यूपी के 69000 हजार शिक्षकों की नौकरी जाते ही बैंकों ने थमा दिया रिकवरी का नोटिस !
अखिलेश यादव कहते हैं, जिन भर्ती हुए शिक्षकों ने अपने घर-परिवार और बाक़ी सामान के लिए नौकरी की निरंतरता की उम्मीद पर कुछ लोन लिया था तो क्या अब ये सरकार उनके घरों और सामानों को क़ब्ज़े में लेने की साज़िश कर रही है। ये निहायत शर्मनाक कृत्य है कि भाजपा परिवारों को दुख-दर्द देकर सत्ता की धौंस दिखाना चाहती है...
लखनऊ, जनज्वार। यूपी के जिन 69000 शिक्षकों को बैंकों ने लोन दिए अब उनसे वसूली का मामला चर्चा में आ गया है। 69000 शिक्षक भर्ती मामले में हाईकोर्ट के फैसले के बाद जिन उम्मीदवारों का सिलेक्शन हुआ था अब उन पर गाज गिर गई है। 4 सालों से नौकरी कर रहे हजारों शिक्षकों को अब बैंक के एक नोटिस ने परेशान कर दिया है।
असल में जिन बैंकों ने शिक्षकों को लोन दिया था अब उसकी रिकवरी करने का आदेश जारी किया है और नया लोन देने से मना किया है। इस बात का नोटिस अब सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहा है।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने 16 अगस्त को अपने फैसले में कहा है कि 2019 में हुई 69000 शिक्षकों की भर्ती के चयनित अभ्यार्थियों की सूची नए सिरे से बनाई जाए। पिछली सूची के आधार पर नौकरी कर रहे शिक्षकों की सेवा पर भी इस आदेश से संकट खड़ा हो गया। नई सूची बनने से उन शिक्षकों की सेवा में भी आंच आ सकती है। तमाम शिक्षकों ने नौकरी के बाद बैंकों से अलग-अलग जरूरतों के लिए लोन ले रखा है और अब नौकरी जाने के बाद उनके सामने एक बड़ा संकट पैदा हो गया है।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद बांदा जिला कोऑपरेटिव बैंक के मुख्य कार्यपालक अधिकारी जगदीश चन्द्रा ने बांदा और चित्रकूट में संचालित सहकारी बैंकों के शाखा प्रबंधकों को पत्र जारी कर आदेश दिया है कि 69000 भर्ती वाले शिक्षकों में से किसी को यदि ऋण दिया गया हो, तो उनकी सूची तैयार की जाए। शाखा प्रबंधक खुद उनके खाता खंगाले, बैंक की धन सुरक्षा को देखते हुए समय से ब्याज सहित लोन की वसूली की जाए। जब तक स्थिति स्पष्ट न हो जाए, तब तक इन शिक्षकों को बैंक से नया ऋण स्वीकृत न किया जाए।
इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश के विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीटर पर एक लंबा पोस्ट लिखा और कहा है कि भले ही अभी यह मामला शांत हो गया हो, लेकिन इसके खिलाफ लामबंद रहने की जरूरत है।
अखिलेश ने अपने एक्स एकाउंट पर लिखा है, '69000 शिक्षक भर्ती मामले में भाजपा राज की नाइंसाफ़ी की एक और ‘आर्थिक-सामाजिक-मानसिक’ मार, परंतु एकता की शक्ति के आगे हार। 69000 शिक्षक भर्ती कोर्ट से निरस्त होते ही बांदा डिस्ट्रिक्ट कॉपरेटिव बैंक ने भर्ती हुए शिक्षकों से, बैंक से लिए गए किसी भी प्रकार के ऋण की वसूली का फ़रमान जारी करा और आगे भी किसी भी प्रकार के लोन का रास्ता बंद करने की साज़िश रची, परंतु युवाओं के आक्रोश के आगे ये फ़रमान एक दिन भी टिक नहीं पाया और भाजपा सरकार को इसे भी रद्द करने का आदेश निकालना पड़ गया लेकिन याद रहे उप्र की भाजपा सरकार ये काम मन से नहीं दबाव से कर रही है, इसीलिए इस आदेश को पूरी तरह रद्द नहीं बल्कि कुछ समय के लिए स्थगित मानकर इसका भरपूर विरोध जारी रखना चाहिए। वैसे तात्कालिक रूप से ये युवा विरोधी भाजपा के विरूद्ध युवा-शक्ति की एकता की जीत है।'
अखिलेश आगे कहते हैं, 'जिन भर्ती हुए शिक्षकों ने अपने घर-परिवार और बाक़ी सामान के लिए नौकरी की निरंतरता की उम्मीद पर कुछ लोन लिया था तो क्या अब ये सरकार उनके घरों और सामानों को क़ब्ज़े में लेने की साज़िश कर रही है। ये निहायत शर्मनाक कृत्य है कि भाजपा परिवारों को दुख-दर्द देकर सत्ता की धौंस दिखाना चाहती है।'
बकौल अखिलेश यादव 'शिक्षक भर्ती में उप्र की भाजपा सरकार की बदनीयत की जिस तरह फ़ज़ीहत हुई है, शायद उसका बदला वो अभ्यर्थियों से लेना चाहती थी। तभी ऐसे फ़रमान निकलवा रही है। इससे पहले से ही नौकरी खोने के डर से डरे हुए शिक्षकों पर अत्यधिक मानसिक दबाव बढ़ेगा। जब इन लोन की वसूली के लिए बैंक उनके घरों पर जाएगा तो उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को भी ठेस पहुँचेगी। इसके दूरगामी नकारात्मक परिणाम निकलेंगे क्योंकि आर्थिक-सामाजिक-मानसिक रूप से प्रभावित शिक्षक का असर शिक्षण पर भी पड़ेगा, जिससे प्रदेश के बच्चों की शिक्षा और उनका भविष्य भी प्रभावित होगा। इसका एक गहरा आघात भर्ती हुए उन शिक्षकों के जीवन पर भी पड़ेगा, जिन्होंने विवाह करके अपना नया-नया वैवाहिक जीवन शुरू किया था और अपने परिवार को पालन-पोषण इसी नौकरी के आधार पर कर रहे थे। वैवाहिक जीवन की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ परिवार वाले ही जानते हैं। जनता और परिवारवालों को दुख देकर न जाने भाजपा को क्या सुख मिलता है।'