केरल में वामपंथियों ने लहरायी जीत की पताका तो जन्मभूमि बंगाल से सूफड़ा हुआ साफ
वामदलों को जहां 2011 के विधानसभा चुनावों में 41.1% प्रतिशत मत मिले थे, वहीं इस बार 5 फीसदी मत भी नहीं मिल पाये हैं...
जनज्वार। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गयी हैं, उन्होंने भारी प्रचार—प्रसार के बावजूद भाजपा को कड़ी शिकस्त दी है। हालांकि भाजपा के लिए भी बंगाल चुनाव में मिले मतों को बुरा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पार्टी 3 की संख्या से बढ़कर 80 के आंकड़े को छू पायी है। बेशक यह उसकी बड़ी सफलता है।
वहीं केरल में पिनराई विजयन के नेतृत्व में सीपीएम की अगुवाई वाले वामपंथी लोकतांत्रिक मोर्चे (एलडीएफ़) को विधानसभा चुनाव में एक बार फिर जबर्दस्त जीत मिली है। केरल में पिछले 40 सालों से हर पांच साल से सरकार बदल जाती है, मगर इस बार लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट के पिनराई विजयन ने इस परंपरा को तोड़ दिया है, दोबारा सत्ता में बहुमत लाकर।
वहीं कभी वामपंथियों का गढ़ कहे जाने वाले बंगाल में सबसे बुरा हाल वामपंथियों का ही हुआ है। लंबे समय तक यहां राज करने के बावजूद वामपंथी खबर लिखे जाने तक यानी शाम 5.30 बजे तक मैदान से एकदम साफ हैं। एक भी सीट पर वामपंथी उम्मीदवारों को जीत नहीं मिल पायी है।
बंगाल का 2021 विधानसभा चुनावों के वोटिंग प्रतिशत को देखकर समझा जा सकात है कि बंगाली की जनता ने केवल टीमएमसी और बीजेपी पर भरोसा किया है। तीन दशक तक पश्चिम बंगाल में सत्ता चलाने वाली वाम दलों को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है। लगभग यही हाल कांग्रेस का भी है।
जहां कांग्रेस और वामपंथियों का बंगाल से सूफड़ा साफ हुआ है, वहीं टीएमसी की लगातार राज्य में ताकत बढ़ रही है। भाजपा के मुकाबले टीएमसी का वोट प्रतिशत 2011 में सत्ता हासिल करने के बाद लगातार बढ़ रही है। 2011 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी 38.9 फीसदी वोट हासिल कर पहली बार सत्ता में आई थी। उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में वह 39.8% और 2016 के विधानसभा चुनाव में 45.6% वोट हासिल करने के साथ सत्ता पर काबिज हुयी थी।
इस बार भाजपा अपनी जीत को लेकर इसलिए भी अति उत्साहित या आश्वस्त नजर आ रही थी, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत के मामले में टीएमसी को 43.3 % प्रतिशत यानी 2.3% वोटों को नुकसान हुआ था। मगर अब TMC ने 2021 के विधानसभा चुनाव में 5.2% प्रतिशत अधिक वोट हासिल कर अपनी ताकत बढ़ाई है।
बुरी हालत में पहुंचे वामदलों को जहां 2011 के विधानसभा चुनावा में 41.1% प्रतिशत मत मिले थे, वहीं 2014 में लोकसभा चुनावों में 29.9% और 2016 के विधानसभा चुनावों में 26.6% और 2019 के लोकसभा चुनावों में 7.5 फीसदी मत मिले हैं। सबसे बुरा हाल इस बार यानी 2021 के विधानसभा चुनावों में हुआ है, इस बार वामदलों को 5 फीसदी मत भी नहीं मिल पाये हैं।
बंगाल में वामपंथ ने 1967 में संयुक्त मोर्चे के माध्यम से एंट्री ली थी, जिसके बाद 1972 से लेकर 2011 तक बंगाल में उनका एकछत्र राज रहा। केंद्र में चाहे जिसकी सत्ता रही हो, मगर बंगाल में सत्तर के दशक से लगातार वामपंथियों ने राज किया।
ज्योति बसु कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) से 1982 से लेकर वर्ष 2000 तक 5 बार मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद बुद्धदेव भट्टाचार्य 2000 के बाद से 2011 तक लगातार 3 बार पार्टी से मुखिया चुने गये और 2011 के बाद से वामपंथियों का बंगाल से सूफड़ा साफ होना शुरू हुआ।
गौरतलब है कि बंगाल में वामपंथ की जड़ें बहुत गहरी रहीं हैं। वहां की राजनीतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक ताने बाने तक में लेफ्ट की गहरी पकड़ रही है, मगर इस बार हार के बाद यह विश्लेषण किया जाने लगा है कि वामपंथी दुनिया के आर्थिक विकास के साथ तालमेल बिठाने में नाकाम रहे और वह बंगाल को उसका विकल्प भी नहीं दे सके इसलिए जनता ने उन्हें नकार दिया।