अवतरित प्रधानमंत्री और उनकी भक्ति में लीन चुनाव आयुक्त पाकर धन्य हो गया है हमारा देश, अब बंद होना चाहिए चुनाव का खेल !

मुख्य चुनाव आयुक्त को यदि वर्तमान मतदान आदर्श नजर आते हैं तो उन्हें चुनाव का यह खेल बंद कर देना चाहिए। उन्हें एक नोटपैड लेकर अपने आकाओं के पास जाकर हरेक पांच वर्ष बाद पूछ लेना चाहिए कि नतीजे क्या जारी करने हैं...

Update: 2024-06-01 10:43 GMT

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

A “not biological origin” man should be disqualified from the elections because of fake information about father’s and mother’s name in the nomination form. चुनाव आयोग यदि निष्पक्ष है तो फिर हमारे प्रधानमंत्री यदि वाराणसी में चुनाव जीतते हैं तो इस जीत को तत्काल रद्द कर देना चाहिए। नामांकन भरते हुए प्रधानमंत्री जी ने अपने माता-पिता का नाम बताया होगा, फॉर्म पर लिखा होगा – पर चुनावी चरणों के बीच में ही उन्होंने ऐलान कर दिया कि उनकी उत्पत्ति “बायोलॉजिकल” नहीं है – जाहिर है उनके कोई माता-पिता नहीं हैं।

ऐसी सार्वजनिक घोषणा के बाद तो तय है कि फॉर्म भरते समय प्रधानमंत्री जी ने गलत जानकारी दी। वैसे भी चुनाव आयोग में जरा सी भी शर्म होती तो प्रधानमंत्री जी के हरेक चुनावी भाषण या फिर मीडिया को दिए गए हरेक प्रायोजित “बातचीत” के बाद उन्हें आदर्श आचार संहिता की अवहेलना के लिए नोटिस दिया जाता, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। अवतरित प्रधानमंत्री और उनकी भक्ति में लीन चुनाव आयोग पाकर देश धन्य हो गया, प्रजातंत्र भक्तितंत्र में विलीन हो गया।

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इसके ठीक उल्टा, चुनाव आयोग तो हरेक चरण के मतदान के बाद सत्ता के इशारे पर मतदान के गणित को सत्ता पक्ष को लाभ पहुंचाने के लिए बेशर्मी से सही करता रहा। पहले और दूसरे चरण के मतदान के बाद जब तत्काल कम मतदान के आंकड़े सामने आये, तब आनन्-फानन में बीजेपी अध्यक्ष ने अपने कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई और कहा गया की मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करें। यह खबर करेक मीडिया में प्रमुखता से प्रचारित की गयी। इसके बाद पता नहीं बीजेपी के कार्यकर्ताओं में कोई जोश आया या नहीं – पर चुनाव आयोग में एक अलग सा जोश आया और चुनाव के हरेक चरण के हफ्ते भर बाद उसने चुनावों के आंकड़ों में फेर-बदल करना शुरू कर दिया। हरेक चरण के मतदान के बाद चुनाव आयोग ने बिना नागा हफ्ते भर बाद मतदान के आंकड़ों को बढाया।

हाल में ही प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि हम भारत को 22वीं सदी में ले जा रहे हैं, जबकि विपक्ष देश को 20वीं सदी में धकेल रहा है। प्रधानमंत्री जी के 22वीं सदी के भारत का यह नायाब नमूना है – इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के बाद भी आंकड़े मतदान के 10 दिनों बाद बताये जायेंगे और इसके बाद भी इन आंकड़ों को गोपनीय रखना पड़ेगा, अन्यथा देश की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो जाएगा और आंकड़ों पर प्रश्न उठाने वालों को प्रधानमंत्री नक्सली और मुजरा करने वाले करार देंगे।

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त को देश में चुनाव की घोषणा करते हुए अपने ही वक्तव्यों को कम से कम एक बार फिर से देख लेना चाहिए, जिसमें उन्होंने कहा था कि चुनावी भाषणों में विपक्षी नेताओं पर निजी प्रहार पर अंकुश लगाना पड़ेगा और भाषणों में विपक्ष पर नीतिगत आलोचना होनी चाहिए। देश के मुख्य चुनाव आयुक्त को देश की जनता को यह जरूर बताना चाहिए कि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, बीजेपी अध्यक्ष और दूसरे बड़े बीजेपी नेताओं का एक भी भाषण इस कसौटी पर खरा उतरता है?

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मुख्य चुनाव आयुक्त को यदि वर्तमान मतदान आदर्श नजर आते हैं तो उन्हें चुनाव का यह खेल बंद कर देना चाहिए। उन्हें तो एक नोटपैड लेकर अपने आकाओं के पास जाकर हरेक पांच वर्ष बाद पूछ लेना चाहिए कि नतीजे क्या जारी करने हैं। इसके बाद प्रधानमंत्री जी जैसे ही दो दिनों की माडिया ध्यान यात्रा से वापस आयें, अपने नोटपैड पर लिखे नतीजों का ऐलान कर देना चाहिए। इससे चुनावों पर खर्च होने वाले अरबों रुपये बचेंगे, जिससे देश जल्दी ही पांच खरब डॉलर वाली तीसरी आर्थिक शक्ति बन जाएगा।

नतीजों के विरोध के हर स्वर को सत्ता पाकिस्तान समर्थक, हिन्दू विरोधी, माओवादी, नक्सली, अर्बन नक्सल और टुकड़ें-टुकड़ें गैंग बता कर जेल में डाल देगी। प्रधानमंत्री मोदी के विकसित भारत, 22वीं सदी के भारत, विपक्ष-मुक्त भारत, आर्थिक महाशक्ति, गरीबों के मुफ्त अन्नदाता जैसे सभी सपने पूरे हो जायेंगें और बदले में रिटायर होने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त किसी मेवे वाली पोस्ट पर तैनात हो जायेंगे।

चुनावों की घोषणा करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने फेकन्यूज़ पर भी चिंता जाहिर की थी और उसे रोकने के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की थी। चुनावों से पहले अनेक विशेषज्ञों ने भी सोशल मीडिया और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के इस दौर में फेकन्यूज़ द्वारा चुनावों को प्रभावित होने की आशंका प्रकट की थी। ऐसी सारी आशंका निर्मूल साबित हुई, क्योंकि प्रधानमंत्री जी की अगुवाई में बीजेपी नेताओं ने फेकन्यूज़ की ऐसी बारिश की कि एआई और सोशल मीडिया भी प्रधानमंत्री जी के सामने नतमस्तक हो गए और मुख्य चुनाव आयुक्त तो सत्ता द्वारा उगले गए फेकन्यूज़ की झड़ी से इतने प्रभावित हुए कि उसे प्रवचन की श्रेणी में परिभाषित कर दिया। शायरी उगलने में माहिर मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव नतीजों के ऐलान के समय कुछ शायरी सत्ता द्वारा उगले गए जहर पर भी सुनानी चाहिए।

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