Modi vs Non BJP CMs : जब सबसे लोकप्रिय ही 'सर्वशक्तिमान' नहीं, तो क्यों बिगड़ेंगे केंद्र-राज्य के रिश्ते?

Modi vs Non BJP CMs : कई राज्यों को मोदी की अपनी पार्टी को जीत दिलाने में असक्षमता और विरोधियों का अस्तित्व में आना कहीं भारतीय राजनीति का और ज्यादा मजबूत संघीय ढांचे की ओर बढ़ने के संकेत तो नहीं।

Update: 2022-01-22 13:32 GMT

भारत विरोधभासी और विवादास्पद राजनीति की वजह से खंडित केंद्र-राज्य संबंधों वाले राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता का विश्लेषण

Modi vs Non BJP CMs : क्या भारतीय राजनीति ढांचा विरोधभासी और विवादास्पद राजनीति की वजह से खंडित केंद्र-राज्य और अंतर-राज्य संबंधों की ( Centre -State relations ) ओर बढ़ रहा है? अगर हम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता  ( PM Narendra Modi Popularity )और एक प्रधान मंत्री के रूप में उनकी केंद्रीय भूमिका को देखें तो तो ऐसा नहीं लगता, लेकिन कुछ तथ्य और आंकड़े उन खतरों की ओर जरूर संकेत कर रहे हैं, जिस हम देख नहीं पा रहे हैं। उदाहरण के लिए इंडिया टुडे मूड ऑफ द नेशन के नवीनतम पोल आंकड़ों को देखें तो साफ है कि जहां पिछले पोल में पीएम मोदी की लोकप्रियता में गिरकर 24 फीसदी तक पहुंचना निराशाजन था वहीं फिर से उनकी लोकप्रियता में इजाफे से पहले जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। यहां पर अहम यह है कि उनकी तरह भाजपा शासित राज्यों के सीएम ( BJP rulled CMs ) लोकप्रिय क्यों नहीं हो रहे हैं। संभवत: यही वो स्थिति है जिसकी वजह से मोदी विरोधी क्षेत्रीय क्षत्रपों से सियासत मात नहीं दे पा रहे हैं।

अगर हम शेयर बाजार की भाषा में बात करें तो इस बार उनकी लोकप्रियता में तेजी से सुधार हुआ है। अब उनकी लोकप्रियता 53 फीसदी तक पहुंच गया है। इस सुधार की वजह से राहुल गांधी ( Rahul Gandhi ) और उनके बीच 46 फीसदी अंतर हो गया है। मोदी ( PM Modi ) की तुलना में राहुल गांधी की लोकप्रियता लगभग सात फीसदी है। अगर अगस्त 2021 यानि किसान आंदोलन और पश्चिम बंगाल चुनाव में मोदी और भाजपा को लगे झटकों को छोड़ दें, तो हम कह सकते हैं कि देश की राजनीति पहले की तरह सामान्य स्थिति में पहुंच गया है।

वहीं, अगर हम सियासी गहराइयों में जाकर बात करें तो हमें अजीबोगरीब स्थिति देखने को मिलता है। ऐसा इसलिए कि भाजपा शासित राज्य यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता देश के शीर्ष नौ सीएम की सूची में शामिल नहीं हैं। जबकि उनकी हैसियत का अंदाजा सबको है। इस मामले में पत्रिका का कहना है कि उसने केवल उन मुख्यमंत्रियों को सूचीबद्ध किया है जिनकी अपने-अपने राज्यों में लोकप्रियता का कुल औसत 43 प्रतिशत से अधिक है।

