Bihar Politics : भतीजे की बदली रणनीति चाचा पर भारी, क्या नीतीश कुमार को नेता मान लेंगे तेजस्वी यादव
Bihar Politics : बिहार ( Bihar ) की राजनीति में खेल अभी बाकी है। देखते रहिए आज शाम तक क्या होता है। इस बीच कांग्रेस ने भी स्वीकार कर लिया है कि नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी से फोन पर बातची की है। दूसरी तरफ अमित शाह ( Amit shah ) ने ताजा घटनाक्रम के बीच नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) को फोनकर उनसे बातचीत की है।
Bihar politics : बिहार में एक बार फिर सीएम नीतीश कुमार भाजपा को गच्चा देकर सियासी बदलाव की कहानी लिखना चाहते हैं लेकिन क्या, नीतीश कुमार जिस नाटकीय अंदाज इस बार फिर अंजाम देना चाहते हैं, वैसा करने में वो कामयाब होंगे। कहने का मतलब यह है कि वो फिर से सियासी पलटू राम बनने सफल हो पाएंगे। सच तो यह है कि बिहार में सबकुछ जितना आसान दिख रहा है, उतना सरल वहां की राजनीति में होता नहीं। इस बार जल्दीबाजी का नाटककर न तो लालू और न ही तेजस्वी ( Tejashwi Yadav ) की आंख में धूल झोंक सकते। खास बात यह है कि आरजेडी के बगैर वो भाजपा ( BJP ) को गच्चा भी नहीं दे सकते। यानि बिहार की वर्षों की चली आ रही राजनीति में अगर भाजपा और आरजेडी (RJD ) की अपनी अलग-अलग मजबूरियां हैं तो नीतीश *( JDU ) के सामने भी इस बार राह आसान नहीं है।
ऐसा इसलिए कि बिहार में भतीजा अब नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) को चाचा मानने के लिए तैयार नहीं है। फिर भतीजे ने अपने अनुभव के दम पर खुद के लिए नई स्क्रिप्ट लिखी हुई है। तेजस्वी यादव ( Tejashwi Yadav ) का अब बिहार ( Bihar ) की राजनीति में पहले की तरह पूरी तरह से अपरिपक्व नेता नहीं रह गए हैं। उन्होंने अपने इर्द-गिर्द के रणनीतिकार भी बदल दिए हैं। ये रणनीतिकार लालू के दरबारियों से अलग सोच रखते हैं। ऐसे में बिहार में उठा तूफान नीतीश के लिए कितना कारगर होगा। या फिर भाजपा ( BJP ) को सबक सिखाने के लिए जेडीयू के प्रमुख यानि सुशासन बाबू कोई नया खेल खेलेंगे, वो सीएम पद छोड़ने को तैयार हो जाएंगे। सीएम पद छोड़ने की बात इसलिए कि कभी नीतीश के साथ रहे आरजेडी के वरिष्ठ नेता और लालू करीबी ने दो दिन पहले ही साफ कर दिया था कि बिना सीएम का पद छोड़े नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) इस बार बिहार में खेल नहीं कर पाएंगे। उनके बयान से साफ है कि जेडीयू ( JDU ) की मुहिम जमीन पर तभी उतर सकती है जब नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) राष्ट्रीय राजनीति में आना स्वीकार कर लें। आरजेडी सांसद और तेजस्वी के करीबी मनोज झा ने भी यही संकेत दिए हैं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में यही कहा है कि बिहार में राष्ट्रपति शासन के आसान नहीं हैं। अभी इंतजार कीजिए आगे क्या होता है। हम, सियासी परिस्थितियों के अनुरूप सही फैसला लेंगे।
फिर, पिछले पांच सालों में तेजस्वी यादव ( Tejashwi yadav ) अपने पिता की छत्रछाया से बाहर निकल चुके हैं। उन्होंने पांच साल में बिहार की राजनीति में अपना अलग वजूद बनाया हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 अपने दम पर लड़ा। तेजस्वी ने आरजेडी में उनकी जगह पर खुद को फिट करना लोकसभा चुनाव 2019 से ही शुरू कर दिया था। बिहार चुनाव 2020 में तेजस्वी ने अपने दम पर 75 सीटों पर जीत दर्ज की और गठबंधन को 110 सीटों के आंकड़े तक ले गए। अब बिहार में आरजेडी के खुद के विधायक हैं। 243 सदस्यीय विधानसभा में पूर्ण बहुमत के आंकड़े से महज 43 सीट कम। कांग्रेस के 19 विधायक आरजेडी के साथ है। वामपंथियों के 14 विधायक भी उन्हीं के साथ है। एक निर्दलीय विधायक भी तेजस्वी का साथ देने के तैयार हैं। यानि आरजेडी के खेमें में अभी भी 114 विधायक हैं। नीतीश के साथ 45 विधायक जेडीयू के और चार विधायक हम के हैं। भाजपा के अपने विधायक 77 हैं। दो साल पहले सीटों के गणित में नीतीश कुमार ऐसे पिछड़े कि कभी सत्ता की ड्राइविंग सीट पर बैठकर राष्ट्रीय पार्टी भाजपा को छोटे भाई की भूमिका देने वाले खुद उसी जगह पर आ गए। इसके बावजूद बिहार चुनाव के दौरान भाजपा के तमाम शीर्ष नेताओं, पीएम नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक ने नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात कही। वैसा मानकर उन्होंने मजबूरी में ही सही नीतीश को सीएम बनाया। सीएम तो बना दिया पर इस बार वे ड्राइविंग सीट पर नहीं रहे। ड्राइविंग सीट पर न होने की वजह से नीतीश कुमार खुद को असहज पा रहे हैं। उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि कहीं बिहार में भी भाजपा महाराष्ट्र वाला खेला न कर दे। इस बात के खौफ से नीतीश इतना डरे हैं कि वो तत्काल पलटू राम बनने को बेताब हैं। उन्हें लगता है कि आरसीपी सिंह कहीं शिंदे न बन जाएं और उनका ही खेल न कर दें।
तो क्या तेजस्वी मान मान जाएंगे
Bihar politics : दरअसल, तेजस्वी यादव ( Tejashwi Yadav ) इस समय बिहार की सत्ता से बाहर हैं लेकिन वो एक नेता के तौर पर पहले से ज्यादा मजबूत हैं। ऐसे में तेजस्वी यादव के सामने नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) की शर्तों की मानने की कोई वजह नहीं है। आरजेडी पहले ही संकेतों में कहती रही है कि तेजस्वी को प्रदेश की कमान मिले और नीतीश दिल्ली देखें। नीतीश कुमार पटना छोड़ना नहीं चाहते। सीएम की कुर्सी पर भी अपनी शर्तों पर बने रहना चाहते हैं, चाहे सहयोगी कोई रहे। इसलिए बिहार की राजनीति में खेल अभी बाकी है। देखते रहिए आज शाम तक क्या होता है। इस बात में दम इसलिए है कि अब कांग्रेस ने भी स्वीकार कर लिया है कि नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी से फोन पर बात की है। दूसरी तरफ ताजा खबर यह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ताजा घटनाक्रम के बीच नीतीश कुमार को फोनकर उनसे बातचीत की है। यानि नीतीश के पास मन बदलने का स्पेस अभी है।