आखिर योगगुरु रामदेव वेदांता के मालिक को क्यों देते हैं सलामी

Update: 2018-09-06 15:11 GMT

हरिद्वार स्थित आचार्यकुलम कोई चैरिटी नहीं है, बल्कि सालाना फीस करीब डेढ़ लाख रुपये प्रति बालक वसूली जाती है....

आशीष सक्सेना की खास रिपोर्ट

योगगुरु रामदेव और वेदांता ग्रुप के अनिल अग्रवाल के बीच खास रिश्ता है। पतंजलि ग्रुप की आचार्यकुलम योजना को अनिल अग्रवाल तीन साल पहले 1500 करोड़ नई शाखाओं को खोलने के लिए दे चुके हैं, जबकि ये आचार्यकुलम अस्तित्व में ही नहीं आए। वहीं अनिल अग्रवाल और रामदेव दोनों ही चैरिटी का दावा करते हैं।

एक लाख करोड़ रुपये के कर्ज को डुबोने वाले अनिल अग्रवाल की पिछले महीने रामदेव ने काफी तारीफ की और स्टरलाइट नागरिकों के प्रदर्शन को साजिश करार दिया। एक पहलू ये भी है कि हरिद्वार स्थित आचार्यकुलम कोई चैरिटी नहीं है, बल्कि सालाना फीस करीब डेढ़ लाख रुपये प्रति बालक वसूली जाती है।

देश का बहुत बड़ा तबका जानता है कि लोन न चुकाने वाली कंपनियों में वेदांता ग्रुप दूसरे नंबर पर है। इस कंपनी पर एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा लोन एनपीए की श्रेणी में है, मतलब अदायगी न होने वाली स्थिति में। कंपनी के मालिक एनआरआई अनिल अग्रवाल हैं। जो माइनिंग इंडस्ट्री के महारथी माने जाते हैं।

मीडिया में इनकी छवि ‘महात्मा’ की तरह जाहिर की जाती रही है। एक खबर ये भी आ चुकी है कि उन्होंने अपने परिवार की सहमति से कुल संपत्ति का 75 फीसद दान करने का फैसला लिया है।

योग का छोंका और समय का ‘संयोग’

लोग हैरान रह गए थे ये खबर सुनकर। ये घोषणा केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद अक्टूबर 2014 की है। सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग दिवस मनाए जाने की बात रखी। दिसंबर 2014 में इंडिया टुडे में लेख छपता है कि योगगुरु रामदेव वैदिक और सीबीएसई शिक्षा को जोडक़र खास तरह के स्कूलों की चेन बनाने जा रहे हैं। इस लेख में ये भी हवाला दिया गया कि इस संबंध में पतंजलि ग्रुप की पत्रिका ‘योग संदेश’ में संपादकीय भी प्रकाशित हुआ है।

यानी ये योजना लगभग उसी समय बनी जब अनिल अग्रवाल ‘दानवीर’ बनने की घोषणा कर रहे थे। अगले वर्ष यानी 2015 में पहली बार विश्व योग दिवस मनाने का ‘शोर’ मचा। इससे पहले मोदी सरकार ने काफी प्रचार प्रसार कराया। अखबारों में दर्जनों चाहे-अनचाहे लेख एक्सक्लूसिव बताकर छपे। जून 2015 में नामचीन समाचार पत्र नई दुनिया, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी आदि में आचार्यकुलम के विस्तार की खबरें भी इस दौरान प्रकाशित हुईं।

मीडिया ने खींची ‘शिक्षा के स्वर्ग’ सरीखी तस्वीर

मीडिया ने स्टोरीज में बताया कि बाबा रामदेव अनोखे स्कूलों को पूरे देश में खोलने जा रहे हैं। ये स्कूल ऐसी पीढ़ी तैयार करेंगे जो ऋषि-मुनियों की तरह तेज लिए होंगे और आधुनिक ज्ञान भी उनके पास होगा। देसी घी का बना भोजन करेंगे वगैरह—वगैरह। हरिद्वार में खुले आचार्यकुलम में ये शुरू भी हो गया।

योग संदेश पत्रिका के हवाले से इन लेखों में ये भी बताया गया कि हर जिले में आचार्यकुलम खोलने के लिए एनआरआई अनिल अग्रवाल ने 1500 करोड़ रुपये दान दिया है। योजना लोगों के कल्याण के तौर पर सामने रखी गई, जिसके लिए भूमि दान करने का आह्वान किया गया। काफी लोगों ने अपनी भूमि दान करने के ऑफर भी दिए, शायद कुछ की भूमि ले ली गई हो।

अचानक गायब हो गई योजना

बहरहाल, आचार्यकुलम खोलने का कार्यक्रम कब सुर्खियों से गायब हो गया किसी को पता नहीं चला। एनआरआई अनिल अग्रवाल के 1500 करोड़ रुपये के दान का भी कोई सिरा सामने नहीं आया। हर जिले में शाखा खोलने की बात गायब हो गई, ये शाखाएं वजूद में ही नहीं आईं, हरिद्वार को छोड़कर। हरिद्वार की शाखा भी चैरिटी का हिस्सा नहीं बन सकी।

यहां आज करीब डेढ़ लाख रुपये सालाना प्रति छात्र फीस ली जाती है। अभिभावकों ने जब ऐतराज जताया तो योगगुरु रामदेव ने दोटूक कह दिया कि विश्वस्तरीय सुविधाएं देने के लिए ये जरूरी है। ध्यान देने की बात ये है कि इस आचार्यकुलम योजना का शिलान्यास 2013 में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।

केंद्र में मोदी सरकार बनने से पहले और बाद में योगगुरु रामदेव की योजनाएं और एनआरआई अनिल अग्रवाल को लोन मिलने और न चुकाने का सिलसिला खामोशी से चलता रहा। अचानक कुछ समय से बाबा रामदेव भी खामोशी अख्तियार किए रहे।

अनिल अग्रवाल को सलाम, नागरिकों का प्रदर्शन साजिश योगगुरु रामदेव की ‘महत्वपूर्ण आवाज’ इसी वर्ष जून माह के अंत में सुनाई दी, जब वे वेदांता ग्रुप के मालिक अनिल अग्रवाल से मिलकर लंदन से लौटे। उन्होंने ऐलान किया कि ‘वेदांता की देश निर्माण में बड़ी भूमिका है, तमिलनाडु के तूतिकोरिन में वेंदाता का स्टरलाइट कॉपर प्लांट विदेश साजिश का शिकार हुआ।’

कंपनी के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले नागरिक बहकाए गए हैं, अनिल अग्रवाल ने नौकरियां देकर बेरोजगारी दूर की, इसलिए वे उनको सलाम करते हैं। प्रदर्शन में मारे गए लोगों के प्रति उन्होंने अपने बयान में कोई संवदेना जताना भी मुनासिब नहीं समझा। उनकी इस सलामी के बाद भी लोगों का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ और प्रदेश सरकार को मजबूरन प्लांट हमेशा को बंद करने का आदेश करना पड़ा।

यहां बता दें, मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक विवादों में रही वेदांता ग्रुप बहुत बड़ी धनराशि राजनीतिक दलों को चंदे के तौर पर देती रही है। स्टरलाइट प्रदर्शन का वाकया और रामदेव का रुख लोगों का आरोप था कि स्टरलाइट कंपनी यहां की नदी ताम्रवरणी में प्लांट का प्रदूषित पानी डाल रही थी जिसमें कॉपर के तत्व मिले थे।

कई बार धरना प्रदर्शन करने के बाद भी प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया। जब पता चला कि सरकार कंपनी के लाइसेंस का नवीनीकरण करने जा रही है तो उनका गुस्सा फूट पड़ा। प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोलियों से दर्जनभर लोगों की मौत हो गई। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह कहते हुए प्लांट बंद कर दिया कि फैक्ट्री से ही हानिकारक गैस निकली है लेकिन कंपनी ने इसे नहीं माना।

स्टरलाइट कॉपर कंपनी भारत के तांबा बाजार का 35 प्रतिशत उत्पाद बनाती है। अप्रैल 2018 को तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्टरलाइट के स्मेल्टर का लाइसेंस रद्द करने का आदेश दिया था। लेकिन कंपनी ने इस आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि यह स्थानीय पर्यावरण नियमों से बंधी हुई नहीं है। इस पूरे मामले को योगगुरु ने विदेश साजिश करार देकर अपना पक्ष चुन लिया।

वैसे ये कोई नई बात भी नहीं है। जब पतंजलि ग्रुप उभर ही रहा था तो 2007 में इस गु्रुप के हरिद्वार में कनखल स्थित कारखाने के श्रमिकों ने भी शोषण का आरोप लगाया था। उन श्रमिकों का कहना था कि महज 1800 रुपये में 12 घंटे से ज्यादा काम कराया जाता है।

ये खबर उत्तराखंड के रामनगर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार पत्र 'नागरिक' में गहराई से प्रकाशित भी हुई। उसके बाद सीपीएम नेता वृंदा करात के बयान से श्रमिकों की मांग दब गई और दवाओं में जानवरों की हड्डियां मिलाने का मामला सुर्खियों में छा गया।

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