शीर्ष 9 में भाजपा के सीएम सिर्फ एक सीएम

इस लिहाज से शीर्ष नौ में केवल एक भाजपा शासित राज्य के सीएम शमिल हैं। उनकाना है असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा। वह 56 फीसदी सकारात्मक वोट के साथ ओवरआल लोकप्रियता के मामले में सातवें नंबर पर हैं। नवीन पटनायक 71.1 फीसदी लोकप्रियता के साथ शीर्ष पर हैं। ममता बनर्जी 69.9 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर, एमके स्टालिन, उद्धव ठाकरे और पिनाराई विजयन 60 फीसदी लोकप्रियता के साथ क्रमश: तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर हैं। उसके बाद अरविंद केजरीवाल 57.9 के साथ छटे स्थान पर हैं। जबकि आठवें और नौवें स्थान पर क्रमश: कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और अशोक गहलोत हैं। यहां पर यह जिक्र करना जरूरी है कि असम के सीएम हिमंत भी कांग्रेस से भाजपा शामिल होने वाले नेतातों में से हैं। यानि कोई भी मूल भाजपा नेता जो अपनी प्रणाली के माध्यम से उभरा हो सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों में शुमार नहीं है।

BJP सीएम लोकप्रियता को वोट में तब्दील करने में सक्षम नहीं

इसके उलट इसे विरोधभासी कहा जाएगा कि कि जहां भाजपा शासित राज्यों के एक भी सीएम टॉप में नहीं हैं वहीं पीएम नरेंद्र मोदी पहले से कहीं ज्यादा लोकप्रिय होकर उभरे हैं। पोल रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर अभी चुनाव हो तो मोदी की पार्टी को 271 लोकसभा सीटों और उनके एनडीए को 298 सांसदों की जीत के साथ बहुमत से सरकार बना सकती है। जबकि 12 राज्यों में उनकी पार्टी के सीएम हैं। इसका मतलब यह है कि भाजपा को अधिकांश वोट अभी भी नरेंद्र मोदी के नाम पर मिलता है। यानि भाजपा शासित राज्यों के सीएम अपनी लोकप्रियता वोट में तब्दील करने में सक्षम नहीं हैं।

सबसे बड़ा जोखिम 'खंडित अंतर्राज्यीय संबंध' सबसे बड़ा जोखिम

अगर हम अपनी राजनीति और शासन से संबंधित कुछ गंभीर निहितार्थों को समझने के लिए और गहराई से जाने जाएं तो बीते शुक्रवार को दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने एक और डेटा सेट जारी किया है, भारत सरकार को चिंता में डाल दिया है। उसका नाम है वैश्विक जोखिम रिपोर्ट-2022 ( Global Risks Report-2022)। बता दें कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम विश्व भर में विभिन्न क्षेत्रों में कम से कम एक हजार नेताओं के सर्वेक्षण के आधार पर हर साल रिपोर्ट जारी करता है। इस रिपोर्ट में भारत के लिए सबसे बड़ा जोखिम 'खंडित अंतर्राज्यीय संबंध' बताया गया है। हम इसे केंद्र-राज्य संबंधों के बीच स्वतंत्रता से भी जोड़कर देख सकते हैं। इस तरह का जोखिम किसी अन्य प्रमुख राष्ट्र के लिए सबसे बड़ा जोखिम के रूप्शी में उभरकर सामने नहीं आया है।

अब हम इसे इंडिया टुडे के अपने राज्यों में मुख्यमंत्रियों की लोकप्रियता के आंकड़ों के साथ जोड़कर देखेां तो निष्कर्ष यही सामने आता है कि पीएम नरेंद्र मोदी भले ही राष्ट्रीय स्तर पर अत्यधिक लोकप्रिय हों, लेकिन उनके कई क्षेत्रीय विरोधी अपने-अपने राज्यों में उनसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। एक को छोड़कर उनके अपने मुख्यमंत्री जो टॉप 9 में जगह तक नहीं बना पाते हैं। योगी जैसी दुर्जेय हस्ती भी नहीं। भाजपा सीएम और उनके नेताओं के बीच काफी मतभेद हैं। भाजपा नेता और उनके मुख्यमंत्रियों के तो नियमित रूप से अमर्यादित आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है।

