UP Election 2022 : आज अलीगढ़ में अखिलेश और जयंत का शक्ति प्रदर्शन, क्या हिट होगी जोड़ी?

UP Election 2022 : साल 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव-राहुल गांधी की जोड़ी को 'यूपी के लड़के' का नाम दिया गया था, दोनों ने सूबे की सड़कों पर जमकर प्रचार किया था। इसके बावजूद अखिलेश-राहुल की जोड़ी सफल नहीं रही। इस बार अखिलेश और जयंत चौधरी साथ आए हैं और इसके असर का सभी को इंतजार है।

Update: 2021-12-23 03:24 GMT

जयंत चौधरी सीटों के बंटवारे पर बोले- उम्मीदवारों की पहली लिस्ट 2-3 दिन में होगी जारी

एसपी-आरएलडी अलीगढ़ इगलास पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट

UP Election 2022 : उत्तर प्रदेश की राजनीति में पांच साल बाद एक बार फिर 'यूपी के लड़कों' का सियासी जलवा देखने को मिल सकता है। पिछले चुनाव में मोदी लहर पर सवार बीजेपी ( BJP ) से मुकाबला करने के लिए सपा-कांग्रेस साथ आई थी तो अखिलेश यादव-राहुल गांधी की जोड़ी को 'यूपी के लड़के' का नाम दिया गया था, दोनों ने सूबे की सड़कों पर जमकर प्रचार किया था। इसके बावजूद अखिलेश-राहुल की जोड़ी सफल नहीं रही। इस बार अखिलेश और जयंत चौधरी ( Akhilesh Yadav and Jayan Chaudhary ) साथ आए हैं, लेकिन सियासी तौर पर अहम सवाल यह है कि क्या हिट होगी ये जोड़ी।

दरअसल, आज अलीगढ़ के इगलास ( Aligarh Iglas )  में अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav ) और जयंत चौधरी ( Jayant Chaudhary ) भाजपा को सियासी मौत देने के लिए संयुक्त रूप से शक्ति प्रदर्शन करेंगे। इससे पहले मेरठ रैली लक्ष्य साधने के लिहाज से सफल रही थी। माना जा रहा है कि इस रैली में सपा प्रंमुख अखिलेश यादव सीएम योगी के हिंदुत्व, अब्बाजान और चाचाजान का जवाब देंगे।

यूपी के लड़के पार्ट टू

विधानसभा चुनाव में सपा-आरएलडी गठबंधन कर चुनाव में उतर रहे हैं तो अखिलेश-जयंत की जोड़ी को यूपी के लड़के पार्ट-2 की तरह देखा जा रहा है। 2022 के चुनाव के लिए सपा बड़े दलों के बजाय छोटे दलों से गठबंधन करने में लगी है। पूर्वांचल में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से हाथ मिलाने के बाद अखिलेश यादव ने पश्चिमी यूपी में अपने समीकरण को दुरुस्त करने के लिए जयंत चौधरी की आरएलडी से गठबंधन फाइनल कर लिया है।

जयंत के साथ बदलाव की बात

अखिलेश से मुलाकात के बाद आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने 'बढ़ते कदम' कैप्शन के साथ अपनी और अखिलेश की तस्वीर ट्वीट की, जिसमें वो एक दूसरे का हाथ पकड़े खड़े दिख रहे है। वहीं अखिलेश यादव ने भी जयंत चौधरी के साथ एक तस्वीर साझा की और कैप्शन में लिखा था 'जयंत चौधरी के साथ बदलाव की ओर। सपा अध्यक्ष से मिलने के बाद जयंत ने कहा कि दोनों दलों के बीच चुनाव लड़ने पर सहमति बन गई है।

अखिलेश-जयंत चौधरी का चुनावी मैदान में मिलकर उतरने से पश्चिम यूपी के सियासी समीकरण बदलने की संभावना है। किसान आंदोलन के बाद पश्चिम यूपी की सियासत में जाट और मुस्लिम काफी अहम भूमिका अदा करते हैं। इस बात की आशंका भाजपा को भी है। आरएलडी का कोर वोटबैंक जहां जाट माना जाता है तो सपा का मुस्लिम। ऐसे में अखिलेश ने अपने साथ जयंत को जोड़कर मुस्लिम-जाट वोटों का मजबूत कॉम्बिनेशन बनाने की कवायद की है।

बीजेपी के लिए होगी बड़ी चुनौती

मुजफ्फरनगर दंगे यानि 2013 से पहले पश्चिम यूपी में बीजेपी का कोई खास जनाधार नहीं रहा था, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट समुदाय को जोड़कर उसने अपनी सियासी जमीन मजबूत कर ली है। वहीं, किसान आंदोलन से आरएलडी को सियासी संजीवनी मिली है। इस बार चौधरी अजीत सिंह की निधन की वजह से भावनात्मक रूप से भी जाट और मुस्लिम समुदाय के लोग रालोद से ज्यादा जुड़ाव महसूस कर रहे हैं। दूसरी बात यह है कि किसान आंदोलन से एक बार फिर जाट-मुस्लिम सहित किसान जातियां साथ आई हैं, जो बीजेपी के लिए चिंता बढ़ाने वाली बात है।

