सवर्ण मानसिकता से ग्रसित PM मोदी के लिए यकीन करना मुश्किल कि दलित मल्लिकार्जुन खड़गे कैसे हो सकते हैं इतने सक्षम
क्या बताने की जरुरत है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ही अध्यक्ष हैं? इन्ही की अध्यक्षता में यह सबकुछ हुआ और मोदी जी गांधी परिवार का रिमोट कंट्रोल कहते हैं? शायद उन्हें यकीन नहीं हो रहा है कि कोई दलित इतना प्रभावशाली और सक्षम कांग्रेस में कैसे हो सकता है? सवर्ण मानसिकता से मोदी जी ग्रसित हैं तो कैसे सोच सकते हैं दलित-आदिवासी भी उतना ही काबिल हैं...
पूर्व सांसद डॉ. उदित राज की टिप्पणी
कांग्रेस का 85वां राष्ट्रीय अधिवेशन 24 से 26 फरवरी के मध्य सम्पन्न हुआ। जितने अधिक और दूरगामी संशोधन इसमें हुए, उतना शायद कभी भी हुआ हो। क्या बताने की जरुरत है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ही अध्यक्ष हैं? इन्ही की अध्यक्षता में यह सबकुछ हुआ और मोदी जी गांधी परिवार का रिमोट कंट्रोल कहते हैं? शायद उन्हें यकीन नहीं हो रहा है कि कोई दलित इतना प्रभावशाली और सक्षम कांग्रेस में कैसे हो सकता है? सवर्ण मानसिकता से मोदी जी ग्रसित हैं तो कैसे सोच सकते हैं दलित-आदिवासी भी उतना ही काबिल हैं, जितना अन्य अगर अवसर मिले तो।
कांग्रेस पार्टी ने ही आजादी, समानता, स्वतंत्रता, न्याय को इस धरती पर उतारा। कोई कितना कहे कि पहले देश सोने की चिड़िया था और जनतंत्र भी, लेकिन प्रामाणिक नहीं किया जा सकता। धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीयता का बीजारोपण भी कांग्रेस ने किया। जितने आजादी के आंदोलन के नेता हुए अपवाद को छोड़कर सभी यूरोप में पढ़े या वहां की शिक्षा से प्रभावित थे। अगर डॉ. अंबेडकर अमेरिका और यूरोप में न पढ़े होते तो शायद इस मुकाम पर नही पहुंच पाते। एक भी ऐसा नहीं मिलता जो सनातनी शिक्षा से प्रभावित होकर जात-पात और क्षेत्रवाद के ऊपर उठकर सबको एक करने की बात की हो और अंग्रेजों को भगाने के लिए लड़ा हो।
बंगाल में परमहंस रामकृष्ण समाज सुधारक हुए तो ब्रिटिश राज के द्वारा बनाया गया सती प्रथा के विरुद्ध कानून की वजह से। 1893 में स्वामी विवेकानंद शिकागो में थे और वहां विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन हो रहा था। उन्होंने तार भेजकर शंकराचार्य से हिंदू धर्म का प्रवक्ता होने का प्रमाण पत्र मांगा तो जवाब मिला कि तुम शूद्र हो इसलिए इजाज़त नहीं मिलेगी। ऐसी स्थिति में श्रीलंका के बौद्ध भिक्षु धम्मपाल ने सम्मेलन के लिए प्रमाणपत्र दिया तब वो बोल सके। ऐसी मानसिकता वाले समाज से क्या उम्मीद की जा सकती है? मल्लिकार्जुन खड़गे चाहे जितना काबिल हों, फिर रहेंगे दलित ही।
हजारों वर्ष से देश छोटे और बड़े रियासतों में बंटा था। राजा और पुरोहित का प्रभुत्व रहा है और कभी भी सभी जातियों का प्रतिनिधित्व की व्यवस्था नहीं मिलती। कांग्रेस पार्टी ने ही देश स्तर पर संगठन खड़ा किया। रेल, डाक और संचार के कारण कन्याकुमारी से कश्मीर और बंगाल से गुजरात तक लोग जुड़े। जातियों में बटा समाज जुड़ता भी तो कैसे? लोग अपने जातियों तक सीमित रहे। कांग्रेस की बुनियाद में ही सबको लेकर चलना का दर्शन है। सामाजिक रूप से तब तक नही जोड़ा जा सकता है जब तक लोग जातियों में बंटे हैं, लेकिन जनतंत्र के तीन प्रमुख अंगों के द्वारा पूरे समाज का बांध रखा है।
कुछ लोग आरक्षण से असहमत हैं, लेकिन वो ये भी जान लें कि शासन और प्रशासन में कमोवेश सभी को भागेदारी देकर ही एक सूत्र में बांधा जा सकता है। डॉ. बीआर अम्बेडकर का मतभेद कांग्रेस के साथ था, लेकिन जो कुछ कर सके वो इसी पार्टी के वजह से। उन्होने खुद कहा था कि खराब संविधान होने के बावजूद अगर लोग अच्छे हैं तो देश अच्छे ढंग से चल सकता है। संविधान बनाने में उनकी अहम भूमिका थी लेकिन लागू किसने किया, यह भी तो देखना चाहिए। अब तो लोगों को समझ में आ जाना चाहिए कि वही संविधान है, लेकिन जिस तरह मोदी सरकार करीब 9 साल से संविधान के प्रावधानों की धज्जियां उड़ा रखी है क्या किसी से छुपा है? अब तो लोगों को समझ में आ जाना चाहिए जिसने संविधान बनाया उसी की चिंता है बचाने की।
50% का आरक्षण कांग्रेस के सभी पदों पर दलित, पिछड़े, आदिवासी और अल्पसंख्यक को देना और दलों की बस की बात नही है। यह भी बात सत्य है कि शीर्ष नेतृत्व पर सवर्णों का कब्जा रहा है और इसको आधार बनाकर दलित-पिछड़ों के नेताओं ने आलोचना भी बहुत की। इसके वजह से पार्टी को नुकसान भी बहुत उठाना पड़ा। एक यह भी सच्चाई है कि गांधी परिवार में भरोसा इन वर्गों का है और शिकायत है तो घेराबंदी करनें वालों से।
भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी के नेतृत्व को मजबूती मिल गई है और खड़गे जी के दूरदर्शी समझ से कांग्रेस में बड़ा परिवर्तन होने वाला है। ऐसे में मोदी को बड़ी चुनौती मिलने का भय है। यह भी सच्चाई है कि लोगों को गांधी परिवार में भरोसा है। लोग भले आरोप लगाते रहे कि कांग्रेस बिना गांधी परिवार के नहीं चल सकती, उसके लिए लोगों को दोष दिया जा सकता है न कि परिवार को। लोगों को दोष देने की किसी की हिम्मत नहीं है, इसलिए गांधी परिवार की आलोचना करते हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे की जितना आलोचन करेंगे, उतना ही दलित कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़ा होगा। सभी जानते हैं कि किस तरह से बंगारू लक्ष्मण का बुरा हाल बीजेपी ने किया। अटल बिहारी वाजपेयी उदार प्रकृति के थे और उन्हीं की वजह से इन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सका, लेकिन आरएसएस और सवर्ण नेता बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। बंगारू लक्ष्मण दलितों की बात करने लगे थे और इससे भी नाराजगी बढ़ी। एक छोटे मामले में उनको हटाया गया, जबकि वो कहते रहे कि रसीद देकर एक लाख का चंदा लिया था। इनके अंतिम दिन इतने बुरे गुजरे की वकील करने की क्षमता नहीं रही और पूरी पार्टी ने किनारा कर लिया था।
दूसरी तरफ जार्ज फर्नांडीज और अन्य लोगों के खिलाफ गंभीर आरोप के बावजूद जल्दी बहाल कर दिया गया। त्वरित जांच और दोषमुक्त कराने में भाजपा ने पूरी ताकत लगा दी। वास्तव में बीजेपी में आरएसएस के हाथ रिमोट कंट्रोल होता है, लेकिन कुछ सालों से मोदी ने यह रिमोट अपने हाथ में ले लिया है। जितना जनतांत्रिक लोकतंत्र कांग्रेस में है उतना किसी पार्टी में नहीं है। सुझाव है कि मोदी अपने घर को ठीक करें और खड़गे जी को जितना रिमोट कंट्रोल कहेंगे, उतना ही कांग्रेस को लाभ मिलेगा।