असम में चुनाव जीतते ही भाजपा ने फिर जगाया एनआरसी के प्रेत को
विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के घोषणापत्र में कहा गया था--हम वास्तविक भारतीय नागरिकों की रक्षा करने और सभी अवैध अप्रवासियों को बाहर करने के लिए एक तर्कपूर्ण तरीके से सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर के तहत प्रविष्टियों के सुधार और सुलह की प्रक्रिया शुरू करेंगे.....
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की रिपोर्ट
असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के राज्य समन्वयक हितेश शर्मा ने उच्चतम न्यायालय में एक अपील दायर की है, जिसमें शीर्ष अदालत से पूर्ण, व्यापक और समयबद्ध पुन: सत्यापन के लिए उचित निर्देश पारित करने का आग्रह किया गया है। एनआरसी का प्रकाशन 2019 में हुआ था। यह मांग भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की स्थिति के अनुरूप है।
10 मई को कार्यभार संभालने वाले मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने कहा था-- एनआरसी के संबंध में हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट है। सीमावर्ती जिलों में हम चाहते हैं कि 20% नामों की फिर से जांच हो, और अन्य जिलों में 10% नामों की।
विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के घोषणापत्र में कहा गया था--हम वास्तविक भारतीय नागरिकों की रक्षा करने और सभी अवैध अप्रवासियों को बाहर करने के लिए एक तर्कपूर्ण तरीके से सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर के तहत प्रविष्टियों के सुधार और सुलह की प्रक्रिया शुरू करेंगे।
एनआरसी के राज्य समन्वयक शर्मा ने अपने आवेदन में तर्क दिया है कि प्रकाशन में कई विसंगतियां थीं, जिसके कारण अपात्र व्यक्तियों को सूची में शामिल किया गया है।
उन्होंने आवेदन में कहा: "...असम में एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया में कई गंभीर, मौलिक और महत्वपूर्ण त्रुटियां सामने आई हैं। इसने पूरी कवायद को बिगाड़ दिया है और एनआरसी में नामों को शामिल करने और बाहर करने के लिए वर्तमान मसौदा और पूरक सूची जो प्रकाशित की गई है वह त्रुटियों से मुक्त नहीं है। इस प्रकार एनआरसी के मसौदे पर एक व्यापक और समयबद्ध पुन: सत्यापन का आदेश देकर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।"
शर्मा ने शीर्ष अदालत से अपील की है कि संबंधित जिलों में निगरानी समिति की देखरेख में पुन: सत्यापन का निर्देश दे। उन्होंने सुझाव दिया कि समिति का प्रतिनिधित्व जिला न्यायाधीश, जिला मजिस्ट्रेट और संबंधित पुलिस प्रमुख द्वारा किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की सीधी निगरानी में अगस्त 2019 में प्रकाशित एनआरसी ने लगभग 3.3 करोड़ आवेदकों में से लगभग 19 लाख लोगों को बाहर कर दिया। लेकिन एनआरसी अधिकारियों ने अभी तक अस्वीकृति आदेश जारी नहीं किए हैं, जिसके आधार पर बहिष्कृत लोग राज्य के विदेशी न्यायाधिकरण (एफटी) में बहिष्करण के खिलाफ अपील कर सकते हैं। एफटी तब तय करेगा कि संबंधित व्यक्ति विदेशी है या भारतीय नागरिक।
शर्मा ने कहा है कि 2019 में प्रकाशित एनआरसी 'अंतिम' नहीं था। "अंतिम एनआरसी को आरजीआई [भारत के रजिस्ट्रार जनरल] द्वारा आज तक प्रकाशित किया जाना बाकी है…। याचिका में कहा गया है कि अंतिम एनआरसी के बाद उचित अस्वीकृति आदेशों के खिलाफ अस्वीकृति पर्ची जारी की जाएगी।
शर्मा आगे कहते हैं कि विसंगतियों को "कई बार" आरजीआई को सूचित किया गया था, "लेकिन इस मामले पर आरजीआई द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया है"।
पिछले साल दिसंबर में गुवाहाटी उच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे में, हितेश शर्मा ने कहा था कि अगस्त 2019 में प्रकाशित एनआरसी एक "पूरक एनआरसी" था और आरजीआई "अंतिम एनआरसी" के प्रकाशन पर चुप है।
मई 2014 से फरवरी 2017 तक एनआरसी असम के कार्यकारी निदेशक रहे शर्मा को अक्टूबर 2019 में हुए प्रतीक हाजेला के तबादले के बाद 24 दिंसबर 2019 को एनआरसी का राज्य समन्वयक नियुक्त किया गया था।
शर्मा ने कहा कि खामियों को न्यायालय के समक्ष लाए जाने की आवश्यकता है क्योंकि एनआरसी अद्यतन की प्रक्रिया शीर्ष अदालत की निगरानी में हो रही है और समूची एनआरसी अद्यतन प्रक्रिया ''राष्ट्र की सुरक्षा एवं अखंडता'' से जुड़ी है।
असम में एनआरसी लागू करने का मकसद घुसपैठियों की पहचान करना था। व्यक्ति को खुद को असम का नागरिक साबित करने के लिए 24 मार्च, 1971 से पहले जारी किया दस्तावेज बतौर सबूत पेश करना था। इसके लिए 1951 के एनआरसी या 24 मार्च,1971 तक जारी किया गया इलेक्ट्रोल रोल मान्य था। इसके जरिए यह साबित करना था कि व्यक्ति के पूर्वज इस तारीख से पहले राज्य के नागरिक थे। इसके बाद पूर्वज से व्यक्ति का संबंध दिखाने वाला दस्तावेज भी पेश करना था। यह मुश्किल काम था, क्योंकि भारत में लोग दस्तावेज के महत्व को लेकर ज्यादा जागरूक नहीं होते। इसके अलावा ज्यादातर आबादी मुश्किल से गुजर-बसर करती है, जिससे दस्तावेज बनवाना या उसे रखना गौण हो जाता है।
असम में खुद को नागरिकता रजिस्टर में शामिल करने के लिए आवेदन देना जरूरी था। यह बहुत बड़ी कवायद थी। इसमें राज्य सरकार के 52,000 कर्मचारी शामिल थे। दस्तावेजों की जांच के लिए सैकड़ों एनआरसी सेवा केंद्र बनाए गए थे। पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अंजाम दी गई।