Big Breaking : नंदीग्राम से हारीं ममता बनर्जी, कहा जनता का फैसला स्वीकार
हारने के बाद ममता बनर्जी ने कहा आंदोलन जीतने के लिए त्याग करना पड़ता है और मेरी हार एक त्याग है, उन्होंने नंदीग्राम में अपनी हार को स्वीकार किया...
जनज्वार। हारने के बाद ममता बनर्जी ने कहा आंदोलन जीतने के लिए त्याग करना पड़ता है और मेरी हार एक त्याग है, उन्होंने नंदीग्राम में अपनी हार को स्वीकार किया। भाजपा ने दावा किया है कि वह 1622 वोट से हारी हैं शुभेंदु अधिकारी से।
ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से मिली हार के बाद कहा कि नंदीग्राम में जो हुआ उसे भूल जाइये।
भाजपा के जिस प्रत्याशी शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को मात दी है, वह पहले टीएमसी में ही थे और उनके बहुत करीबी माने जाते थे। शुरुआती रुझानों में कई बार शुभेंदु अधिकारी ममता बनर्जी पर भारी पड़ते दिखाई दिए और आखिरकार जीत दर्ज की।
पश्चिम बंगाल की सभी 292 सीटों पर रुझान आने के बाद सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मीडिया से कहा कि वो नंदीग्राम में हुई हार को स्वीकार करती हूं। उन्होंने आगे कहा कि भूल जाइए कि नंदीग्राम में क्या हुआ, हमारी पार्टी ने बहुमत के साथ चुनाव जीता है।
शुभेंदु अधिकारी से हारने के बाजवूद ममता बनर्जी पूरी फॉर्म में नजर आ रही हैं। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में कहा है कि कोरोना के बाद जीत का जश्न मनाया जाएगा। हालांकि उन्होने यह भी अपील की है कि वो किसी तरह का कोई जश्न ना मनाएं। हम पश्चिम बंगाल की जनता को मुफ्त में वैक्सीन लगवाएंगे। कोरोनाकाल में वह सिर्फ एक शपथ ग्रहण समारोह आयोजित करेंगी, जिसमें बहुत कम लोग हिस्सा लेंगे।
टीएमसी की जीत के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहली बार सबके सामने आईं और उन्होंने की जनता से अपील की है वो अभी घर जाएं और गर्म पानी से नहाएं। इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने सभी से कोरोना के प्रोटोकॉल का पालन करने को भी कहा।
हालांकि सवाल उठेगा कि सेनापति क्यों हारा
बंगाल में तीसरी बार जीत दर्ज कर रही टीएमसी यानी तृणमूल कांग्रेस के मुखिया के नेतृत्व पर कोई सवाल तो नहीं है, लेकिन वोटर और समर्थक यह जरूर जानन चाहेंगे, साथ ही विरोधी भी कि ऐसा नंदीग्राम में क्या हुआ कि ममता बनर्जी नंदीग्राम सीट के संग्राम में क्यों हार गयीं। लोकतंत्र में होने वाले चुनावों पार्टियों का नेतृत्व करने वालों पर दोहरी जिम्मेदारी होती है। पहली तो पार्टी को शीर्ष पर ले जाने की और दूसरी खुद की सीट पर बड़ी सफलता पाने की, पर नंदीग्राम में यह जादू ममता बनर्जी नहीं दिखा सकीं।
अपनी हार को ममता बनर्जी ने बड़ी लड़ाई का त्याग कहा है, पर यह बात न जनता स्वीकार करने को तैयार है न समर्थक। वह जानना चाहते हैं कि कहीं यह ममता बनर्जी के साथ कोई भीतरघात तो नहीं था। कहीं उनकी पार्टी में कोई विरोधियों का एजेंट तो नहीं, जो ममता बनर्जी खुद अपनी सीट हार गयीं।
यह आशंका इसलिए भी सही जान पड़ती है क्योंकि बीजेपी आईटीसेल के कर्ताधर्ता अमित मालवीय लिखते हैं, 'ममता बनर्जी जब अपनी सीट से हार गयीं तो उन्हें क्या नैतिक अधिकार है कि वो फिर से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनें।' अमित मालवीय की इस चिंता से उस निहितार्थ को समझा जा सकता है जो यह साबित करती है कि भाजपा ने 'सेकेंड स्ट्रेटेजी' पहले से ही तैयार कर रखी थी।
सवाल यह भी उठ रहा है कि कोई ऐसी चाल तो नहीं थी पार्टी के भीतर के लोगों के साथ मिलकर कि अगर पार्टी पूर्ण बहुमत में नहीं आती है तो तोड़कर विधायकों को भाजपा के साथ मिला लेंगे और यह तब ज्यादा आसान हो जाएगा जब खुद ममता बनर्जी अपनी सीट से हार चुकी होंगी। खैर, जो भी हो सच यह है कि अपने किले पर हारा सेनापति पूरे राज्य की सेना का नायक बना है, क्योंकि उसने अपने पूरे राज्य को उनसे बचा लिया है, जो जीत का अश्वमेघ रथ लेकर दीदी के किले को फतह करना चाहते थे।