क्या विपक्ष आज संघ परिवार-BJP के गाय को लेकर किए जा रहे अतिश्योक्तिपूर्ण और झूठी प्रस्थापनाओं को नकारने का रखता है साहस?
गाय को लेकर संघ-भाजपा द्वारा प्रस्थापित मान्यताओं को नकारने का साहस विपक्ष नहीं करेगा और इसके खिलाफ वर्तमान समय में अपना स्पष्ट दर्शन विकसित नहीं करेगा तो उसके हाथ कुछ आने वाला नहीं है, सत्ता भले इसके सहारे मलाई खाए, विपक्ष के पास गाय का पिलपिला बदबू वाला गोबर भी हाथ आने वाला नहीं है...
हरे राम मिश्रा की टिप्पणी
BJP Cow Politics vs opposition : उत्तर प्रदेश में संघ और BJP की राजनीति के खिलाफ समूचे विपक्ष का संकट यह है कि वह संघ परिवार और BJP के द्वारा गाय को जानवर से देवता, माता या 'इंसान से ज्यादा महत्वपूर्ण प्राणी' स्थापित करने के उसके अभियान के खिलाफ अपनी स्पष्ट लाइन का प्रदर्शन करने से भाग रहा है।
संघ और बीजेपी का कैडर गाय को एक मामूली जानवर के इतर राष्ट्रीय महत्व का एक ऐसा देवता प्रचारित करने मे जुटा है जिसमें राष्ट्र और उसके कथित प्राचीन गौरव का स्पष्ट वहन होता है। वह गाय को मानव से श्रेष्ठ मानता है और इस प्रस्थापना में एकदम स्पष्ट है और इस पर वोट मांगता है। आदमी जाड़े में भले मर जाएं, लेकिन गाय के लिए जाना स्पेशल कोट बननी चाहिए और गाय तक पहुंचनी चाहिए। गाय से ज्यादा महत्वपूर्ण आदमी नहीं है।
यही नहीं अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह इसी की आड़ में अल्पसंख्यक जमात पर हमला करता है, ताकि बहुसंख्यक समाज के बीच उसका दबदबा बना रहे और उसके गाय प्रेम पर कोई सवाल नहीं हो, ताकि इसकी आड़ में वह सत्ता की मलाई चाभ सके।
हालांकि, यह बात अलग है कि इसकी आड़ में देश का नौजवान, गरीब और उसका तथा देश का विकास सब रसातल मे चला जाता है। मतलब कि पूरे लोकतंत्र पर गाय गोबर करती है और सड़क पर पूँछ उठा कर नाचती है।
लेकिन, यह तो सत्ता की सियासत हुई। सवाल यह है कि इस राजनीति के खिलाफ विपक्ष के पास क्या 'दर्शन' है? क्या वह संघ परिवार अथवा बीजेपी द्वारा गाय को लेकर किए जा रहे अतिश्योक्ति पूर्ण और झूठी प्रस्थापनाओं को नकारने का साहस रखता है? या फिर छोटे से किंतु परंतु के साथ वह बीजेपी द्वारा तैयार किए जा रहे इस माइंडसेट mindset वाले जनमानस के बीच कुछ वोट की तलाश करता है?
अगर इस प्रस्थापना को नकारने का साहस विपक्ष नहीं करेगा और इसके खिलाफ वर्तमान समय में अपना स्पष्ट दर्शन विकसित नहीं करेगा तो उसके हाथ कुछ आने वाला नहीं है। सत्ता भले इसके सहारे मलाई खाए, विपक्ष के पास गाय का पिलपिला बदबू वाला गोबर भी हाथ आने वाला नहीं है।
और राजनीतिक पटल से अप्रासंगिक होकर गायब होना तो तय ही है। तय करिये पॉलिटिकल लाइन अन्यथा बदबूदार पिलपिला गोबर आपका स्वागत करने के लिए तैयार है। उसी मे दफन हो जाइएगा।