BJP के कट्टर समर्थक तीर्थ पुरोहितों ने PM मोदी के केदारनाथ आगमन से पहले पूर्व CM त्रिवेंद्र रावत को दिखाये काले झंडे
PM मोदी के आने से पहले केदारनाथ में पूर्व मुख्यमंत्री को दिखाए काले झण्डे, कैबिनेट मंत्री धनसिंह रावत व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक को नहीं करने दिए दर्शन, गंगोत्री बाजार बंद, आंदोलन की तपिश से सहमी भाजपा सरकार...
सलीम मलिक की रिपोर्ट
देहरादून। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 5 नवंबर को प्रस्तावित केदारनाथ धाम के दौरे से पहले तीर्थ पुरोहितों ने चारधाम देवस्थानम बोर्ड के खिलाफ आंदोलन तेज करने कर दिया है। इसके तहत सोमवार 1 नवंबर को गंगोत्री के बाजार बंद है, जिस वजह से केदारनाथ में पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को तीर्थ पुरोहितों के विरोध का सामना करना पड़ा।
केदारनाथ जा रहे रावत को त्रिवेंद्र सिंह रावत को रास्ते में रोक दिया गया। गंगोत्री में तीर्थ पुरोहित, पंडा समाजा, हक हकूकधारियों के साथ ही स्थानीय व्यापारी जुलूस निकाला। इसके साथ ही तीर्थ पुरोहित गंगोत्री मंदिर की नियमित पूजा के अलावा अन्य तीर्थ यात्रियों के आग्रह पर होने वाली पूजा-पाठ नहीं करा रहे हैं। इस दौरान यात्री केवल मंदिर में दर्शन कर रहे हैं।
देवस्थानम बोर्ड भंग नहीं होने से गुस्साए केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के तीर्थ पुरोहितों ने सोमवार 1 नवंबर को केदारनाथ पहुंचे पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत काले झंडों के साथ उनके खिलाफ़ नारेबाजी करते हुए विरोध किया। पुरोहितों ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को संगम स्थित पुल से आगे नहीं जाने दिया गया। तीर्थपुरोहित एवं हक-हकूकधारियों ने इस दौरान खूब नारेबाजी की और उनका जमकर विरोध किया। कैबिनेट मंत्री धन सिंह और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक को भी तीर्थ पुरोहितों ने घेर लिया।
गंगोत्री में बाजार बंद कर निकाला जुलूस
गंगोत्री में पांच मंदिर समिति, गंगापुर विसावा, साधु संत, व्यापार मंडल के समस्त पदाधिकारियों एवं गुरु चरण निवास करने वाले समस्त लोगों ने देवस्थानम के विरोध में मंदिर परिसर से बस स्टैंड तक लगभग एक किलोमीटर पैदल मार्च किया। गंगोत्री में विरोध स्वरूप बाजार को बंद रखा गया। साथ ही तीर्थ पुरोहितों ने श्रद्धालुओं के आग्रह पर की जाने वाली पूजा का बहिष्कार किया।
गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष सुरेश सेमवाल ने कहा कि देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को रद करने के बजाय सरकार अब तीर्थ पुरोहितों को भ्रमित कर रही है। उन्होंने कहा कि तीर्थ पुरोहितों की जब 11 सितंबर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात हुई थी तो सीएम ने आश्वासन दिया था कि 30 अक्टूबर तक बोर्ड को भंग करने का निर्णय लिया जाएगा। इसके बावजूद तय तिथि पर सरकार की ओर से बोर्ड भंग करने को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई। व्यापार मंडल अध्यक्ष इंद्रदेव सेमवाल ने कहा कि सरकार को जल्द से जल्द देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को रद करना चाहिए। प्रदर्शनकारियों में मंदिर समिति के संयोजक हरीश सेमवाल, पूर्व अध्यक्ष रमेश, सतीश, अनिल नौटियाल, पूर्व सचिव रविंद्र सेमवाल, संजीव सेमवाल, सह सचिव राजीव शर्मा, व्यापार मंडल के अध्यक्ष इंद्रदेव, सुधांशु, गणेश, रमाकांत, दीपक सिंघल, नगर पालिका अध्यक्ष सुरेश, रमाकांत, सत्येंद्र आदि शामिल थे।
सीएम का दिल्ली दौरा, पीएम को देंगे अपडेट
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कल 1 नवंबर को दिल्ली के दौरे पर रहे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात कर उन्हें केदारनाथ में चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों के संबंध में अपडेट दिया। प्रधानमंत्री पांच नवंबर को केदारनाथ आ रहे हैं।
बता दें कि वर्ष 2020 में सरकार ने देवस्थानम बोर्ड का गठन किया था। उस समय भी तीर्थ पुरोहित व हकहकूकधारियों ने सरकार के फैसले का कड़ा विरोध किया था। इसके बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने फैसले से पीछे नहीं हटे। वहीं, गंगोत्री में पिछले साल भी निरंतर धरना होता रहा। केदारनाथ और बदरीनाध धाम में तो बोर्ड ने कार्यालय खोल दिए, लेकिन गंगोत्री में तीर्थ पुरोहितों के विरोध के चलते कार्यालय तक नहीं खोला जा सका।
उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन होने के बाद सत्ता संभालते ही पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने देवस्थानम बोर्ड के फैसले पर पुनर्विचार करने की बात कही थी। तीरथ सिंह रावत के बाद पुष्कर धामी सीएम बने और उन्होंने इस मामले में उच्चस्तरीय समिति गठित की। इसके अध्यक्ष भाजपा के वरिष्ठ नेता मनोहर कांत ध्यानी को बनाया गया। मनोहर कांत ध्यानी ने हाल ही में समिति की रिपोर्ट सीएम पुष्कर सिंह धामी को रिपोर्ट सौंपी है। इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है।
पांच नवंबर को पीएम नरेंद्र मोदी का केदारनाथ में दौरा है। ऐसे में यदि रिपोर्ट पर बवाल होता है तो दिक्कत हो सकती है। इससे ऐन पहले अब नौ सदस्यों को नामित कर चारों धामों से तीर्थ पुरोहितों को खुश करने का प्रयास किया गया है।
हाल ही में सरकार ने उत्तराखंड में उच्च स्तरीय समिति देवस्थानम विधेयक में उत्तराखंड शासन की ओर से उत्तराखंड के चारधामों से नौ तीर्थपुरोहितों, हक हकूकधारियों, विद्वतजनों और जाधकारों को नामित कर दिया गया है। इस संबंध में सचिव धर्मस्व एवं तीर्थाटन की ओर से शासनादेश जारी किया गया था। धर्मस्व सचिव हरिचंद्र सेमवाल की ओर से जारी शासनादेश में चारों धामों से नौ सदस्य नामित किए गए हैं।
इसके तहत श्री बदरीनाथ धाम से विजय कुमार ध्यानी, संजय शास्त्री एडवोकेट (ऋषिकेश), रवीन्द्र पुजारी एडवोकेट (कर्णप्रयाग- चमोली), केदारनाथ से विनोद शुक्ला, लक्ष्मी नारायण जुगडान, गंगोत्री धाम से संजीव सेमवाल, रवीन्द्र सेमवाल, यमुनोत्री धाम से पुरुषोत्तम उनियाल, राजस्वरूप उनियाल नामित हुए हैं।
शासनादेश में कहा गया है कि उत्तराखंड चारधाम देवस्थानय प्रबंधन बोर्ड के समस्त पहलुओं पर विचार विमर्श करने के लिए सभी पक्षों से विचार-विमर्श करने के उपरांत संस्तुति के लिए पूर्व राज्यसभा सांसद मनोहर कांत ध्यानी की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति में उपरोक्त सदस्यों को नामित किया गया है।
लेकिन भाजपा सरकार की कोई भी कवायद तीर्थ पुरोहितों को संतुष्ट नहीं कर पा रही है। तीर्थ पुरोहियों की एक सूत्रीय मांग देवस्थानम बोर्ड को भंग कर पूर्व स्थिति लागू करने की है, जिसे सरकार किसी सूरत मानती नजर नहीं आती।
देवस्थानम बोर्ड का विरोध कर रहे केदारनाथ में तीर्थ पुरोहितों और हक हकूकधारियों की ओर से पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का विरोध करने पर कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप ने कहा "जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय?"
मामले को लेकर कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं प्रवक्ता धीरेंद्र प्रताप ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ तीर्थ पुरोहितों द्वारा किए गए व्यवहार पर दुख जताया। कहा कि वह भी राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। यदि कहीं किसी राजनीतिक कार्यकर्ता का अपमान होता है तो उन्हें भी दुख होता है। पूर्व मुख्यमंत्री स्तर के व्यक्ति का अपमान हो तो और भी दुखद है। साथ ही उन्होंने कहा त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री रहते चौकी तीर्थ पुरोहितों की भावनाओं और जज्बातों का ख्याल नहीं किया। यही कारण है कि आज उन्हें अपमान और उपहास का पात्र बनना पड़ा। उन्होंने कहा कि सत्ता में आना एक बात है और जन आकांक्षाओं के अनुरूप फैसले लेना दूसरी बात है।
उन्होंने प्रधानमंत्री के 5 तारीख को केदारनाथ जी के दौरे को भी इस संदर्भ से जोड़ते हुए नरेंद्र मोदी से भी मांग की है कि वे तीर्थ पुरोहितों की आकांक्षाओं और उनकी आजीविका को चलाने की मजबूरियों को भी समझे और केदारनाथ जाने से पहले तीर्थ पुरोहितों की आकांक्षाओं के अनुरूप देवस्थानम बोर्ड को भंग करने और स्थानीय पुरोहितों के अधिकारों को पूर्व की तरह रखे जाने की घोषणा करें। ताकि जनता ने जो ने भारी समर्थन दिया है उनके केदारनाथ जाने पर उनको भी अपमान का पात्र ना बनना पड़े।