अर्णब के लिए दिल्ली में लगे आपातकाल 2 के पोस्टर, जनता बोली चोट लगी अर्णब को तड़प रहे भाजपाई

अर्णब की गोस्वामी को लेकर हिंदूवादी संगठन करणी सेना भी दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर चुका है, इस दौरान करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस के विरोध में जमकर नारेबाजी की...

Update: 2020-11-06 06:08 GMT

नई दिल्ली। देश की राजधानी की सड़कों पर एक अलग तरह के लगाए गए पोस्टर नजर आ रहे हैं। पोस्टरों में आपातकाल 2.0 लगा बताया गया है। सवाल यह बना हुआ है कि आखिर ये पोस्टर लगाये किसने। ये पोस्टर भाजपा ने लगाए हों या उसके समर्थकों ने लेकिन ये लगे हैं अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी के बाद।

आपातकाल 2.0 पोस्टर में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की तस्वीर लगायी गयी है। कहा जा रहा है कि इन पोस्टरों को भाजपा के वरिष्ठ नेता तेजेंदर पाल सिंह बग्गा ने लिखा है। यह पोस्टर वरिष्ठ पत्रकार अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी को लेकर है, जिसे लेकर भाजपा पूरे देश में मुखरता से आवाज उठा रही है और तमाम वरिष्ठ भाजपायी इसे आपातकाल करार दे रहे हैं।

जो पोस्टर लगाया गया है उसमें लिखा है, आपातकाल 2.0 में आपका हार्दिक स्वागत है। यह पोस्टर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता तजिंदर पाल सिंह बग्गा की ओर से लगाया है। इस पोस्टर में नीचे की ओर लिखा है- 'issued by: Tajinder Pal Singh Bagga'

गौरतलब है ​कि अर्णब की गोस्वामी को लेकर हिंदूवादी संगठन करणी सेना भी दिल्ली के जंतर मंतर पर बृहस्पतिवार 5 नवंबर को प्रदर्शन कर चुका है। इस दौरान करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस के विरोध में जमकर नारेबाजी की थी।

फेसबुक यूजर राजीव श्रीवास्तव अपनी पोस्ट में इस पोस्टर के विरोध में लिखते हैं, 'आज तुम्हारे एक आदमी को जेल हो गई तो आपातकाल याद आ गया? बड़े बड़े पोस्टर लगा रहे हो आपातकाल के दिल्ली में। शर्म तो नहीं आ रही? जब असली आपातकाल लगा था तो माफीवीर बने घूम रहे थे, सब संघी। आज तुम्हें नर्क दिखने लगा? भारत का गृह मंत्री तो भाजपाई है। उसको बोलो 355, 356 लगाने की कोशिश करे महाराष्ट्र में। फिर जनता का आपातकाल यानी असली आपातकाल देखने को मिलेगा तुम सबको। अभी बिहार में लाले पड़े हैं जीतने के। अब यही हाल पूरे देश में होगा। देखते जाओ।'

राजीव कहते हैं, वीरों की सिख कौम के नाम पर धब्बा तेजिंदर बग्गा जो यह पोस्टर लगा रहा है, उसको पूछो की जब प्रशांत भूषण को मारा था तब आपातकाल था या वह गुंडागर्दी थी? दो कौड़ी का बग्गा अब संघियों के साथ रहकर इतना बड़ा हो गया कि देश की राजधानी को गंदा करे? अगर असली सिख है तो मर्दानगी दिखाए और यह पोस्टर अपने नाम से मुंबई में लगाए। फिर देखे और बताए कितनी सूजी। मरियल सा दिखने वाला बग्गा अपनी औकात भूल गया है। दो लट्ठ पड़े सही जगह तो दिमाग दुरुस्त हो जाए।

सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं, भाजपा के तमाम मंत्री बड़ी बेशर्मी से अर्नब के साथ खड़े दिख रहे हैं। क्या अर्नब ने वैसा ही नहीं किया जैसा संजीव भट्ट ने किया था? अगर हां तो आपातकाल तो 2014 से ही लगा है। अगर अर्नब बेकसूर है तो भट्ट साहब भी बेकसूर हैं। उनका केस भी वापस लो। अगर संजीव को उम्रकैद हुई तो उससे कम तो अर्नब को भी नहीं होनी चाहिए। बाकी न्यायालय को अपना काम करने दो। टांग मत अड़ाओ बीच में नहीं तो जनता कहीं का नहीं छोड़ेगी। जनता ने देखा है कि तुमने क्या किया यूपी, एमपी और तमाम अन्य राज्यों में। कफील, सुधा भारद्धाज, सोनी सोरी, वरवरा राव वगैरह के नाम याद हैं या भूल गए बेशर्मों ?

राजीव कहते हैं, 'जनता पक चुकी है तुम्हारे शासन से। लुट चुकी है। भूखी मर रही है। तुम्हें वह नहीं दिख रहा। एक कुत्ते का भौंकना दिख रहा है। क्यों चिल्लाता था अर्नब अपने शो में "आओ उद्धव आओ"। लो आ गया उद्धव। अब झेलो। मिमियाते हुए जेल गया नौटंकी। एक बेचारी छोटी सी अदाकारा हो या थरूर की पत्नी का मामला। अपनी अदालत लगाकर बैठता था। अब गया है असली अदालत में। दिमाग सही हो जाएगा ....। अब देखते हैं जोर कितना बाजुएं दिल में है, गोस्वामी के।

अर्णब की गिरफ्तारी पर फिरोज खान लिखते हैं, 'अर्नब गोस्वामी पत्रकार नहीं हैं और वे जो कर रहे थे उसका पत्रकारिता से कोई नाता नहीं है। हां, उनका इतना सहयोग या प्रयोग जरूर है कि वे पत्रकारिता को कॉमिडी और सोशल लिंचिंग के करीब ले आए। वे ऐसे क्रांतिकारी पार्टी प्रवक्ता हैं जो टीवी स्टूडियो में बीजेपी और संघ का एजेंडा चलाते हैं और घर में भ्रम बनाये रखने के लिए चे ग्वेवारा की तस्वीर लगाते हैं। लोग पूछ रहे हैं कि इतने पुराने मामले में उनको गिरफ्तार क्यों किया गया। लोग यह क्यों नहीं पूछते कि बीजेपी की सरकार के दौरान उस मामले को बंद क्यों कर दिया गया था। अब बीजेपी और सिर्फ बीजेपी मय भक्तों के खुलकर उनके समर्थन में सामने आई है तो क्या संदेह गहरा नहीं जाता कि तब केस क्यों बन्द किया गया था।'

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