ममता और उद्धव ने दिखाया मोदी को आइना

इंदिरा गांधी और राजीव के दौर में अनुच्छेद 356 और केंद्रीय एजेंसियों की दुरुपयोग अब संभव नहीं हो पा रहे हैं। कम से कम सीएम ममता बनर्जी और सीएम उद्धव ठाकरे ने तो स्प्ष्ट कर दिया है कि राज्य अपनी पुलिस और 'एजेंसियों' का उपयोग करने में सक्षम है। इसी लाइन पर स्टालिन की तमिलनाडु पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो बीजेपी की सहयोगी अन्नाद्रमुक के खिलाफ कार्रवाई प्रारंभ कर दिया। अगर आम आदमी पार्टी की पंजाब में सरकार बनी तो उस जगह भी ऐसी स्थिति देखने को मिल सकती है।

सबसे बड़ा विरोधाभास

खास बात यह है कि दो पीढ़ियों में सबसे लोकप्रिय राष्ट्रीय नेता शासन की राष्ट्रपतीय प्रणाली शैली का विस्तार कर रहे हैं। लेकिन कई राज्यों में पार्टी को जीत न दिला पाने की उनकी कमजोरी और विरोधी नेताओं के उन राज्यों में भारी लोकप्रियता भारतीय राजनीति को और अधिक मजबूत संघीय व्यवस्था की दिशा में धकेल रही है। यही भारतीय शासन और राजनीति का सबसे बड़ा विरोधाभास है।

इसका नतीजा यह होगा कि केंद्र न केवल अपनी कल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाने पर जोर देगी। इससे शासन की गुणवत्ता और खराब होगा। इतना ही नहीं, अब नए संस्थानों को भी कमजोर करने प्रक्रिया शुरू हो गई है। अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की आवश्यकता पर व्यापक अधिकार ग्रहण करने के उनका ताजा रुख कई राज्यों से विवाद का विषय भी बने हैं। सीमा सुरक्षा बल ( बीएसएफ ) के अधिकार क्षेत्र का विस्तार को इसी तरह चुनौती देने के लिए कुछ सीमावर्ती राज्यों में बढ़ाया गया है। फिलहाल, यह मसला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। कई लोगों ने महामारी नियंत्रण पर केंद्रीकृत आदेशों का विरोध किया है।

मोदी की भी तय हुई सीमाएं

अब मोदी के सामने यह चुनौती बस इतनी है कि उनकी जबरदस्त लोकप्रियता पूरी ताकत में तब्दील नहीं होती है। इसलिए उनकी कार्यशैली को चुनौती दी जा रही है। जब वह इस दिशा में आगे बढ़े तो जमीनी हकीकत कुछ और ही उभरकर सामने आई। उदाहरण के लिए मार्च 2018 तक उनके पहले कार्यकाल में उनकी पार्टी ने 21 राज्यों पर शासन किया और भारत के 71 प्रतिशत लोग इनमें रहते थे। जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है। अब, राज्यों की संख्या घटकर 17 रह गई है। और इन राज्यों में केवल 49 प्रतिशत भारतीय रहते हैं। यानि अब वो केवल संख्या बल के लिहाज से आगे है जो वर्तमान में जारी राजनीति का प्रतीक है।

आने वाले दिनों में बढ़ेगा भाजपा पर दबाव

Modi vs Non BJP CMs : वर्तमान में जो सिथति है उसको देखते हुए कहा जा सकता है कि मोदी के लिए विरोधी नेताओं वाले राज्यों तक अपनी पहुंच को बढाना मुश्किल है। फिर ऐसा करना उनकी खुद की राजनीतिक शैली के विपरीत भी होगा। इसके बावजूद भाजपा आने वाले चुनावों में शानदार प्रदर्शन करे, भाजपा शासित राज्यों में अपनी सरकार बनाने में सफल हो जाए। लेकिन वो इससे इतर किसी और राज्य में पार्टी के लिए विस्तार करना मुमकिन नहीं है। ऐसे में भाजपा लगातार अपने अस्तित्व में संघर्षशील दिखेगी, जिससे उस पर अपकेन्द्री दबाव बढ़ेगा। इसका नतीजा यह होगा कि केंद्र और राज्यों के बीच खंडित संबंधों को विस्तार मिलेगा, जो अगामी वर्षों एक बड़ा जोखिम के रूप में सामने आएगा।

(वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता का यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में द ​प्रिंट में प्रकाशित।)

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