एल्गार परिषद-माओवादी लिंक केस में गिरफ्तार गौतम नवलखा को बॉम्बे हाईकोर्ट से ज़मानत, मगर NIA के अनुरोध पर 3 हफ्ते का स्टे ऑर्डर
मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा एलगार परिषद-माओवादी लिंक केस में लंबे समय से सलाखों के पीछे हैं, आज मंगलवार 19 दिसंबर को हुई सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत दी है, मगर साथ ही जमानत पर 3 सप्ताह का स्टे भी लगा दिया गया है...
Elgar Parishad case: मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा एलगार परिषद-माओवादी लिंक केस में लंबे समय से जेल की सलाखों के पीछे हैं। आज मंगलवार 19 दिसंबर को हुई सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत दी है, मगर साथ ही जमानत पर 3 सप्ताह का स्टे भी लगा दिया गया है।
जस्टिस एएस गडकरी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने आज मंगलवार 19 दिसंबर को इस मामले की सुनवाई करते हुए गौतम नवलखा की जमानत मंजूर की थी, मगर नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) के अनुरोध पर अपने आदेश पर तीन सप्ताह का स्थगनादेश भी दे दिया। गौरतलब है कि एनआईए ने अदालत से अनुरोध किया था कि गौतम नवलखा की ज़मानत के फ़ैसले पर छह हफ़्ते के लिए स्टे ऑर्डर दिया जाए, ताकि इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की जा सके।
अगस्त 2018 में गिरफ्तार किए गए नवलखा को नवंबर 2022 में उच्चतम न्यायालय की अनुमति मिलने के बाद घर में नजरबंद रखा गया था और फिलहाल वह नवी मुंबई में रह रहे हैं। उच्च न्यायालय ने नवलखा को एक लाख रुपये के मुचलके पर जमानत दी है। इस केस में जमानत पाने वाला गौतम नवलखा सातवें आरोपी हैं।
पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित तौर पर दिए गए भड़काऊ भाषणों से संबंधित मामले में पुलिस का दावा था कि इसकी वजह से अगले दिन पश्चिमी महाराष्ट्र शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़की थी, जिसके बाद इस मामले में 16 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। इनमें से आनंद तेलतुंबडे, वकील सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंसाल्वेस, अरुण फेरिरा और महेश राउत नियमित जमानत पर बाहर हैं, जबकि कवि वरवरा राव को स्वास्थ्य आधार पर जमानत दी गयी है, वहीं गौतम नवलखा इस मामले में जमानत पाने वाले सातवें आरोपी हैं।
गौरतलब है कि अप्रैल 2023 में हुई सुनवाई के दौरान एक विशेष अदालत ने गौतम नवलखा को जमानत देने से इंकार करते हुए कहा था कि प्रथमदृष्टया ऐसे सबूत हैं कि गौतम नवलखा प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्य थे। वहीं उच्च न्यायालय में दायर अपनी अपील में गौतम नवलखा ने कहा था कि विशेष अदालत ने उन्हें जमानत देने से इनकार करके गलती की है और नियमित जमानत के लिए उच्च न्यायालय में नवलखा की दूसरे दौर की अपील दायर की थी।
सितंबर 2022 में एनआईए की विशेष अदालत द्वारा नियमित जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद गौतम नवलखा ने उच्च न्यायालय का रुख किया था। एनआईए ने भी नवलखा की जमानत याचिका का विरोध करते हुए यहां तक दावा कर डाला था कि उनकी भर्ती के लिए उन्हें पाकिस्तान इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के जनरल से मिलवाया गया था, जो संगठन के साथ उनकी सांठगांठ को दर्शाता है।
एनआईए की चार्जशीट में शामिल गौतम नवलखा ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी के सामने आत्मसमर्पण किया था। उन्हें 2018 के भीमा कोरेगांव मामले में कथित संलिप्तता को लेकर अवैध गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत आरोपी बनाया गया था। एनआईए ने गृह मंत्रालय के आदेश पर 24 जनवरी 2020 को यह केस अपने हाथ में लिया था।
NIA की जांच में यह आरोप लगाया गया है कि इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या का साजिश भी रची गई थी। जांच के दौरान NIA ने कहा था कि ऐसा सामने आया था कि सीपीआई (माओवादी) संगठन, जो गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) एक्ट, के तहत बैन है, के नेता एल्गार परिषद के आयोजकों के साथ-साथ गिरफ्तार कार्यकर्ताओं के संपर्क में थे। उनका लक्ष्य माओवादी और नक्सलवादी विचारधारा फैलाना और गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम देना था।
गौरतलब है कि 31 दिसंबर 2017-1 जनवरी 2018 को पुणे के समीप कोरेगांव-भीमा गांव में दलित समुदाय के लोगों का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था, जिसका कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने विरोध किया था। एल्गार परिषद के सम्मेलन के दौरान इस इलाके में हिंसा भड़की थी, जिसके बाद भीड़ ने वाहनों में आग लगा दी और दुकानों-मकानों में तोड़फोड़ की थी। इस हिंसा में एक शख्स की जान चली गई और कई लोग जख्मी हो गए थे, जिसके बाद महाराष्ट्र पुलिस ने इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया था। भीमा-कोरेगांव मामले में NIA ने आठ लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी।