किसानों के समर्थन में जाट महापंचायत से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ीं, यूपी-हरियाणा में हो सकता है बड़ा नुकसान

हरियाणा और उत्तरप्रदेश दोनों राज्यों में अभी बीजेपी की सरकार है, पश्चिमी उत्तरप्रदेश और हरियाणा में जाट वर्ग की संख्या अच्छी खासी है और बीजेपी का दावा रहता है कि यह वर्ग उनका समर्थक वर्ग है..

Update: 2021-01-30 05:30 GMT

जनज्वार। तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन का आज 66 वां दिन है। गुरुवार को हुई घटनाओं और उसके बाद भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के भावुक होकर रोते हुए वीडियो ने एक तरह से आंदोलन में नई जान फूंक दी है। गुरुवार की रात जिस किसान आंदोलन को खत्म हुआ माना जा रहा था, वह आंदोलन एक बार फिर बड़ा रूप लेता जा रहा है।

खास बात यह हो गई है कि आंदोलन का केंद्र अब सिंघु और टिकरी बॉर्डर से शिफ्ट होकर गाजीपुर बार्डर बनता जा रहा है और वह वर्ग भी इस आंदोलन के समर्थन में खुलकर आने लगे हैं, जो हरियाणा और उत्तरप्रदेश में बीजेपी का समर्थक वर्ग माने जाते रहे हैं। इस कारण से पार्टी को राजनीतिक नुकसान होने की बातें कही जाने लगीं हैं।

हरियाणा और उत्तरप्रदेश दोनों राज्यों में अभी बीजेपी की सरकार है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश और हरियाणा में जाट वर्ग की संख्या अच्छी खासी है और बीजेपी का दावा रहता है कि यह वर्ग उनका समर्थक वर्ग है। लेकिन शुक्रवार को जाट महापंचायत में किसानों का समर्थन करने का फैसला लिया गया है।

कहा जा रहा है कि इस जाट महापंचायत में दस हजार से ज्यादा किसान मौजूद थे। यह भी कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में हुई इस महापंचायत में हरियाणा के जाट भी भाग लेने पहुंचे हुए थे। यही नहीं बल्कि इसके बाद जाट समुदाय के कुछ लोग किसान आंदोलन में शामिल होने दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर की तरफ बढ़ गए।

राजनीतिक विश्लेषक मानने लगे हैं कि किसान आंदोलन के समर्थन में जाटों की महापंचायत और खुलकर उतरना भाजपा के लिए खतरे की घण्टी है। जाट वर्ग, जो उसका समर्थक माना जाता है, उसके आंदोलन को समर्थन देने और उसमें भागीदारी करने से उत्तरप्रदेश और हरियाणा में बीजेपी को खासा नुकसान हो सकता है।

राकेश टिकैत का रोता हुआ वीडियो वायरल होने के बाद उनके आंसुओं ने हर तबके और वर्ग के किसानों को जगा दिया है। उनके आंसुओं को देखने के बाद हरियाणा और उत्तर प्रदेश के जाट भी अच्छी संख्या में दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंचने लगे हैं।

बीजेपी के स्थानीय नेता यह दबी जुबान से स्वीकार करने लगे हैं कि यह भाजपा के लिए चिंता की बात है, क्योंकि किसान आंदोलन में जाटों की बड़ी भागीदारी पार्टी को राजनीतिक नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि इस नए घटनाक्रम को लेकर बीजेपी के स्थानीय नेता खुलकर तो कुछ नहीं बोल रहे, लेकिन अंदरखाने खाप पंचायतों तक संपर्क बनाने के काम में जरूर जुट गए हैं।

26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर हुई घटनाओं और उसके बाद सरकारी एजेंसियों द्वारा ताबड़तोड़ एफआईआर और नोटिस के बाद बीजेपी के समर्थकों द्वारा यह माना जाने लगा था कि किसान आंदोलन कमजोर पड़ गया और इसकी समाप्ति महज कुछ वक्त की बात है।

यह भी खबर आई कि दिल्ली के तमाम बॉर्डरों पर जमे किसान वहां से उठने लगे हैं। लेकिन टिकैत के आंसुओं के बाद आंदोलन की तस्वीर अब पूरी तरह से बदल गई है। किसान अब भारी संख्या में वापस दिल्ली बॉर्डरों पर आने लगे हैं और गाजीपुर बार्डर आंदोलन का केंद्रबिंदु बनने लगा है।

शुक्रवार को हुई महापंचायत में जहां किसानों की भारी भीड़ देखी गई, वहीं दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर भी लोगों का जमावड़ा बढ़ा। शुक्रवार को चौबीसों घँटे दिल्ली के बार्डरों पर किसानों का आना जारी रहा। विपक्षी दलों जैसे कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक दल और इंडियन नेशनल लोकदल ने उन किसानों को समर्थन दिया जो कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं।

शुक्रवार को राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी और आम आदमी पार्टी के नेता व दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया गाजीपुर बार्डर पहुंचे तो शनिवार को हरियाणा से अभय चौटाला सहित देश के अन्य विपक्षी दलों के कई नेताओं के पहुंचने की बात कही जा रही है।

कुल मिलाकर जिस किसान आंदोलन को केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में एक आम आंदोलन कहा जा रहा था, उसके राजनीतिक प्रतिफल सामने आने लगे हैं और इसका सीधा नुकसान केंद्र व हरियाणा तथा उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी को उठाना पड़ सकता है।

हालांकि हरियाणा में बीजेपी असंतोष की आवाज़ों को दबाने में अबतक कामयाब रही है, जहां वह जननायक जनता पार्टी के साथ गठबंधन सरकार चलाती है। बता दें कि जेजेपी जाटों को अपने प्राथमिक वोट आधार के रूप में गिनाती है।

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