आधी सदी के राजनीतिक सफर के बाद दुनिया को अलविदा कहा दलित समाज के संघर्षशील योद्धा पासवान ने
कोरोना काल में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई मुफ्त अनाज वितरण योजना का प्रमुखता से संचालन करने के साथ-साथ मंत्रालय की अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओं को अमल में लाने को लेकर हमेशा सक्रिय रहे पासवान...
नई दिल्ली। आधी सदी से अधिक समय के राजनीतिक सफर के बाद दुनिया को अलविदा कह गए केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पहचान सामाजिक न्याय की लड़ाई के एक महायोद्धा के रूप में रही है। बीते एक महीने से ज्यादा समय से बीमार चल रहे पासवान ने गुरुवार 8 अक्टूबर को दिल्ली के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 74 साल के थे।
लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान ने पिछले साल पार्टी की कमान अपने पुत्र चिराग पासवान को सौंप दी थी। बतौर उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री वह कोरोना काल में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई मुफ्त अनाज वितरण योजना का प्रमुखता से संचालन करने के साथ-साथ मंत्रालय की अन्य महत्वकांक्षी योजनाओं को अमल में लाने को लेकर हमेशा सक्रिय रहे।
बिहार के खगड़िया जिला स्थित गांव शहरबन्नी (अलौली) में पांच जुलाई 1946 को पैदा हुए रामविलास पासवान की चुनावी राजनीति के सफर का आरंभ 1969 में हुआ जब वह बिहार विधानसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुने गए थे।
देश में आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में रामविलास पासवान पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। पासवान 1977 में हाजीपुर सीट से रिकॉर्ड मतों के अंतर से जीते थे, जिसके लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था।
राजद के तेजस्वी यादव ने रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा है, 'न्यायप्रिय राजनीति और दलित वंचित चेतना के मज़बूत स्तंभ अभिभावक आदरणीय श्री रामविलास पासवान जी के निधन से दुखी हूँ। शोषित, वंचित, उत्पीड़ित वर्ग उनके योगदान को सदैव याद रखेगा। भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।'
करीब तीन दशक से ज्यादा समय से केंद्र की राजनीति में दबदबा रखने वाले रामविलास पासवान नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए और दो बार राज्यसभा सदस्य के रूप में वह संसद पहुंचे।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) दोनों की सरकारों में रामविलास पासवान मंत्री बने। सबसे पहले वह 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की अगुवाई वाली सरकार में श्रम एवं कल्याण मंत्री बने। उसके बाद 1996 में वह रेलमंत्री बने और एक जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक इस पद पर बने रहे। इस दौरान उनकों तत्काली प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल के साथ काम करने का मौका मिला।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की अगुवाई में राजग सरकार में पासवान 1999 में संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री बने। यह पहला मौका था जब वह राजग सरकार में शामिल हुए थे। बाद में उनको बाजपेयी सरकार में 2001 में खान मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई।
वहीं, संप्रग के कार्यकाल के दौरान 2004 से लेकर 2009 तक रामविलास पासवान तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री के साथ-साथ इस्पात मंत्री भी रहे।
फिर राजग में शामिल होकर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री बने और मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान भी वह इस पद पर बने रहे।
सामाजिक न्याय की लड़ाई के महायोद्धा रामविलास पासवान की पहचान दलित समाज के एक बड़े नेता के रूप में रही। पासवान को गठबंधन की राजनीति में महारत हासिल थी। यही कारण है कि बीते ढाई दशक से वह हमेशा सत्ता के केंद्र में रहे और सरकार चाहे किसी की भी हो, वह हर सरकार में मंत्री रहे।