महिला आरक्षण विधेयक का नाम बदलने पर पूर्व IPS ने जताया कड़ा ऐतराज, जनगणना और परिसीमन की बात विधेयक में लाने को बताया BJP की राजनीतिक बेईमानी

Women's Reservation Bill : केंद्र सरकार द्वारा 2010 में आए महिला आरक्षण विधेयक के नाम की जगह नारी शक्ति वंदन विधेयक नामकरण करना दरअसल यह दिखाता है कि आरएसएस और भाजपा महिलाओं को स्वतंत्र इकाई के बतौर स्वीकार ही नहीं करते हैं...

Update: 2023-09-21 16:08 GMT

महिलाओं की प्रतीकात्मक तस्वीर

Women's Reservation Bill : महिला आरक्षण के लिए लोकसभा में पारित महिला नारी शक्ति वंदन विधेयक का ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने स्वागत किया है और कहा है कि इसे किसी भी व्यावधान के बिना जल्द से जल्द कानून बन जाना चाहिए। साथ ही यह भी कहा है कि इस संदर्भ में केंद्र सरकार द्वारा विधेयक में जोड़े गए जनगणना और परिसीमन के प्रावधान को तत्काल प्रभाव से हटा दिया जाना चाहिए।

पूर्व आईपीएस और ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष एसआर दारापुरी कहते हैं, केंद्र सरकार यदि वास्तव में महिलाओं को बराबरी का अधिकार देना चाहती है तो उसे राज्यसभा में इस प्रावधान को हटाकर ही इस विधेयक को पेश करना चाहिए। ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट यह भी मांग करता है कि बिल में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए भी आरक्षण का ऐसा प्रावधान होना चाहिए जैसा प्रावधान संविधान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए है।

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ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने उन दलों से भी पूछा है जो अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग करते हैं कि वह अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए लोकसभा और विधानसभा में राजनीतिक आरक्षण की बात क्यों नहीं करते और अपने दलों में दलित, आदिवासी, अति पिछड़े, पिछड़ा वर्ग से आई हुई आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा टिकट क्यों नहीं देते? जाहिर तौर पर न तो इन दलों में और न ही लोकसभा, विधानसभा या अन्य प्रतिनिधि सभाओं में उत्पीड़ित शोषित समाज की महिलाओं का प्रतिनिधित्व होता है। यह दल अमूमन उच्च वर्णीय तबकों से आए हुए अपराधियों और माफियाओं को टिकट देते हैं, इसीलिए लोकसभा और विधानसभा में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए अलग से राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग नहीं करते हैं।

पूर्व आईपीएस और ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष एसआर दारापुरी ने कहा, केंद्र सरकार द्वारा 2010 में आए महिला आरक्षण विधेयक के नाम की जगह नारी शक्ति वंदन विधेयक नामकरण करना दरअसल यह दिखाता है कि आरएसएस और भाजपा महिलाओं को स्वतंत्र इकाई के बतौर स्वीकार ही नहीं करते हैं। इसके नामकरण पर भी विचार किया जाना चाहिए और 2010 में जो नाम महिला आरक्षण विधेयक दिया गया था, उसे बदलने का कोई औचित्य नहीं दिखता है। 2010 में पेश विधेयक जैसा ही प्रावधान करके 2024 के चुनाव में महिलाओं को अलग से आरक्षण दिया जा सकता है। जनगणना और परिसीमन की बात विधेयक में ले आना भाजपा की राजनीतिक बेईमानी है और उसका हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए।

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