Eknath Shinde : कौन हैं उद्धव ठाकरे की सत्ता हिलाने वाले एकनाथ शिंदे, ऑटो चलाकर बने MLA, अब महाराष्ट्र की राजनीति में मचाई उथल-पुथल

Eknath Shinde : एकनाथ शिंदे जब 16 साल के थे, तब एकनाथ शिंदे ने अपने परिवार की मदद करने के लिए काफी समय तक ऑटो रिक्शा भी चलाया, इसके आलावा एकनाथ शिंदे ने पैसे कमाने के लिए शराब की फैक्ट्री में भी काफी समय तक काम किया, इसके बाद उन्होंने शिवसेना पार्टी ज्वाइन कर ली...

Update: 2022-06-24 06:52 GMT

Eknath Shinde : कौन हैं उद्धव ठाकरे की सत्ता हिलाने वाले एकनाथ शिंदे, ऑटो चलाकर बने MLA, अब महाराष्ट्र की राजनीति में मचाई उथल-पुथल

Eknath Shinde : इस समय महाराष्ट्र (Maharashtra) की पूरी सियासत अगर किसी एक व्यक्ति के ऊपर टिकी है तो वो हैं एकनाथ शिंदे। शिवसेना (Shiv Sena) के बागी नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) इस वक्त काफी चर्चा में हैं। सुर्खियों में रहने का कारण यह है कि उनका एक फैसला अब महाराष्ट्र की सरकार गिरा (Maharashtra Political Crisis) सकता है। सभी बागी विधायकों ने हर फैसला अब एकनाथ शिंदे के ऊपर ही छोड़ रखा है और सभी का कहना है कि जो फैसला एकनाथ शिंदे लेंगे वो सभी बागियों को मान्य होगा। ऐसे में यह जानिए कि आखिर कौन हैं एकनाथ शिंदे, जिन्होंने उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की कुर्सी हिला दी है। साथ ही महाराष्ट्र कि रणनीति में उथल-पुथल मचा दी है और कैसे वो अचानक महाराष्ट्र की राजनीति के इतने अहम नेता बन गए।

ऑटो चलाकर विधायक बने एकनाथ शिंदे

58 साल के एकनाथ शिंदे का जन्म महारष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था और उनका बचपन काफी गरीबी में बीता। एकनाथ शिंदे जब 16 साल के थे, तब एकनाथ शिंदे ने अपने परिवार की मदद करने के लिए काफी समय तक ऑटो रिक्शा भी चलाया। इसके आलावा एकनाथ शिंदे ने पैसे कमाने के लिए शराब की फैक्ट्री में भी काफी समय तक काम किया। बताया जाता है कि इसके बाद उन्होंने शिवसेना पार्टी ज्वाइन कर ली। बता दें कि उस समय महाराष्ट्र में शिवसेना अकेली ऐसी पार्टी थी , जो हिंदुत्व के मुद्दे पर लोगों के बीच जाती थी। इस मामले में बीजेपी भी उससे काफी पीछे थी।

बता दें कि एकनाथ शिंदे 2004 में पहली बार विधायक बने थे और बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद उन्हें शिवसेना के सबसे बड़े नेता के तौर पर देखा जाता था। हालांकि पिछले दो वर्षों में उनका ये कद घट गया और पार्टी में उनसे ज्यादा उद्धव ठाकरे के पुत्र और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे को ज्यादा प्राथमिकता दी जाने लगी, जिससे एकनाथ शिंदे खफा हो गए। असल में एकनाथ शिंदे पार्टी में सिर्फ नाम के लिए रह गए थे और उन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था।

आनंद दीघे से प्रेरित होकर राजनीति में आए एकनाथ शिंदे

बता दें कि शिवसेना में जाने को लेकर एकनाथ शिंदे को प्रेरणा बाल ठाकरे से नहीं बल्कि तब के कद्दावर नेता आनंद दीघे से मिली थी। आनंद दीघे से ही प्रभावित होकर एकनाथ शिंदे ने शिवसेना ज्वाइन कर ली। पहले शिवसेना के शाखा प्रमुख और फिर ठाणे म्युनिसिपल के कॉर्पोरेटर चुने गए लेकिन एक दौर उनके निजी जीवन में ऐसा आया कि उस वक्त वो बुरी तरह टूट गए। एकनाथ शिंदे इस दौर को अपने जीवन का काला दौर बताते हैं। यह समय था जब उनका पूरा परिवार बिखर गया था। उनके बेटा-बेटी की मौत के बाद तो एकनाथ शिंदे ने राजनीति छोड़ने तक का फैसला कर लिया था लेकिन इस बुरे दौर में भी उन्हें आनंद दीघे ने ही सही राह दिखाई और राजनीति में सक्रिय रहने को कहा।

आंखों के सामने डूब गए बेटा-बेटी

बता दें कि 2 जून 2000 को एकनाथ शिंदे ने अपने 11 साल के बेटे दीपेश और 7 साल की बेटी शुभदा को खो दिया था। एकनाथ शिंदे अपने बच्चों के साथ सतारा गए थे। बोटिंग करते हुए एक्सीडेंट हुआ और एकनाथ शिंदे के दोनों बच्चे उनकी आंखों के सामने ही डूब गए। उस समय एकनाथ शिंदे का तीसरा बच्चा श्रीकांत सिर्फ 14 साल का था।

एकनाथ शिंदे को मिली अपने गुरु की राजनितिक विरासत

कुछ समय बाद ही एकनाथ शिंदे के गुरु आनंद दीघे की भी अचानक मौत हो गई। 26 अगस्त 2001 को एक हादसे में आनंद दीघे की मौत हो गई। उनकी मौत को आज भी कई लोग हत्या मानते हैं। आनंद दीघे की मौत के बाद शिवसेना को ठाणे क्षेत्र में खालीपन आ गया और शिवसेना का वर्चस्व कम होने लगा लेकिन समय रहते पार्टी ने इसकी भरपाई करने की योजना बनाई और एकनाथ शिंदे को वहां की कमान सौंप दी। एकनाथ शिंदे शुरुआत से ही आनंद दीघे के साथ जुड़े हुए थे इसलिए वहां कि जनता ने एकनाथ शिंदे पर भरोसा जताया और पार्टी का परचम लहाराता रहा।

जनता के सेवक बने एकनाथ शिंदे

बता दें कि एकनाथ शिंदे के करीबियों का कहना है कि वो भी अपने गुरु की तरह ही जनता के सेवक बने रहे। साल 2004 में एकनाथ शिंदे पहली बार विधायक बने। इसके बाद 2009, 2014, और 2019 विधानसभा चुनाव में भी जनता ने उन्हें ही जिताया। मंत्री पद पर रहते हुए एकनाथ शिंदे के पास हमेशा अहम विभाग रहे। साल 2014 में फडणवीस सरकार में वो PWD मंत्री रहे। इसके बाद 2019 में शिंदे को सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और नगर विकास मंत्रालय का जिम्मा मिला। बता दें कि महाराष्ट्र में आमतौर पर CM यह विभाग अपने पास रखते हैं।

एकनाथ शिंदे की शिवसेना से बढ़े नाराजगी

बता दें कि बीते दो सालों में एकनाथ शिंदे की नाराजगी की बड़ी वजह यह भी रही कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने न तो कोई बड़ी बैठक की और न ही विधायकों से ज्यादा मिले। यह भी कहा गया कि सीएम भले ही शिवसेना से है लेकिन सरकार का रिमोट NCP के शरद पवार के हाथ में ही रहता है। ऐसे में उद्धव ठाकरे की जगह एकनाथ शिंदे विधायकों से लगातार मिलते रहे और उनकी समस्याएं सुलझाते रहे। यहीं अंदरखाने उन्होंने शिवसेना के विधायकों का भरोसा जीता लिया और बगावत के लिए तैयार कर लिया। 

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