मेरे मुवक्किल के साथ बर्बर-जघन्य अपराध करने वालों को रिहा कर उनके साथ दिखायी गयी नरमी, सुप्रीम कोर्ट में बिफरीं बिलकिस की वकील शोभा गुप्ता

गुजरात सरकार का बिल्किस बानो गैंगरेप के जेल में सजा भुगत रहे दोषियों को रिहा करने का निर्णय मानवता को शर्मसार करने वाला था, इसके खिलाफ रूपरेखा वर्मा, सुभासिनी अली और महुआ मोइत्रा समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिस पर सुनवाई हुई...

Update: 2023-10-12 05:54 GMT

Bilkis Bano Rape Case: बिल्किस बानो मामले में जानीमानी महिला कार्यकताओं ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

Bilkis Bano Case : बिलकिस बानो नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है। जी हां, यह वही बिलकिस बानो हैं जिनके साथ क्रूरता की हदें पार की गयी थीं, मगर बावजूद न्याय के गुजरात सरकार की पैरवी पर अपराधियों को पिछले साल न सिर्फ बाइज्जत बरी किया गया था, बल्कि मोदी के गुजरात में फूलमालाओं से बिलकिस के बलात्कारियों का भाजपा ने स्वागत भी किया था। बाद में अपराधियों को छोड़े जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी थी, जिस पर कल 11 अक्टूबर को सुनवाई हुई थी।

बुधवार 10 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान बिलकिस बानो के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उनकी मुवक्किल बिलकिस बानो के बलात्कारियों के साथ बहुत नरमी बरती गयी थी। उनके जघन्य अपराध की वीभत्स और बर्बर प्रकृति के बावजूद गुजरात सरकार ने अपराधियों का समर्थन किया।

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गौरतलब है कि बिलकिस बानो के बलात्कारियों को छोड़े जाने के खिलाफ 30 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं लगाई थीं। पहली याचिका में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देते हुए उन्हें तुरंत वापस जेल भेजने की मांग की थी, तो वहीं, दूसरी याचिका में कोर्ट के मई में दिए आदेश पर फिर से विचार करने की मांग की थी। गौरतलब है कि कोर्ट ने कहा था कि दोषियों की रिहाई पर फैसला गुजरात सरकार करेगी और इसका ट्रायल महाराष्ट्र में चला था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब केस का ट्रायल महाराष्ट्र में चल रहा हो तो फिर गुजरात सरकार इस मामले में फैसला कैसे ले सकती है?

सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा, सुहासिनी अली, TMC सांसद महुआ मोइत्रा और रेवती लाल की ओर से यह याचिका प्रसिद्ध एडवोकेट कपिल सिब्बल व अर्पणा भट्ट द्वारा दायर की गई थी। याचिका दायर करने के बाद एक याचिकाकर्ता रूपरेखा वर्मा ने जनज्वार से बात करते हुए कहा था कि गुजरात सरकार का बिल्किस बानो गैंगरेप के जेल में सजा भुगत रहे दोषियों को रिहा करने का निर्णय मानवता को शर्मसार करने वाला था। इंसानियत को शर्मसार करने वाले इस मामले को लेकर वह उच्चतम न्यायालय का दरवाजा बिल्किस को इंसाफ दिलाने के लिए खटखटा रहे हैं। हमारी याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है। रूपरेखा वर्मा ने कहा कि हत्यारे व गैंगरेप के दोषियों की रिहाई के बाद जिस प्रकार समाज द्वारा उन्हें महिमामंडित किया गया, वह देश को शर्मसार कर रहा है। पूरी दुनिया हमारी इस हरकत को देखकर अफसोस कर रही है, लेकिन इसके बाद भी रेपिस्टों का महिमामंडन जारी है।

कल सुप्रीम कोर्ट में बि​लकिस मामले की सुनवाई के दौरान पीड़िता की ओर से पेश वकील शोभा गुप्ता ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि दोषियों की समय से पहले रिहाई कानूनी थी, क्योंकि यह प्रासंगिक छूट नीति के अनुसार और सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के बाद दी गई थी, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा कई मामलों में उल्लिखित कारकों की ओर इशारा करती थी। शोभा गुप्ता ने कहा विचार के लिए महत्वपूर्ण कारकों में अपराध की प्रकृति, बड़े पैमाने पर समाज पर इसका प्रभाव और इसके द्वारा निर्धारित प्राथमिकता मूल्य शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा विचार में बताए गए इन तीन महत्वपूर्ण कारकों के बारे में कोई सुगबुगाहट भी नहीं है।"

