बंगाल में बिहार की तर्ज पर पार्टनर तलाश रहे ओवैसी, विवादास्पद छोटे संगठनों पर MIM की नजर
ओवैसी की पार्टी अब बंगाल चुनाव की तैयारी में जुटी है, जिस तरह उसने बिहार में मायावती, कुशवाहा, देवेंद्र यादव के साथ गठजोड़ कर चुनाव लड़ा वैसी ही कोशिश बंगाल में शुरू कर दी है...
जनज्वार। एआइएमआइएम के नेता असदु्दीन ओवैसी ने जिस तरह बिहार चुनाव में राजनीतिक सफलता हासिल की है, उसके बाद से ही कुछ महीने बाद पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका को लेकर कयास लगाये जा रहे हैं। ओवैसी ने बिहार में कम प्रभाव रखने वाली कई छोटी पार्टियों से गठजोड़ किया और उसका राजनीतिक लाभ हालिस किया, उसी फार्मूले पर वे अब पश्चिम बंगाल में आगे बढने की कोशिश में जुट गए हैं।
ओवैसी की पार्टी ने पश्चिम बंगाल के उत्तर व दक्षिण दीनाजपुर, मुर्शिदाबाद, मालदा, वीरभूम व उत्तर 24 परगना जिले में खुद को फोकस किया है और वहां के युवा छात्र संगठन के साथ राजनीतिक गठजोड़ करने की दिशा में कदम बढाया है। इस इलाके में यह संगठन विवादित भी रहा है और उस पर एनआरसी विरोधी प्रदर्शन के दौरान मुर्शिदाबाद में आंदोलन को हिंसक स्वरूप देने का भी आरोप है। इस संगठन में कई दूसरे विवादस्पद संगठनों का भी विलय हुआ है।
एमआइएम इनके साथ गठजोड़ कर राजनीतिक हैसियत बढाने की कोशिश में है। पार्टी की निगाह खास कर मालदा व मुर्शिदाबाद जिले की विधानसभा सीटों पर है। इस इलाके के कई नेता हैदराबाद जाने की तैयारी में हैं, जहां ओवैसी के साथ वे एक बैठक कर आगामी चुनावी रणनीति पर चर्चा करेंगे।
उधर, स्थानीय स्तर पर सोशल मीडिया पर राजनीतिक गतिविधियां बढायी गईं हैं, ताकि चुनाव में उसका लाभ मिल सके। स्थानीय छात्र संगठन ने करीब चार लाख सदस्य तैयार किए हैं और उसका राजनीतिक लाभ ओवैसी को मिल सकता है। दिसंबर में एमआइएम स्थानीय संगठनों के साथ जंगीपुर में एक बड़ी जनसभा करने की तैयारी में है, जिसमें तीन लाख लोगों को जुटाने का लक्ष्य रखा गया है।
उधर, तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि बंगाल में एमआइएम की राजनीति नहीं चलेगी और वे मुसलमानों का दिल नहीं जीत पाएंगे। मुर्शिदाबाद जिला तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष अबु ताहिर खान ने कहा है कि एमआइएम भाजपा के लिए काम कर रही है, बिहार में उनकी वजह से भाजपा सरकार आयी, लेकिन यहां उन्हें सफलता नहीं हासिल होगी।
बिहार में छह दलों वाले तीसरे मोर्चे में शामिल थे ओवैसी
असदुद्दीन ओवैसी बिहार चुनाव में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में बने छह दलों के तीसरे मोर्चे में शामिल थे। इसमें मायावती की बसपा व देंव्रद यादव की पार्टी सहित दो अन्य दल शामिल थे और कुशवाहा को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट किया गया था। इस गठबंधन के दलों में सबसे अधिक पांच सीटें ओवैसी की पार्टी ने ही जीती थी।