दिल्ली एमसीडी चुनावों में अपनी नाकामियाँ बता रही है भाजपा!
Delhi MCD Election : भारत ही अकेला ऐसा प्रजातंत्र होगा, जहां एक नगर निगम के चुनाव प्रचार के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर प्रधानमंत्री का चेहरा आगे किया जाता है
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
BJP led MCD has done nothing for public in past 15 years, so whole of Central Government is engaged in negative election campaigning. आजकल केंद्र सरकार अवकाश पर है, एमसीडी चुनावों में व्यस्त है। प्रधानमंत्री जी अघोषित तौर पर चुनावों में बीजेपी की अगुवाई कर रहे हैं, और सभी मंत्री-संतरी अपने मंत्रालयों का काम छोड़कर सड़कों पर चक्कर लगा रहे हैं।
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का और देश में कुल चुनावी चंदों में से लगभग तीन-चौथाई चन्दा पाने वाली भारतीय जनता पार्टी कितनी खोखली हो सकती है, इसका अंदाजा चुनाव प्रचारों और इसके नेताओं के वक्तव्यों में बार-बार स्पष्ट होता है। केंद्र में 8 वर्षों से सत्ता में बैठने और एमसीडी में पिछले 15 वर्षों से जमे रहने के बाद भी बीजेपी के पास अपनी उपलब्धियां बताने के लिए कुछ भी नहीं है। बीजेपी का पूरा चुनाव प्रचार ही निगेटिव प्रचार है, जिसमें बस आम आदमी पार्टी पर झूठे-सच्चे आरोपों की बौछार है।
इस बार बीजेपी का मुख्य नारा है – सेवा ही विचार, नहीं खोखले प्रचार। इस नारे के साथ एक जुमला या थोथा वादा लिए प्रधानमंत्री जी दिल्ली में हरेक जगह लटके हुए हैं, चिपके हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के लटकने और चिपकने की जगहें लगातार बढ़ती जा रही हैं। निश्चित तौर पर भारत ही अकेला ऐसा प्रजातंत्र होगा, जहां एक नगर निगम के चुनाव प्रचार के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर प्रधानमंत्री का चेहरा आगे किया जाता है। इससे दो बातें तो स्पष्ट हैं – पहला यह है कि बीजेपी भले ही दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती हो और शायद सबसे अमीर राजनीतिक पार्टी भी हो, पर मानसिक तौर पर एक खोखली पार्टी है, जिसमें केवल एक चेहरे के अलावा जनता को दिखाने के लिए दूसरा चेहरा नहीं है। दूसरी बात बीजेपी के लगातार बढ़ते, खंभों से लटके और पूरी दिल्ली में चिपके वादों से स्पष्ट है कि बीजेपी में पिछले 15 वर्षों में जनता की भलाई के लिए कोई काम ही नहीं किया है।
बीजेपी ने चुनाव प्रचारों में कागज़ का खूब इस्तेमाल किया है, जाहिर है कुछ दिनों बाद यह सड़कों से होता हुआ उसी कूड़े के पहाड़ पर पहुंचेगा, जिसे आम आदमी पार्टी ने मुख्य मुद्दा बनाया है। चुनाव के अंतिम सप्ताह में लगभग हरेक घर में बीजेपी प्रत्याशियों ने औसतन 5 पृष्ठों की सामग्री बांटी है। इसमें एक पर प्रधानमंत्री का एक वक्तव्य है, दूसरे पर गृह मंत्री का वक्तव्य है। तीसरे पृष्ठ का शीर्षक है, केजरीवाल के शासन में एएपी का भ्रष्टाचार और फिर चौथे पृष्ठ का शीर्षक है, आम आदमी पार्टी के वायदों की वास्तविकता। पांचवां पृष्ठ बताता है कि दिल्ली में बीजेपी द्वारा क्या जनता सेवा कार्य किये गए हैं। यदि आपको लगता है कि सेवा कार्यों में एमसीडी की उपलब्धियों को बताया गया है, तो आप पूरी तरह से गलत हैं, क्योंकि इसमें अधिकतर उपलब्धियां केंद्र सरकार की योजनाओं से सबंधित हैं।