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि विरोधी वकील ने निर्णयों का एक संग्रह प्रदान किया था, जो सुधार के सिद्धांत पर प्रकाश डालता था। उन्होंने हमें ऐसे फैसले दिए हैं जिनमें कहा गया है कि एक आदमी को सुधारने और समाज में फिर से शामिल होने का मौका दिया जाना चाहिए। इसलिए हमें दोनों पक्षों के हितों को संतुलित करना होगा।"

अदालत के इस तर्क पर बिलकिस की वकील शोभा गुप्ता ने कहा, "यह बंदूक की गोली से घायल होने का मामला नहीं है मिलॉर्ड्स! तीन साल की बेटी के सिर को पत्थरों से कुचल दिया गया था। आठ नाबालिगों की हत्या कर दी गई थी, जिसमें बिलकिस बानो की पहली संतान भी शामिल थी, जिसे पत्थर से कुचल दिया गया था। एक गर्भवती महिला के साथ गिरोह बनाकर बलात्कार किया गया, उसकी मां के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। इस तरह की घृणितता, क्रूरता, बर्बरता किसी के साथ नहीं हुई होगी। 'भयानक' अपराध किया गया मिलॉर्ड्स!'

शोभा गुप्ता ने कोर्ट में कहा, हत्या के कुल 14 मामले हैं। जिस स्थिति में लाशें मिलीं मिले, उनके बारे में पढ़कर दिल दहल जाता है, जिसका विवरण हाईकोर्ट ने दिया है। ये अपराध क्रूर, बर्बर और वीभत्स थे। दोषियों को सजा की एक निश्चित अवधि पूरी होने पर सजा में छूट पर विचार करने का अधिकार है। यहां मैं यह बताना चाहती हूं कि गुजरात में सत्तासीन भाजपा सरकार ने इस मामले की भारी उपेक्षा की है। यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें छूट दी जानी चाहिए। अगर ऐसे अपराधियों का इसी तरह स्वागत होगा तो समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा या इससे क्या प्राथमिकता तय होगी? दोषसिद्धि के समय विचार-विमर्श को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।"

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शोभा गुप्ता ने अदालत में खंडपीठ के सामने यह बात भी रखी कि बिलकिस बानो मामले में दोषियों को उदारतापूर्वक पैरोल और फर्लो पर रिहा किया गया था। दोषियों के साथ बहुत नरम व्यवहार किया गया। उन्हें पूरे समय सकारात्मक व्यहार मिला। वे विशेषाधिकार प्राप्त लोग थे। सजा माफी के उनके अनुरोध पर विचार करते समय प्रासंगिक कारकों की जांच नहीं की गई। सजा पूरी होने के बाद वे ज्यादातर छुट्टी या पैरोल पर बाहर थे। वे अन्य दोषियों और कैदियों की तरह नहीं थे।"

यहां यह बताना जरूरी है कि बिलकिस बानो के पूरे परिवार का कत्ल कर उसके साथ गैंगरेप करने के उन 11 दोषियों को जो की जेल में अपनी सजा काट रहे थे, गुजरात सरकार ने माफी देते हुए उन्हें जेल से रिहा कर दिया था। मानवता को शर्मसार करने वाले इन मुजरिमों की यह रिहाई गोधरा उप जेल से उस समय हुई थी जब पीएम नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2022 को आजादी के 75वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लालकिले के प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए नारी सम्मान की बात कही थी। एक तरफ जहां मोदी महिलाओं के सम्मान की बात कर रहे थे तो दूसरी ओर ठीक उसी दिन उनकी ही पार्टी की गुजरात सरकार गुजरात में गोधरा कांड के दौरान बिलकिस बानो गैंगरेप केस में दोषी सभी 11 सजायाफ्ता कैदियों को रिहा कर रही थी। बता दें कि गुजरात में 2002 गोधरा कांड हुआ था।

3 मार्च 2002 को दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव में बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप हुआ था और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। जब वारदात को अंजाम दिया गया था, तब बिलकिस बानो पांच महीने की गर्भवती थी। घटना में राधेश्याम शाही, जसवंत चतुरभाई नाई, केशुभाई वदानिया, बकाभाई वदानिया, राजीवभाई सोनी, रमेशभाई चौहान, शैलेशभाई भट्ट, बिपिन चंद्र जोशी, गोविंदभाई नाई, मितेश भट्ट और प्रदीप मोढिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था। पहले यह मामला अहमदाबाद के एक कोर्ट में चला, लेकिन बिलकिस बानो की आशंका के बाद इस केस को मुंबई ट्रांसफर कर दिया गया। कई सालों की सुनवाई के बाद 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 11 आरोपियों को दोषी पाया। सभी दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। दोषियों ने इस फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील भी की, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था। लेकिन गुजरात सरकार ने इन सबको इसी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर गुजरात विधानसभा के चुनाव में राजनैतिक लाभ लेने के लिए अपनी माफी नीति के तहत रिहा कर दिया था।

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