धरतीपुत्र की जमीन क्या हड़पेगी BJP? बीती दो बार की भयंकर Modi लहर पर भी हावी रहा था 'नेताजी' का कद

Mainpuri By Election 2022: अभी थोड़ी देर पहले शिवपाल सिंह यादव ने वोट डालने के बाद कहा है कि, मैनपुरी की जनता डिंपल यादव को बड़े अंतर से जिताएगी। शिवपाल ने आरोप लगाते हुए कहा कि प्रशासनिक दबाव में हमारे कार्यकर्ताओं को पर हमले किए गये...

Update: 2022-12-05 06:40 GMT

धरतीपुत्र की जमीन क्या हड़पेगी BJP? बीती दो बार की भयंकर Modi लहर पर भी हावी रहा था 'नेताजी' का कद 

Mainpuri By Election 2022: अभी थोड़ी देर पहले शिवपाल सिंह यादव ने वोट डालने के बाद कहा है कि, मैनपुरी की जनता डिंपल यादव को बड़े अंतर से जिताएगी। शिवपाल ने आरोप लगाते हुए कहा कि प्रशासनिक दबाव में हमारे कार्यकर्ताओं को पर हमले किए गये। मैंने उन्हें कल रात संपर्क किया था कि वे पुलिस की पकड़ में ना आएं..सुबह 7 बजे बूथों पर पहुंचें और मतदान की सुविधा दें। लोग नेताजी को बहुत प्यार करते थे। 

10 से 12 डिग्री टेम्प्रेचर के बीच सुबह से मतदान केंद्रों पर सन्नाटा है। सुबह सात बजे से शाम 6 बजे तक वोटिंग जारी है। धूप चढ़ने के साथ मतदान केंद्रों पर संख्या कुछ बढ़ रही है। इस लोकसभा सीट में 17,46,895 कुल मतदाता हैं। समाजवादी पार्टी ने ट्वीट करके EVM खराब होने की शिकायत की है। सपा कि तरफ से करहल की बूथ संख्या 289, बूथ संख्या 344 नगला महारम और जसवंतनगर में बूथ संख्या 299 कलेपुरा की EVM खराब होने की सूचना है। 

अब तक कभी नहीं जीती भाजपा

मैनपुरी लोकसभा सीट कई मायनों में खास मानी जाती है। यादव परिवार का गढ़ होने के साथ यह सीट भाजपा कभी फतह नहीं कर पाई है। साल 2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर थी तब भी इस सीट पर कोई जादू नहीं चला। 2014 और 2019 में मैनपुरी से चुनाव लड़े मुलायम सिंह यादव को जीत हासिल हुई थी। उधर आजमगढ़ सीट छोड़ने के बाद लड़े उनके भतीजे तेज प्रताप यादव ने उपचुनाव जीता था। लेकिन इस बार भाजपा ऐन-केन-प्रकारेण इस सीट पर कमल खिलाना चाहती है। 

कभी कांग्रेस का था दबदबा

Mainpuri Loksabha सीट पर साल 1952 से लेकर 1971 तक कांग्रेस को जीत हासिल हुई। 1977 में सत्ता विरोधी लहर में जनता पार्टी ने कांग्रेस के प्रत्याशी को हरा दिया। हालांकि, 1978 में यहां उपचुनाव हुए जिसमें कांग्रेस की इस सीट पर वापसी हुई थी। 1980 में कांग्रेस ने मैनपुरी लोकसभा सीट फिर से गंवा दी और 1984 में उनके प्रत्याशी ने फिर जीत दर्ज की। ये वो साल था जब इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी को आखिरी बार जीत मिली थी। 1992 में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का गठन करने के बाद मुलायम सिंह यादव इस सीट से 1996 में चुनाव लड़े और भारी अंतर से जीत हासिल की। उसके बाद लगातार हर एक चुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी का ही कब्जा रहता आ रहा है। 

मैनपुरी लोकसभा सीट का इतिहास

देश में 1951-52 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। उस समय मैनपुरी लोकसभा सीट का नाम मैनपुरी जिला पूर्व था। पहले चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के बादशाह गुप्ता जीते थे। 1957 में मैनपुरी से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बंशीदास धनगर वे बादशाह गुप्ता को हरा दिया था।1962 के चुनाव में कांग्रेस के बादशाह सिंह ने फिर वापसी की। 1967 में कांग्रेस ने प्रत्याशी बदला 1967 और 1971 में महाराज सिंह सांसद चुने गये। इमरजेंसी के बाद 1977 में भारतीय लोकदल के रघुनाथ सिंह, 1980 में रघुनाथ सिंह वर्मा जनता पार्टी (सेक्यूलर) के टिकट पर चुनाव जीते। 1984 में कांग्रेस नेबलराम सिंह को टिकट दिया, वे जीते। समाजवादी नेता और कवि उदय प्रताप सिंह 1989 में जनता पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गये। मैनपुरी में 1991 से 1999 तक बीजेपी दूसरे स्थान पर रही।

मुलायम सिंह की बारी

मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया। साल 1996 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी से चुनाव लड़ा और जीते। 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में फिर सपा के मुलायम सिंह यादव जीते लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। साल 2004 के उप-चुनाव में उनके भतीजे धर्मेंद्र यादव मैनपुरी से सांसद चुने गये। 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह फिर से सांसद बने। 2014 में मुलायम सिंह दो आजमगढ़ और मैनपुरी सीटों से एक साथ लड़े और जीते। इसके बाद जबर्दस्त मोदी लहर में मुलायम सिंह 2019 में भी कामयाब रहे।

किस पार्टी की कितना बार जीत

अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों और दो उप-चुनावों को मिलाकर 18 बार चुनाव हुए हैं।इनमें सपा कुल आठ बार, कांग्रेस कुल 5 बार, बीएलडी एक बार, जनता पार्टी (सेक्यूलर) एक बार, जनता दल एक बार और एक बार जनता पार्टी ने जीत दर्ज की है। मैनपुरी लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें से मैनपुरी जिले की चार और इटावा जिले की एक विधानसबा सीट है। साल 1996 से कोई पार्टी इस सीट पर चुनाव नहीं जीत पाई है, सिवाय समाजवादी पार्टी के।  

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