प्रधानमंत्री भले ही बार-बार यह बताते हों कि उन्हें सत्ता की ललक नहीं है, बल्कि वे तो जनता की सेवा करना चाहते हैं, पर यदि आप एमसीडी चुनावों की पूरी प्रक्रिया पर गौर करें तो निश्चित तौर पर पायेंगे कि बीजेपी को जनता से कोई मतलब नहीं है और वह किसी भी तिकड़म से ग्राम पंचायत से लेकर केंद्र तक हरेक जगह बस सत्ता का सुख भोगना चाहती है।
पिछली बार चुनावों के ऐलान वाले ही दिन जब बीजेपी को अपनी हालत कमजोर लगने लगी तब ऐन वक्त पर गृह मंत्रालय ने तीनों नगर निगमों को एक करने का ऐलान कर चुनाव को रोक दिया। इसके बाद आम आदमी पार्टी के हरेक नेता पर बिना सबूत ही जांच एजेंसियों से छापा डलवाते रहे। जहां छापा पड़ता, उस नेता को मीडिया और बीजेपी नेता सरेआम अपराधी करार देते। इस काम में दिल्ली के एलजी ने भी केंद्र का साथ दिया। इसके बाद तमाम नेताओं की सीडी का दौर शुरू हुआ।
अब चुनाव प्रचार में भी मुख्य मुद्दा आम आदमी पार्टी का विरोध है। मामला यहीं ख़त्म नहीं हुआ है, इन चुनावों में अनेक निरादीय प्रत्याशी भी हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर बीजेपी के समर्थन में प्रचार कर रहे हैं। इतने के बाद भी, यदि बीजेपी को हारने की भनक लगी तब कुछ नया तमाशा सामने आयेगा। आखिर सत्ताजीवी पार्टी की पहचान ही झूठे वादे, विरोधियों के लिए दुष्प्रचार और चरित्र हनन और किसी भी हथकंडे को अपनाकर सत्ता पर काबिज रहना है।
बीजेपी हरेक समय आरोप लगाती हो कि दिल्ली सरकार ने उसे निर्धारित राशि से कम फंड दिए, पर इनकी चुनावी रैलियों और दूसरे प्रचार के तरीकों से जिस समृद्धि का पता चलता है, उससे तो यही प्रश्न उठता है कि बीजेपी के मौजूदा पार्षद एमसीडी में बैठ कर खूब अमीर होते रहे हैं। इतने भव्य चुनाव प्रचारों पर मजाल है कि चुनाव आयोग कोई भी आवाज उठाये।
बीजेपी की चुनाव प्रचार सामग्री में प्रधानमंत्री जी की मुस्कराती तस्वीर के साथ एक वक्तव्य है, जीवन की सुगमता प्रत्येक नागरिक का अधिकार है, इसलिए इसे बढ़ाना हमारे सरकार की प्राथमिकता रही है। जो शहर दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी हो, जहां की नदी का हिस्सा देश में किसी भी नदी का सबसे प्रदूषित हिस्सा हो, जिस शहर की हरियाली साल दर साल कम हो रही हो, और जहां कचरे के पहाड़ खड़े हों – वहां जीवन के सुगमता की बात ही प्रवचन जैसी लगती है, हकीकत नहीं।
बीजेपी की सारी दबंगई के बाद भी डटकर खड़ी AAP भी कुछ हद तक बीजेपी की राह पर है। दिल्ली में जगह-जगह आपको विज्ञापन बोर्ड पर नजर आयेगा – केजरीवाल की सरकार, केजरीवाल का पार्षद। इन विज्ञापनों से इतना तो स्पष्ट है कि जिस तरह बीजेपी एक व्यक्तिवादी पार्टी है, जिसमें ग्राम पंचायत का चुनाव भी केवल प्रधानमंत्री के चेहरे और नाम से लड़ा जाता है – ठीक वैसे ही केजरीवाल अपने ही पार्टी से आगे निकल गए हैं। जिस तरह बीजेपी तमाम चुनावों में डबल इंजन का पासा फेंकती है, ठीक वैसे ही इस बार आम आदमी पार्टी ने भी नारा गढ़ा है।
यदि चुनाव पूरी तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष होते हैं, जिसकी संभावना कम ही नजर आती है, तब यह देखना दिलचस्प होगा कि हमारा प्रजातंत्र ज़िंदा भी है या फिर पूरी तरह से मर चुका है और क्या जनता पूरी तरह से राजनैतिक अज्ञानता के अँधेरे में समा चुकी है।