कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर BSP का चुनावी आगाज, समर्थकों से बोलीं मायावती- विपक्षियों के हथकंडों से रहना सावधान

बसपा के संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर लखनऊ में रैली को संबोधित कर रही हैं मायावती।

Update: 2021-10-09 07:54 GMT

जनज्वार। आज बहुजन समाज पार्टी (BSP) के संस्थापक कांशीराम (Kanshiram) की पुण्यतिथि है। इस मौके पर यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी अपनी ताकत का अहसास करवा रही है। बसपा की योजना दलित वोट बैंक को लामबंद करने की है। इसी को देखते हुए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रैली का आयोजन किया गया है।

कांशीराम स्मारक स्थल में आयोजित रैली को संबोधित करते हुए मायावती ने कहा कि 2022 में अगर बसपा की सरकार बनीं तो बदले की भावना से केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं को रोका नहीं जाएगा बल्कि समय से पूरा करवाया जाएगा।

बसपा की सरकार बनाने से कोई नहीं रोक सकता

उन्होंने बसपा कार्यकर्ताओं को सावधान करते हुए कहा कि कुछ छोटी पार्टियों और विपक्षियों के हथकंडों से सावधान रहना है। बसपा को सरकार बनाने से इस बार कोई नहीं रोक सकता। 

मायावती ने कहा कि कुछ छोटी पार्यिां अकेले या गठबंधन में रहकर केवल पर्दे के पीछे से सत्ताधारी दल को लाभ पहुंचाने की जुगत में हैं। उनसे सावधान रहना है। साथ ही एक पार्टी ऐसी है जो स्वार्थी और टिकटार्थियों को शामिल कर अपना कुनबा बढ़ा रही है।

उन्होंने कहा कि कुछ लोग बसपा को कमजोर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आज इस भीड़ को देखकर उन सभी को यह समझ जाना चाहिए कि बसपा में कितनी ताकत है। मायावती ने कहा कि सर्वे के चक्कर में नहीं पड़ना है। बंगाल में जो सर्वे आया ता उसके उलट परिणा सामने आए और ममता बनर्जी की सरकार बन गई।

'भाजपा, कांग्रेस, सपा और आप के वादों में दम नहीं'

मायावती ने कहा कि विपक्षी दल हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिक रंग देकर राजनीतिक फायदा उठाने का प्रयास करेंगे लेकिन इससे सजग रहना है। अब सरकार में आंदोलित किसानों पर जुल्म इतना बढ़ गया है कि अति हो गई है। लखीमपुर खीरी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। मायावती ने आगे कहा कि भाजपा, सपा, कांग्रेस और आप ने जनता से जो वादे किए हैं वो हवा हवाई हैं। उनमें रत्तीभर भी दम नहीं है। विरोधी पार्टियां चुनावी घोषणापत्रों में प्रलोभन भरे चुनावी वादे करने वाली हैं।  

कोरोनाकाल में मजदूरों को किया पलायन के लिए मजबूर

मायावती ने कांग्रेस और भाजपा (BJP And Congress) दोनों पर निशाना साधते हुए कहा कि कोरोना काल में दोनों ने मजदूरों को पलायन करने पर मजबूर कर दिया। केजरीवाल भी कम नहीं निकले, उन्होंने मजदूरों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की। अब बिजली पानी फ्री देने की बात कहकर यूपी में पांव जमाने की कोशिश में हैं और यह बात बिल्कुल झूठी है। 

दलित-ब्राह्मण गठजोड़ से फिर सत्ता में आने की कोशिश

बता दें कि बसपा इस बार फिर ब्राह्मण और दलित गठजोड़ के माध्यम से सत्ता में आने की तैयारी कर रही है। बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के नेतृत्व में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं। साल 2007 में बसपा ने दलित-ब्राह्मण वोटों के समर्थन से ही सरकार बनायी थी। उसे 403 में 206 सीटें मिली थीं। पार्टी इस बार भी राज्य में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित कर पुरानी जीत फिर दोहराना चाहती है। राज्य में करीब 20 प्रतिशत आबादी दलितों की है जबकि 13 प्रतिशत आबादी ब्राह्मणों की बतायी जाती है। समाजवादी पार्टी की नजर भी इन ब्राह्मण वोटर्स पर है। इसके लिए वह जगह-जगह भगवान परशुराम की मूर्तियां लगवा रही है।   

कौन थे कांशीराम

कांशीराम दलित राजनीति का प्रमुख चेहरा थे। उनका जन्म पंजाब के एक दलित परिवार में हुआ था। बीएससी की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने क्लास वन अधिकारी नौकरी की। आजादी के बाद से ही आरक्षण होने के कारण सरकारी सेवा में दलित कर्मचारियों की सख्या होती थी। कांशीराम ने दलितों से जुड़े मुद्दे और अंबेडकर जंयती के दिन अवकाश घोषित करने की मांग उठाई। कांशीराम ने 1981 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति या डीएस 3 की स्थापना की थी।

1982 में उन्होंने द चमचा एज लिखा जिसमें उन्होंने उन दलित नेताओं की आलोचना की थी जो कांग्रेस जैसी तब की मुख्यधारा पार्टियों के लिए काम करते थे। कांशीराम ने डीएस 4 की साइकिल रैली का आयोजन किया था और अपनी ताकत दिखाई थी। इस रैली में उनके तीन लाख से ज्यादा समर्थक जुटे थे। इसके बाद 1984 में कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की थी।

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