श्रमिक ट्रेनों में मिल रही दर्जनों प्रवासियों की लाशें बताती हैं यात्रा के दौरान मेडिकल टीम और सुरक्षाकर्मी दोनों थे गायब
प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र में कोरोना किट के न होने के चलते तीसरे दिन लिया जा रहा है सैम्पल, ट्रेनों में हुई मौतों से उठ रहा सवाल कि अगर बीमार थे तो सरकार के दावों के विपरीत ट्रेन में बैठाया कैसे...
लखनऊ, जनज्वार। आजमगढ़ के राम रतन गोंड़ जिनकी मुंबई से श्रमिक ट्रेन से आते हुए मौत हो गई, का काफी वक्त बीत जाने के बावजूद पोस्टमार्टम नहीं किया गया। प्रवासी मजदूर के पोस्टमार्टम में देरी पर सवाल उठने लगे हैं।
सामाजिक-राजनीतिक संगठन रिहाई मंच ने पोस्टमार्टम के अलावा रेलवे की पर भी सवाल उठाया है कि अगर राम रतन पहले से बीमार थे, जिसके कारण उनकी मौत हुई, तो ट्रेन में बैठाने से पहले उनकी जांच क्यों नहीं की गयी। सरकार के मुताबिक श्रमिक ट्रेन में रजिस्ट्रेशन करने के बाद मजदूर का मेडिकल चेकअप कराकर स्वास्थ की पुष्टि करते हुए रेल में बिठाया जाता है।
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रिहाई मंच के प्रतिनिधि मंडल ने राम रतन के परिजनों से मुलाकात की। इसमें रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, विनोद यादव, आदिल आज़मी, अवधेश यादव और बांकेलाल शामिल रहे।
मृतक प्रवासी मजदूर राम रतन गोंड़ के भाई ने बताया कि उनके भाई मुंबई के बोरिवली में पान की दुकान चलाते और कांदिवली में रहते थे। वहीं उनके दामाद संजय गोंड़ ने बताया कि उन्होंने आने के लिए रजिस्ट्रेशन करावाया और जब मुंबई से चले तो उनका चेकअप भी हुआ था और वो ट्रेन में चलते समय स्वस्थ थे।
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राजेश गोंड़ जो की अपने पिता की खबर सुनकर वाराणसी गए थे, से बात हुई तो उन्होंने बताया कि 27 मई की सुबह 8.30 बजे ट्रेन वाराणसी के मंडुआडीह पहुंची और ट्रेन खाली होने के कुछ समय बाद ट्रेन से लाश प्राप्त हुई। बहुत मुश्किल से लाश मिली। जब कोरोना के सैंपल कलेक्शन की बात आई तो किट मौजूद नहीं थी और जब किट आई तो डॉक्टर नहीं थे। इस वजह से 28 मई को सैंपल कलेक्शन नहीं हो पाया और मौके पर मौजूद पुलिस वाले ने बताया कि अब कल यानी कि 29 तारिख को सैंपल लिया जाएगा। रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ हो पाएगा। यह सुनकर हम लोग वापस घर लौट आए। उनके गांव के प्रधान हरिनारायण यादव भी वाराणसी गए थे, उन्होंने भी यही बात कही।
रिहाई मंच प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि ट्रेनों में आ रहे श्रमिकों की मौतों पर जिस तरह से यह कहा जा रहा है कि बीमारी से मौत हुई, वह रेलवे द्वारा अपनी गैरजिम्मेदाराना भूमिका को छिपाने की कोशिश है, क्योंकि श्रमिकों को मेडिकल के बाद ही लाया जा रहा है।
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जिस तरह से यह बात सामने आई कि यात्रियों के उतर जाने के बाद ट्रेन में राम रतन गोंड़ की लाश मिली, उससे यह स्पष्ट होता है कि यात्रा के दौरान मेडिकल टीम और सुरक्षाकर्मी मौजूद नहीं थे। मजदूरों को भूसे की तरह ट्रेनों में भरकर सरकारें अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जा रही हैं।
पिछले दिनों 40 से भी ज्यादा ट्रेनें जिस तरह से रास्ता भटक कर कहीं के लिय निकली थीं, कहीं पहुंच गईं, यह कैसे हो सकता है। क्या ट्रेन बिना गार्ड और लोको पायलट के चलाई जा रही हैं, अगर ऐसा है तो सरकार मजदूरों को भीषण हादसे में झोंक रही हैं।
रिहाई मंच ने कहा कि राम रतन गोंड़ की मौत हो या फिर राम अवध चौहान की, सभी मामलों में देखा गया कि पोस्टमार्टम में देरी की जा रही है। इस तरह की देरी ना सिर्फ अमानवीय है, बल्कि परेशान हाल मजदूरों के हौसले को भी तोड़ रही है।