियों को डरा दिया है। महिलाएं, बच्चियां और आम नागरिक खौफ के साये में जी रहे हैं।
प्रदेश की हालत बहुत चिंताजनक है। महिला संगठनों ने राज्यपाल से मांग की है कि वे प्रदेश सरकार को संविधान सम्मत निर्देश देने की कृपा करें, ताकि लोगों में सुरक्षा की भावना पैदा हो। हम संविधान सम्मत धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं। समाज के हर समूह की सुरक्षा की गारंटी, राज्य का काम है। हम आपके माध्यम से सरकार से मांग करते हैं कि महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों व समाज के अन्य वंचित तबकों पर बढ़ते हमले को रोकने के लिए तुरंत प्रभावशाली कदम उठाए।