Political News : नई पार्टी बनाएंगे कैप्टन अमरिंदर सिंह, दिल्ली पहुंचे - मिल सकते हैं जेपी नड्डा से
Political News : कैप्टन बीजेपी ज्वाइन करने पर वह हां और ना नहीं कर रहे हैं, वह बस यही कहते हैं कि सभी विकल्प खुले हैं,अलबत्ता उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से वह पहले भी मिलते रहे हैं....
Political News जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। सीएम पद को छोड़ने के बाद अब कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) अब फिर से सक्रिय हो गए हैं। वह आम शाम दिल्ली जा पहुंच रहे हैं। उम्मीद है कि वह भाजपा (BJP) नेताओं से मिलेंगे। कयास लगाए जा रहे हैं कि कैप्टन बीजेपी ज्वाइन करेंगे। बीजेपी को पंजाब में मजबूत चेहरा चाहिए। इधर कैप्टन को भी अपनी सियासी पारी के लिए कोई मजबूत मंच। भाजपा कम से कम इस वक्त तो उनके लिए मजबूत आधार बन सकती है।
पंजाब के सीनियर पत्रकार सुखबीर सिंह रंधावा (Sukhbir Singh Randhava) ने बताया कि कैप्टन इस वक्त अपनी राजनीति के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। जिस तरह से कांग्रेस ने उन्हें सीएम पद से हटाया, इससे वह आहत है। उनके साथ निश्चित ही बुरा हुआ है। इसका मतलब यह नहीं है कि बीजेपी में जाते ही उनके लिए सब कुछ आसान हो जाएगा। ऐसा हो सकता है कि उन्हें कुछ समय के लिए अपना गुस्सा निकालने की वजह मिल सकती है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amarinder Singh) की इससे पहले भी बीजेपी में जाने की संभावना बनी थी। पंजाब विधानसभा (Punjab Assembly) से पहले 2017 में वह बीजेपी के संपर्क में रहे थे। बाद में हालांकि कांग्रेस (Congress) ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा। इस तरह से तब बीजेपी में उनका जाना टल गया। इस बात को कैप्टन ने स्वीकार भी किया था कि वह बीजेपी में जा सकते थे।
इस बार भी बीजेपी (BJP) ज्वाइन करने पर वह हां और ना नहीं कर रहे हैं। वह बस यही कहते हैं कि सभी विकल्प खुले हैं। अलबत्ता उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से वह पहले भी मिलते रहे हैं। लेकिन सीएम पद छोड़ने के बाद अमित शाह से यह उनकी पहली मुलाकात है।
जानकारों का मानना है कि कैप्टन और बीजेपी के तब में और अब के हालात में काफी अंतर आ गया है। इसमें बीजेपी को भी कैप्टन के तौर पर एक नेता तो मिल सकता है, लेकिन इस वक्त बीजेपी की जो स्थिति पंजाब में हैं, इसमें कैप्टन ज्यादा कुछ नहीं कर पाएंगे। क्योंकि तीन कृषि कानूनों (Agriculture Laws) को लेकर पंजाब (Punjab) में बीजेपी का जबरदस्त विरोध है। यह सही है कि कैप्टन तीनों कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसानों के साथ खड़े हैं।
अब यदि वह बीजेपी में जाते हैं तो इस स्टैंड का क्या होगा? पंजाब की राजनीति की समझ रखने वाले और राजनीतिक शास्त्र के पूर्व प्रोफेसर एसएस विर्क (Formar Professor SS Virk ) का मानना है यह संभावना हो सकती है कि बीजेपी भी तीन कृषि कानूनों पर कैप्टन का साथ ले। क्योंकि बीजेपी की समझ में भी आ गया कि तीन कृषि कानून उनके लिए राजनीति घाटे का सौदा बने हुए हैं। यूपी और पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव है।
पंजाब में तो बीजेपी का ज्यादा कुछ नहीं, लेकिन यूपी में तो बीजेपी का सब कुछ दांव पर है। इसलिए बीजेपी चाहती है कि तीन कृषि कानूनों का तर्क संगत हल निकल जाए। वह हल ऐसा होना चाहिए कि बात भी बन जाए और यह संदेश भी न जाए कि बीजेपी पीछे हट गई। कैप्टन के माध्यम से यह रास्ता निकल सकता है।
पत्रकार सुखबीर सिंह रंधावा (Sukhbir Singh Randhava) का मानना है कि कैप्टन अभी बीजेपी में जाने की बजाय अपनी पार्टी बनाएंगा। क्योंकि यह स्थिति दोनो के लिए ठीक है। भाजपा अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) को सपोर्ट कर सकती है। यह दोनो के लिए ठीक भी रहेगा। क्योंकि इस तरह से कैप्टन एक तीर से दो शिकार कर सकते हैं। वह पंजाब की राजनीति में सक्रिय भी रह सकते हैं, साथ ही कांग्रेस को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। जैसा कि वह चाहते भी है।
सुखबीर सिंह रंधावा ने बताया कि कैप्टन लगातार खुद को मजबूत करने की कोशिश में है। उन्होंने सोमवार की शाम डिनर पार्टी रखी। इसमें पूर्व सैनिकों अधिकारियों को विशेष तौर पर बुलाया। इसके साथ ही वह कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) पर लगातार हमलावर है। उन्होंने सिद्धू को देश के लिए खतरा तक बता दिया है। इस सभी से यह अंदाजा लग रहा है कि वह पार्टी बना सकते हैं, लेकिन रहेंगे भाजपा के नजदीक की।
क्योंकि इस वक्त कैप्टन को किसी मजबूत साथी की तलाश है। जिसके दम पर वह खुद के लिए ठोस आधार तैयार कर सकते। इसमें दो राय नहीं है कि कैप्टन की पंजाब में पकड़ अच्छी, लेकिन पकड़ को वोट में बदलने के लिए फिलहाल उन्हें काम करना होगा।
पंजाब की राजनीति की समझ रखने वालों का कहना है कि इस बात की प्रबल संभावना है कि कैप्टन अपनी अलग पार्टी बनाएंगे। यदि ऐसा होता है तो इससे कांग्रेस का गणित जरूर गड़बड़ा सकता है। पंजाब में हिंदू वोटर्स के सहारे बीजेपी भी खुद को कहीं न कहीं खड़ा करने की कोशिश में हैं। यह संभावना बन सकती है कि चुनाव के बाद संभावना तलाशी जाए कि क्या हो सकता है? क्योंकि यदि किसी तरह से तीन कृषि कानूनों का पेंच भाजपा निकाल दे तो अकाली दल, कैप्टन को भाजपा से कोई परहेज नहीं होगा।
बहरहाल अभी तो यह देखना होगा कि अमित शाह के साथ मीटिंग में होता क्या है? किस मसले पर बातचीत होती। लेकिन जो भी हो, इस मुलाकात ने पंजाब की राजनीति में हलचल मचा रखी है।