Bihar News : स्पीकर पर नीतीश कुमार की गरज क्या बदलेगी बिहार की राजनीति की बिसात?
Bihar News : इस बार बिहार में नीतीश कुमार गठबंधन सरकार पहले की तरह बेरोकटोक अपने अंदाज में नहीं चला पा रहे हैं। उनकी असहजता इसी को लेकर है। दूसरी तरफ भाजपा की मजबूरी है कि गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी उसे नीतीश कुमार को सीएम स्वीकार करना पड़ रहा है। यही वजह है कि इस बार गठबंधन के दोनों प्रमुख दलों में रुक-रुककर विवाद होता रहता है, जो सियासी नजरिए से बहुत कुछ कहता रहता है।
बिहार में जेडीयू और भाजपा के बीच जारी गतिरोध पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट
नई दिल्ली। बिहार में जेडीयू-भाजपा गठबंधन की सरकार है, लेकिन एक दिन पहले बिहार विधानसभा ( Bihar Vidhansabha ) में जिस तरह से प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ( CM Nitish Kumar ) और स्पीकर विजय कुमार सिन्हा ( Vijay Kumar sinha ) के लिए बीच विरोधियों की तरह बहस हुई वो चौंकाने वाला है। खासकर विधानसभा के आब्जेक्शन पर जिस तल्ख अंदाज में सीएम नीतीश कुमार ने जवाब दिया है अब सोशल मीडिया से लेकर सियासी गलियारोंं चर्चा का विषय हो गया है। अब इस बात के कयास लगाया जा रहे हैं कि सत्ताधारी पार्टियोें में से दो प्रमुख दलों के बीच इस तरह से कानून व्यवस्था को लेकर आरोप-प्रत्यारोप को सामान्य घटना नहीं है।
सवाल उठाए जा रहे हैं कि बिहार की राजनीति ( Bihar Politics ) में आखिर कौन सी खिचड़ी पकाई जा रही है। क्या नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) एक बार फिर अपने फैसले से सभी चौकाएंगे। उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि वो कब कौन फैसला ले लें, इसके बरे में अनुमान लगाना आसान नहीं होता।
सियासी जानकारों का कहना है कि सीएम नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) का यों गरजना सामान्य बात नहीं है। इस बात में दम भी है। सीएम नीतीश कुमार एक ऐसे राजनेता हैं, जो शांत स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। वो सियासी उठापटक में भले माहिर हैं और सभी बदलावों को चौंकाने वाले अंदाज में चुपचाप जवाब देते हैं।
सवाल ये उठाए जा रहे हैं कि सोमवार को बिहार विधानसभा में ऐसा क्या हो गया कि जेडीयू ( JDU ) प्रमुख और सीएम नीतीश कुमार गर्जना करने लेगे, गर्जना ऐसी कि देश और दुनिया में चर्चा का विषय हो गया।
दरअसल, सोमवार को बिहाार विधानसभा ( Bihar Vidhansabha ) में जो कुछ हुआ, उसे असामान्य घटना माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेशकों का कहना है कि बिहार में सत्ताधारी गठबंधन इस बार पहले जैसा नेचुरल अलाएंस जैसा नहीं हैं। विगत नवंबर 2020 में सरकार बनने के समय से ही नीतीश कुमार ऐसा असहज कभी नहीं महसूस किया जैसा इस बार कर रहे हैंं अगर भाजपा ( BJP ) साथ उनके गठबंधन को देखा जाए तो आरजेडी के साथ डेढ़ साल को निकाल दिया जाए तो 16 साल से ज्यादा समय तक उन्होंने भाजपा के ही गुजारे हैं। इसके अलावा वो एनडीए ( NDA ) के सबसे पुराने और भाजपा के बाद सबसे प्रभावी सहयोगी हैं। इसके बावजूद इस तरह की घटनाएं चौंकाने वाली है।
इस बार सहज महसूस नहीं कर रहे नीतीश
इसके भी कई मायने लगाए जा रहे हैं। कुछ लोग कह रहे है कि नीतीश कुमार भाजपा से इतर नए विकल्प की तलाश में हैं। लेकिन सीएम पद पर बने रहने के लिए उनके पास भाजपा के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। आरजेडी इस बार उन्हें बतौर सीएम स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। इस बीच ये बात भी चर्चा का विषय रहा है कि नीतीश कुमार विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। एक अन्य मामला यह है कि नीतीश कुमार तेजस्वी यादव, लालू यादव, तेजप्रताप यादव आदि को लेकर आईआरसीटीसी और अन्य घोटालों को लेकर जिस फाइल जांच की सीबीआई कर रही है, से आगे तेजी से कार्रवाई चाहते हैं, लेकिन सीबीआई इस फाइल को दबाकर बैठी हैं। जानकारों का कहना है कि ऐसा केंद्र के इशारे पर हो रहा है। एक और बातें ये भी नीतीश कुमार के खिलाफ रुक-रुककर बयान देते रहते हैं, जिसे बर्दाश्त करना नीतीश कुमार की शैली में शुमार नहीं है। इतना ही नहीं 2005 से ही नीतीश कुमार बतौर सीएम बिहार को अपने अंदाज में चलाते आए हैं। उसमें कोई दखल उन्हें बर्दाश्त नहीं है। इस बार ऐसा वो नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए नीतीश कुमार सहज नहीं महसूस कर रहे हैं।
