सुर्खियां और आलोचना दोनों बटोर गया इस बार का राष्ट्रपति दौरा, UP के चुनावी मोड में कहीं स्क्रिप्टेड तो नहीं

इस बार ऐसा क्या था कि राष्ट्रपति पर पूरी सरकार को इतना प्यार, दुलार आया कि पूरे यूपी को महामहिम के आने की खबर हो गयी। तो क्या इस सफर के पीछे दलित वोटों का खेल था। इस विषय को लेकर जनज्वार ने पहले दिन ही एक वीडियो दिखाया था...

Update: 2021-06-30 04:02 GMT

यूपी चुनाव से पहले दलितों के अगुवा बाबा साहब आंबेडकर की मूर्ती का शिलान्यास करते महामहिम. 

जनज्वार, लखनऊ। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के कानपुर आने से लेकर वापस जाने तक जो सुर्खियां समेटी और की गईं क्या वो पहले से तय थीं। क्या राष्ट्रपति की यह यात्रा पहले से स्क्रिप्टेड थी। महामहिम के सफर को लेकर कई तरह की बातें उठ रही हैं।

महामहिम पहले भी यूपी आये थे लेकिन कब आये और कब चले गये किसी को पता भी नहीं चलता था। लेकिन इस बार ऐसा क्या था कि राष्ट्रपति पर पूरी सरकार को इतना प्यार, दुलार आया कि पूरे यूपी को महामहिम के आने की खबर हो गयी। तो क्या इस सफर के पीछे दलित वोटों का खेल था। इस विषय को लेकर जनज्वार ने पहले दिन ही एक वीडियो दिखाया था। जो बातें उनके जाने के बाद लगातार उठ रही हैं।

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गिरीश मालवीय इस विषय पर लिखते हैं कि 'मुझे तो लगता है कि रामनाथ कोविंद को यह टारगेट ही दिया गया था कि उनकी यात्रा अधिक से अधिक चर्चा बटोरे ताकि यूपी चुनाव में दलित राष्ट्रपति के नाम पर जमकर वोट उगाही की जा सके, वर्ना ट्रेन से पैतृक गाँव जाना, गाँव की मिट्टी उठाना ओर वेतन पर इनकम टैक्स लगने जैसी भाषणबाजी टाइप की बेवकूफाना हरकते नही करते, सब काम एक लंबी प्लानिंग के तहत किया जा रहा है।'

कानपुर की धरती पर उतरते ही राष्ट्रपति का पहला भाषण उनकी सैलरी से काटे जा रहे कथित टैक्स को लेकर रहा। फिर अपने से अधिक खुशहाल उन्होने शिक्षकों को बताया। वो भी तब जब पंचायत चुनाव के दौरान हजारों शिक्षकों की मौत हो गई। देश का सबसे उंचा पद संभाल रहे रामनाथ कोविंद दलित जाति से आते हैं। कानपुर में बेतुका भाषण देने के बाद लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी द्वारा उनसे बाबा साहब आंबेडकर स्मारक व सांस्कृतिक केंद्र की नींव रखवाना सब एक रणनीति के तहत किया गया।

सामाजिक कार्यकर्ता चतुरानन ओझा राष्ट्रपति की यात्रा को लेकर कहते हैं 'भाजपा ने धर्म के झंडे के समानांतर जाति की राजनीति को साधने में अपनी सारी ताकत लगा दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने बहुत पहले अपनी जाति का उल्लेख करते हुए इसकी घोषणा कर दी थी। आज बीजेपी की जीत उसके जातीय समीकरण को साधने में ही निहित है। दलित राष्ट्रपति दलित वोट साधने के लिए ही बनाया गया था और उनकी यह यात्रा उसी परियोजना का हिस्सा है।'


ऐपवा की लखनऊ प्रभारी मीना सिंह कहती हैं कि 'प्रदेश में भाजपा की चुनाव तैयारी को देखते हुए इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता है की चौतरफा सवालों से घिरी मोदी-योगी सरकार ने छिटकते दलित मतों को रिझाने के लिए राष्ट्रपति का इस्तेमाल चुनाव के लिए किया हो। लेकिन ऐसा लग रहा है कि ये बाजी उल्टी पड़ गयी है। पहला वीआईपी कल्चर की वजह से वंदना मिश्रा की जिस तरह दुःखद मौत हुई और दूसरा टैक्स देने से दुःखी होने वाला उनका बयान, तीसरा किसी भी तरह से उनके भाषण ने दलितों के हितों व जिस तरह से उत्तर प्रदेश में दलितों पर हिंसा की घटनाएं बढ़ी है उसको टच किया। चौतरफा अपमान उत्पीड़न झेलते, साथ ही बेरोजगारी व महंगाई की मार के सबसे बदतरीन शिकार दलितों को बाबा साहब की मूर्ति का अनावरण समारोह करके नहीं फुसलाया जा सकता है।'

वरिष्ठ पत्रकार सुशील दुबे कहते हैं 'आये स्वागत है, लेकिन कोई बिना विशेष प्रयोजन के। महामहिम का रेल से आकर वेतन वाला वक्तव्य कुछ समझ नही आया। बाकी अब महामहिम पद दलित सवर्ण के सवालों के घेरे में आ जाये तो अफसोस होता है।'

लखनऊ की नौकरशाही के एक बड़े सूत्र ने जनज्वार को नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि 'क्या अब से पहले कोई राष्ट्रपति यूपी नहीं आया। याद कीजिए अब्दुल कलाम भी हमारे देश के महामहिम रह चुके हैं। वह तमाम तामझाम से दूर रहते थे। लेकिन रामनाथ कोविंद का अपने गांव जाना वो भी ट्रेन से, सैलरी पर भाषण देकर आम जन को टैक्स के लिए प्रेरित करना, गरीबी और अव्यवस्थाओं को भुला देना, टीचरों पर दिया गया बयान इन सबके बहुत अलग मायने हैं। और यह सब तब है जब, ध्यान रहे की यूपी में अगले वर्ष पहले पखवाड़े में ही चुनाव होने हैं। छोटी बात नहीं है।'

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