मुझे कोर्ट से दया और उदारता की भीख नहीं चाहिए, मैंने जो कहा उसपर अडिग हूं : प्रशांत भूषण

अपने स्टेटमेंट में प्रशांत भूषण ने बहुत साफ कहा है कि मैं अपनी बात पर पूरी तरह अडिग हूं, अदालत को जो सजा देनी है दे, मैं किसी याचना, दया की मांग नहीं करता...

Update: 2020-08-20 07:34 GMT

जनज्वार, दिल्ली। अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज 20 अगस्त को पेश हो रहे वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अपना पक्ष रखा है। उन्होंने कोर्ट में पेश किये अपने स्टेटमेंट में उन्होंने बहुत साफ कहा है कि मैं अपनी बात पर पूरी तरह अडिग हूं। अदालत को जो सजा देनी है दे, मैं किसी याचना, दया की मांग नहीं करता।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के कोर्ट में आज प्रशांत भूषण पेश हुए थे, जहां उन्होंने यह स्टेटमेंट जारी किया।

अरुण मिश्रा वाली पीठ ने भूषण के वकील दुष्यंत दवे से कहा कि वह न्यायालय से अनुचित काम करने को कह रहे हैं कि सजा तय करने संबंधी दलीलों पर सुनवाई कोई दूसरी पीठ करे।

गौरतलब है कि कोर्ट की अवमानना मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की अपील सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार 20 अगस्त को खारिज कर दी है। आज प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में होने वाली बहस टालने और रिव्यू पीटिशन लगाने का मौका देने की अपील की थी।

प्रशांत भूषण के वकील दुष्यंत दवे ने मामले में सजा तय करने पर दलीलों की सुनवाई टालने का अनुरोध करते हुए कहा था कि वह दोषी करार दिये जाने के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे। जिस पर कोर्ट ने कहा कि प्रशांत भूषण हमसे अनुचित काम करने को कह रहे हैं कि सजा पर दलीलें किसी अन्य पीठ को सुननी चाहिए। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने सजा तय करने पर अन्य पीठ द्वारा सुनवाई की भूषण की मांग अस्वीकार की।

प्रशांत भूषण की तरफ से दुष्यत दवे ने कहा कि उच्चतम में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए उनके पास 30 दिनों का समय है। जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि कोर्ट का फैसला तब पूरा होगा जब कोर्ट सजा सुना देगी। दोष सिद्धि की सुनवाई सजा के रूप में होती है।


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प्रशांत भूषण ने अपने स्टेटमेंट में कहा है, 'मैंने माननीय न्यायालय के फैसले को देखा। मुझे इससे पीड़ा हुई है। यह पीड़ा इसलिए हुई कि मुझे अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया, जबकि मैंने तीन दशकों तक व्यक्तिगत और पेशेवर तौर पर नुकसान उठाने के बावजूद एक विनम्र रक्षक की तरह अपनी सेवा दी है। मुझे पीड़ा इसलिए नहीं है कि मुझे सजा दी जा सकती है, बल्कि यह तकलीफ इस बात का है कि मुझे सही से समझा नहीं गया।

प्रशांत भूषण ने स्टेटमेंट में कहा है, 'मुझे इस बात से झटका लगा है कि न्याय प्रशासन के संस्थान की अवमानना का दोषी ठहरा दिया गया है। मुझे वो शिकायत तक नहीं बताया गया, जिसे अवमानना माना गया। मुझे दुःख है कि उस शिकायत की कॉपी भी उपलब्ध नहीं कराई गयी, जिसके आधार पर मुझे अवमानना का दोषी ठहराया गया, न ही इस संबन्ध में मेरे द्वारा दाखिल किए गए एफिडेविट पर विचार किया गया।

प्रशांत भूषण आगे कहते हैं, मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है कि कोर्ट ने मेरे ट्वीट को लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण खंभे को अस्थिर करने वाला करार दिया गया। मैं इसे बार-बार दुहराना चाहूंगा कि वे दो ट्वीट मेरे वास्तविक विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं, ऐसी अभिव्यक्ति का, जिसकी किसी भी लोकतंत्र में इजाजत होनी चाहिए।

मेरा विश्वास है कि संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए खुली आलोचना की लोकतंत्र में बहुत जरूरत होती है। हम अभी इतिहास के उस दौर में हैं जब उच्च सिद्धांत सामान्य कर्तव्यों पर हावी होने चाहिए, जब संवैधानिक मूल्यों की रक्षा व्यक्तिगत और पेशेवर ब्यौरा से ऊपर होने चाहिए, जब भविष्य के लिए किए जा रहे कार्यों के बीच वर्तमान की चिंता नहीं होनी चाहिए। नहीं बोलना मेरे जैसे 'कोर्ट ऑफिसर' के लिए कर्तव्य की उपेक्षा होगी।

प्रशांत भूषण ने आगे कहा है, मेरे ट्वीट और कुछ नहीं, बल्कि लोकतंत्र के इतिहास के इस दौर में मेरे सर्वोच्च कर्तव्य प्रदर्शन की एक छोटी सी कोशिश थी। मैंने ये ट्वीट उदारता के अभाव के कारण नहीं किए। उन ट्वीट के लिए जो मेरे विश्वास में यथार्थ हैं और रहेंगे, उनके लिए मेरी तरफ से क्षमायाचना करना मेरे लिए निष्ठाहीनता और तिरस्कारपूर्ण होगा। इसलिए मैं विनम्रतापूर्वक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा अपने ट्रायल के दौरान कही गई पंक्तियों को संक्षेप में कहना चाहूंगा 'मैं दया की याचना नहीं करूंगा। मैं उदारता बरतने के लिए अपील नहीं करूंगा। मैं यहां हूं, इसलिए कानूनी रूप से सही कोई भी दंड दिया जाय, उसे खुशी-खुशी स्वीकार करूँगा। जिसे कोर्ट अपराध मान रहा है, उसे मैं एक नागरिक का सर्वोच्च कर्तव्य मानता हूं।

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