बसपा सुप्रीमो की सतीश मिश्रा के बहाने ब्राह्मण वोट साधने की कोशिश, बोलीं अखिलेश ने किया दलितों-ब्राह्मणों का अपमान

मायावती बोलीं ब्राह्मण व दलितों की सपा सरकार में आये दिन हत्या होती थी, उन्हें कुछ समझा नहीं जाता था। ऐसे में भाजपा सरकार को कानून की नसीहत देने का समाजवादी पार्टी को कोई अधिकार नहीं...

Update: 2020-10-30 02:51 GMT

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के घटनाक्रम ने राजनीति का जो समीकरण बदला है, उसने प्रदेश में नए सियासी समीकरणों को हवा दे दी है। इन नए समीकरणों से 2022 के विधानसभा चुनावों की स्थिति का आंकलन लगने लगा है। इसी के साथ बहनजी यानी मायावती ने सतीश चंद्र मिश्रा के बहाने यूपी के ब्राह्मणों पर भी सॉफ्ट टारगेट किया है।

उत्तर प्रदेश की सियासत में जाति पाति का बेहद अहम रोल रहता आया है। मायावती ने कहा कि उन्होंने अखिलेश को कई बार फ़ोन किया, पर उन्होंने एक बार भी नहीं उठाया। यहां तक कि अखिलेश ने सतीश चंद्र मिश्रा का फ़ोन भी नहीं उठाया। ब्राह्मणों को साधने के लिए मायावती ने कहा सतीश चंद्र मिश्रा एक प्रतिष्ठित अधिवक्ता हैं, उन्हें राजनीति का भी अच्छा तजुर्बा है। अखिलेश ने उनका अपमान करके पूरे प्रदेश के ब्राह्मणों का अपमान किया है।

आगे बोलते हुए बहनजी ने कहा कि सतीश चंद्र मिश्रा के इस अपमान का बदला यूपी का ब्राह्मण आने वाले विधानसभा चुनाव में जरूर लेगा। मायावती बोलीं कि ब्राह्मण व दलितों की सपा सरकार में आये दिन हत्या होती थी, उन्हें कुछ समझा नहीं जाता था। ऐसे में भाजपा सरकार को कानून की नसीहत देने का समाजवादी पार्टी को कोई अधिकार नहीं। उन्होंने कहा कि बसपा शासन ने प्रदेश को बेहतर कानून व्यवस्था का माहौल दिया था।

मायावती ने कहा कि राज्यसभा अधिसूचना जारी होने के बाद उन्होंने अखिलेश को फ़ोन किया, फ़ोन नहीं उठा। उनके पीएस को फोन किया गया, उसने कहा बात करा देंगे लेकिन नहीं कराई। जिसके बाद सतीश चंद्र मिश्रा ने रामगोपाल यादव से बात की। रामगोपाल ने ही एक प्रत्याशी उतारने की बात कही थी, लेकिन अखिलेश ने अपने पिता की तरह ही दलित विरोधी काम किया है, लेकिन वे इस षड्यंत्र में नाकामयाब रहे।

बसपा सुप्रीमो ने कहा कि वह सोचती थी कि अखिलेश यादव राज्यसभा चुनाव में रामगोपाल यादव के अलावा दूसरा प्रत्याशी पत्नी डिंपल यादव को बनायेंगे। वह कन्नौज का चुनाव हार गईं थीं। मायावती ने कहा कि उन्होंने तय कर लिया था कि अगर अखिलेश डिंपल को खड़ा करते तो बसपा अपना प्रत्याशी नहीं उतारती और डिंपल को समर्थन देती, लेकिन अखिलेश ने फ़ोन ही नहीं उठाया।

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