भाजपा की मजबूरी हैं नीतीश
दूसरी बार भाजपा ( JDU ) की परेशानी ये है कि वो बिहार में दूसरी बड़ी राजनीति पार्टी हैं। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में आरजेडी उभरकर सामने आई थी। उसे 75 सीटें हासिल है। भाजपा 75 सीटों के साथ दूसरे नंबर है। जेडीयू यानि नीतीश की पार्टी को 43 सीटें प्राप्त हैं। यही भाजपा को अखर रहा है। भाजपा को लगता है कि 74 सीटें हासिल कर भी उसे नीतीश कुमार को कामकाज के तरीके को बर्दाश्त करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं, भाजपा के पास कोई दूसरा सियासी विकल्प नहीं है। भाजपा आरजेडी के साथ ही सरकार बना सकती है, जो संभव नहीं है। इसलिए बिहार में भाजपा ने नीतीश कुमार को इस बार सीएम स्वीकार किया है। ताकि आरजेडी को सरकार बनाने से रोका जा सके। यूपी और मणिपुर में जेडीयू ने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा है। मणिपुर में जेडीयू के 6 विधायक जीते भी हैं।
अब नहीं रहा पहले वाला भरोसा
सियासी जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार इस स्थिति को लेकर लगातार दबाव में हैं और अपने लिए नई संभावनाएं भी देखते रहते हैं। वहीं भाजपा नेता भी समय-समय पर, खासकर कानून व्यवस्था, शराबबंदी, शिक्षा और स्वास्थ्य के स्तर, पेयजल परियोजनाओं आदि मो लेकर विवाद चलता रहता है। भाजपा नेता सीएम के वजूद पर सवाल उठाते रहते हैं। वहीं जेडीयू नेता भी इस बात को लेकर भाजपा को चुनौती देते रहते हैं। एक और खास बात यह है कि जब से आरसीपी सिंह मोदी मंत्रिमंडल में शामिल हुए नीतीश कुमार कुछ ज्यादा ही अहसज हो गए हैं। यही वजह है कि उन्होंने एक व्यक्ति एक सिद्धांत के तहत उनसे बिहार जेडीयू अध्यक्ष पद पर किसी और को जिम्मेदारी सौंप दी है।
क्या है पूरा मामला?
मुख्यमंत्री और स्पीकर के बीच बहस के पीछे भाजपा के दरभंगा से विधायक संजय सरावगी द्वारा बिहार में बढ़ते अपराधों को लेकर उठाया गया सवाल था। दरभंगा से विधायक संजय सरावगी ने कहा सदन में कहा ािा कि नौ लोगों की हत्या कर दी गई। सरकार ने कहा कि आठ व्यक्ति की हत्या हुई है। तीन व्यक्तियों की हत्या अपराधियों द्वारा की गई और पांच व्यक्तियों की हत्या अन्य कारणों से हुई। मैं पूछना चाहता हूं माननीय मंत्री जी से शेष पांच की हत्या किस कारण से हुई़। किसी ने तो हत्या की। तो वो कौन हत्यारा था। किसने हत्या की। उस पर क्या कार्रवाई हुई। विधायक सरावगी ने आगे कहा अध्यक्ष महोदय पुलिस की जो छवि गिर रही है, वो चिंता का विषय है। इन तमाम मामलों के साथ स्पीकर के क्षेत्र लखीसराय से जुड़े मामले को भी उठाया। सरावगी ने कहा कि और वो जो मामला चल रहा है लखीसराय वाला, हम बार-बार उस मामले से जोड़कर इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सरकार निर्दोष लोगों को पकड़ रही है और दोषी लोगों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
दरअसल, लखीसराय मामला इसके मूल में हैं। सरस्वती पूजा के अवसर पर कई स्थानों पर डीजे बजाया गया। कोरोना प्रोटोकॉल के लिहाज से इसे नियमों का उल्लंघन माना गया। इस मामले में लखीसराय पुलिस ने कई लोगों को खिलाफ कार्रवाई की। इसमें एक व्यक्ति विधानसभा स्पीकर विजय कुंमार सिन्हा का करीबी है। इस कार्रवाई को लेकर भाजपा मुखर है। भाजपा नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार के इशारे पर बिहार पुलिस बेलगाम है। मर्डर के मामलो में कार्रवाई नहीं करती, सरस्तवी पूजा को लेकर लोगोां के खिलाफ स्पीकर के विरोध के बावजूद कार्रवाई हुई है। स्पीकर सिन्हा ने इस मामले में नाखुशी जाहिर की थी। आरोप लगे कि कई लोगों को गलत तरह से गिरफ्तार किया गया। इस मामले में सदन की एक समिति ने पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि वो लखीसराय में एक डिप्टी एसपी और एसएचओ की ओर से स्पीकर से किए गए कथित दुर्व्यवहार की जांच कराएं। ये सब उस स्थिति में हो रहा जब नीतीश कुमार के पा ही गृह मंत्रालय यानि बिहार में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी है। भाजपा नेता कानून व्यवस्थ को लेकर ही लगातार सवाल उठा रहे हैं। फिर, बिहार में कानून व्यवस्था अब नियंत्रण में नहीं है।