इस बार किसानों की नाराजगी और पश्चिम यूपी के समीकरण को देखते पीएम मोदी को कृषि कानूनों रद्द करने के लेने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन यूपी के किसान सिर्फ तीन कृषि कानूनों में सिमटे नहीं हैं, बल्कि गन्ना के भुगतान व मूल्य बढ़ोत्तरी, खाद की किल्लत और बिजली महंगी जैसी समस्याएं भी उन्हें परेशान कर रही हैं। जयंत चौधरी इन्हीं सारे मुद्दों को लेकर पश्चिम यूपी में सक्रिय हैं और अब अखिलेश के साथ गठबंधन कर और मजबूत हो गए हैं।

2017 में सपा के खाते में गई थी 20 सीटें

2017 विधानसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी की कुल 136 सीटों में से 109 सीटें बीजेपी ने जीती थीं जबकि 20 सीटें सपा के खाते में आई थीं। कांग्रेस 2 सीटें और बसपा 3 सीटें जीती थींं एक सीट आरएलडी ने जीती थी। बाद में आरएलडी विधायक ने बीजेपी का दामन थाम लिया था। यह सिलसिला 2019 लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा, लेकिन 2014 के मुकाबले सपा और बसपा ने मुस्लिम बहुल सीटों पर जरूर जीत दर्ज करने में सफल रही थी।

अखिलेश जाट-मुस्लिम समीकरण को सफल बनाना चाहते हैं

आबादी और मतदाताओं की संख्य के लिहाज से देखें तो पश्चिमी यूपी में जाट 20 मुस्लिम आबादी 30 से 40 फीसदी के बीच हैं। उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय की आबादी करीब 4 और मुस्लिम आबादी 20 फीसदी है। एक दौर ऐसा था जब जाट और मुस्लिम समुदाय करीब थे, लेकिन मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों के बाद दोनों समुदायों के बीच कड़वाहट आ गई। जाट और मुस्लिम बिखर गए, जिसका बीजेपी को सीधा फायदा मिला। हालांकि, किसान आंदोलन के चलते जाट-मुस्लिम पास आए हैं। इसीलिए अखिलेश सत्ता में वापसी के लिए जयंत के सहारे पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण को अमलीजामा पहनाना चाहते हैं।

इन क्षेत्रों में दिख सकता है गठजोड़ का असर

जाट और मुस्लिम समुदाय सहारनपुर, मेरठ, बिजनौर, अमरोहा, मुजफ्फरनगर, बागपत और अलीगढ़-मुरादाबाद मंडल सहित पश्चिमी यूपी की 136 विधानसभा सीटों पर विधानसभा चुनाव के दौरान दिख सकता है। सूबे की 136 विधानसभा सीटों में 55 सीटें ऐसी हैं, जहां जाट-मुस्लिम मिलकर 40 फीसदी से अधिक हो जाते हैं।

दादा के फार्मूले पर पोता

देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह देश में जाट समुदाय के सबसे बड़े नेता के तौर पर जाने जाते थे। उन्होंने प्रदेश और देश की सियासत में अपनी जगह बनाने और राज करने के लिए 'अजगर' ( अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत ) और 'मजगर' ( मुस्लिम, जाट, गुर्जर और राजपूत) फॉर्मूला बनाया था। चौधरी चरण सिंह जाट और मुस्लिम समीकरण के सहारे लंबे समय तक सियासत करते रहे। पश्चिम यूपी में इसी समीकरण के सहारे आरएलडी किंगमेकर बनती रही है और अब एक बार फिर से उसेे अमलीजामा पहनाने के लिए जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव के साथ हाथ मिलाया है, जो बीजेपी के लिए पश्चिमी यूपी में बड़ी चुनौती बन सकती है।

आज अलीगढ़ इगलास

बता दें कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव ( Uttar Pradesh Vidhansabha Chunav 2022 ) से पहले समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ( SP-RLD ) एक बार फिर से संयुक्त रैली करने जा रही है। आज अलीगढ़ के इगलास (Iglas) में एसपी और आरएलडी की संयुक्त जनसभा होगी। इस रैली के जरिए एक बार सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और आएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी एक साथ मंच साझा करेंगे। रैली को सफल बनाने के लिए एसपी और आरएलडी के नेता जुटे हुए हैं।

इससे पहले मेरठ में की थी जयंत और अखिलेश ने रैली

इससे पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) की संयुक्त रैली मेरठ में हो चुकी है। अभी तक दोनों ही दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर फैसला नहीं हो सका है। सपा आरएलडी को तीन दर्जन सीटें दे सकती हैं। कुछ सीटों पर सपा नेता आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं।

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