मुलायम सिंह यादव से पंगा ले चुके IPS अमिताभ ठाकुर को नहीं झेल पाई BJP, लड़ाई अभी बाकी है

पूर्व आईपीएस ने अपनी एक पोस्ट में शायद इस बात का जिक्र भी किया है कि 'अपने लालच में दब-दब कर, इतने दब्बू हो जाते हैं कि नेताजी जो कह दें, उनको ना न कह पाते हैं. यस सर यस सर कहते-कहते, असल दायित्व भूल जाते हैं, लूट-खसोट के अर्थशास्त्र में पूर्ण पारंगत हो जाते हैं....

Update: 2021-03-23 17:25 GMT

जनज्वार ब्यूरो, लखनऊ। 1993 बैच के आईपीएस अमिताभ ठाकुर हमेशा से ही सामाजिक मुद्दों को लेकर अपनी बेलाग प्रतिक्रिया देते रहे हैं। इसके अलावा वह कवि और लेखक भी हैं। सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं। प्रदेश में आपराधिक घटनाओं को लेकर वह समय दर समय टिप्पणी करते रहते हैं। मुख्य रूप से वह सुर्खियों में तब आए थे, जब उन्होंने यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव व हालिया अखिलेश यादव सरकार से सीधे तौर पर पंगा ले लिया था।

अखिलेश यादव सरकार में मुलायम सिंह यादव पर अमिताभ ठाकुर को फोन कर धमकी देने का आरोप लगा था। तब आईपीएस अमिताभ ठाकुर का आरोप था कि 15 जुलाई 2015 को मुलायम सिंह यादव ने उन्हें फोन पर धमकी दी थी, जिसको लेकर लखनऊ के पुलिस स्टेशन में तहरीर भी दी गयी थी।

सपा सरकार में मुलायम सिंह यादव से जुड़ा प्रकरण होने के चलते मुकदमा दर्ज नहीं हुआ था। इसके बाद अमिताभ ठाकुर ने कोर्ट की शरण ली थी और कोर्ट के निर्देश पर इस मामले में मुकदमा दर्ज करने को कहा गया था। तब से इस मामले की जांच चल रही है। इस मसले के चलते अखिलेश यादव सरकार में अमिताभ ठाकुर को निलंबित कर दिया गया था।

अमिताभ ठाकुर मामले में पूर्व आईपीएस विजय शंकर सिंह लिखते हैं, 'यूपी सरकार ने अमिताभ ठाकुर को जबरन सेवानिवृत्त कर दिया। 50 साल की उम्र या 30 साल की सेवा पूरी करने के बाद, आमालनामे (चरित्र पंजिका) में हुई प्रविष्टियों के आधार पर सरकार किसी को जबरन सेवानिवृत्त कर सकती है। अमिताभ ठाकुर के आमालनामे में क्या प्रविष्टियां रहीं, यह तो सरकार बेहतर जानती है, पर वे सरकार की आंख के किरिकरी ज़रूर बन गए थे, जिसका दंड उन्हें भुगतना पड़ा। सरकार को वफादार, और जी जहाँपनाह अफसर रास आते हैं और ऐसे मोड में पड़े अफसर भी जब जवाब देने के लिये खड़े हो जाते हैं तो सरकार का अहंकार खड़ा हो जाता है।'

वह आगे लिखते हैं 'जबरन सेवा निवृति का यह आदेश निश्चय ही अदालत में चैलेंज होगा। एक सिपाही भी अपनी इस प्रकार की बर्खास्तगी या सेवानृवित्ति को आसानी से जो हुक्म मेरे आका कह कर के स्वीकार नहीं करता है, वह अदालत जाने के अपने संवैधानिक अधिकार का उपयोग करता है। अक्सर वह अदालत से जीतता भी है और सरकार से अपनी तनख्वाह पूरी लेता है, और फिर जब वह नौकरी में आता है तो, विभाग को ठेंगे पर रखता है। यह मैं एक सामान्य बात और उदाहरण दे रहा हूँ। कैट CAT, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक के संवैधानिक उपचार ऐसे पीड़ितों के लिये खुले हैं। अब अमिताभ कितने उपचार आजमाते हैं यह तो उन्हीं के ऊपर है।'

इन सब बातों के इतर अमिताभ ठाकुर को भी कहीं ना कहीं ये अहसास हो रहा था कि उन्हें सरकार की कुनीतियों का नुकसान उठाना पड़ सकता है। पूर्व आईपीएस ने अपनी एक पोस्ट में शायद इस बात का जिक्र भी किया है कि 'अपने लालच में दब-दब कर, इतने दब्बू हो जाते हैं कि नेताजी जो कह दें, उनको ना न कह पाते हैं. यस सर यस सर कहते-कहते, असल दायित्व भूल जाते हैं, लूट-खसोट के अर्थशास्त्र में पूर्ण पारंगत हो जाते हैं. कहने को बड़े अफसर, छोटे दलाल भी भारी पड़ें, कमजोर पर जो गुर्राएँ नेता को नतमस्तक रहें.'

अपनी एक पोस्ट में अमिताभ ठाकुर इतनी बेबाकी से लिखते हैं कि आज जैसी सरकार में शायद ही कोइ आईपीएस अभिव्यक्त कर सके। उन्होंने लिखा कि 'जब ठायं-ठायं का अधिकार बढेगा, निर्दोषों पर प्रहार बढेगा, दिखावटी होंगे कारनामे, कभी जाने कभी अनजाने. इसके अलावा अमिताभ ठाकुर ने लखनऊ के विशाल सैनी सुसाइड केस को भी उठाया था। जब विशाल के परिवार वालों द्वारा एक पुलिस अफसर पर लगाये गए आरोपों और एफआईआर दर्ज नहीं होने की बात उठाई थी।

वरिष्ठ आईपीएस अमिताभ ठाकुर की छवि ईमानदार अफसर और अपने विभाग के मूलभूत सुधारों बुराइयों को दूर करने सुधारने वाले के तौर पर रही है। इस मामले में यह देखना सबसे दिलचस्प रहेगा कि इस मसले पर यूपी में सबसे बड़े विपक्ष के तौर पर काबिज अखिलेश यादव की क्या प्रतिक्रिया रहती है? क्या अपने राजनैतिक बैरी और पिता से पंगा ले चुके अफसर के लिए आगे समय मे कोई स्टैंड ले सकते हैं, बात दिलचस्प रहेगी।

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