प्रशांत किशोर ने पंजाब के मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार के पद से दिया इस्तीफा

सीएम अमरेंदर सिंह को एक और झटका। पंजाब की राजनीति में अकेले पड़ते जा रहे हैं कैप्टन। अगले साल विधानसभा चुनाव में अमरेंदर सिंह की चुनौतियाँ बढ़ सकती है....

Update: 2021-08-05 07:13 GMT

(प्रशांत किशोर भले ही आराम के लिए सीएम के मुख्य सलाहकार के पद को छोड़ने की बात बोल रहे हो, लेकिन हक़ीक़त यह है कि अब सीएम बेहद कमजोर पड़ गए हैं)

जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह को झटके पर झटके लग रहे हैं। पहले उनके तमाम दावपेंच के बाद भी पंजाब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पद पर नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी आलाकमान ने बिठा दिया। इसके बाद अब उनके प्रधान सलाहकार जाने माने चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपना पद छोड़ने का ऐलान कर दिया है। प्रशांत किशोर ने बताया कि वह एक ब्रेक लेना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने सीएम से आग्रह किया कि उन्हें पद से मुक्त कर दिया जाए।

इसी साल पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की जीत में प्रशांत किशोर की अहम भूमिका मानी जा रही है। इस चुनाव के बाद प्रशांत किशोर ने चुनाव रणनीति के काम से ख़ुद को अलग करने की घोषणा की थी। इसी बीच मार्च में वह पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह के प्रधान सलाहकार बने थे। पंजाब सरकार में उन्हें केबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था। इस पद पर आने के बाद पंजाब कांग्रेस में पहले तो कुछ समय तक ठीक चला, लेकिन बाद में चीजे खराब होना शुरू हो गई।

प्रशांत किशोर पंजाब के पिछले विधानसभा चुनाव में भी अमरिंदर सिंह के साथ रहे थे। उन्होंने तब पंजाब में कांग्रेस के लिए बड़ी भूमिका निभाई थी। इस बार भी माना जा रहा था कि वह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका निभाएंगे। लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने सीएम से किनारा करने का ऐलान कर दिया है।

पंजाब की राजनीति की समझ रखने वाले पूर्व प्रोफेसर डाक्टर एसके सोढी ने बताया कि कुछ माह पहले लग रह था कि पंजाब में कांग्रेस की सरकार बन सकती है। लेकिन अब एक के बाद एक जिस तरह से घटनाक्रम बदले हैं, इससे पंजाब में कांग्रेस के लिए मुश्किल हो रही है। इसके लिए सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को बहुत हद तक ज़िम्मेदार माना जा सकता है। वह चुनाव से पहले प्रशांत किशोर के साथ मिल कर कांग्रेस को दोबारा से सत्ता में लाने की जद्​दोजहद कर रहे थे, लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू ने उनका पूरा खेल बिगाड़ दिया। इस वक़्त पंजाब की राजनीति में सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह अकेले पड़ते नज़र आ रहे हैं।

प्रशांत किशोर भले ही आराम के लिए सीएम के मुख्य सलाहकार के पद को छोड़ने की बात बोल रहे हो, लेकिन हक़ीक़त यह है कि अब सीएम बेहद कमजोर पड़ गए हैं। यह तथ्य प्रशांत किशोर समझ गए हैं। इसलिए उन्होंने पंजाब से किनारा कर लिया है।

डाक्टर सोढी ने बताया, "जहाँ तक प्रशांत किशोर के चुनाव रणनीति से हटने की बात है, वह पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद ही यह ऐलान कर चुके थे, इसके बाद भी उन्होंने कैप्टन के मुख्य सलाहकार का पद स्वीकार किया। तब भी उन्हें पता था कि अगले साल पंजाब में चुनाव है। इसलिए प्रशांत किशोर का यह तर्क सही नहीं लग रहा है कि वह अवकाश के लिए पद छोड़ रहे हैं"।

मार्च में जब प्रशांत किशोर को कैप्टन ने मुख्य सलाहकार बनाया था, तब बोला था कि वह यह घोषणा करते हुए बेहद खुश व उत्साहित है कि प्रशांत किशोर उनकी टीम में शामिल हो रहे है। अब हम मिल कर पंजाब की बेहतरी के लिए काम करेंगे।

सवा यह पैदा हो रहा है कि आख़िर क्यों प्रशांत किशोर ऐन मौके पर कैप्टन को छोड़ रहे हैं। इसके जवाब में पजाब की राजनीति रिपोर्टिंग करने वाले सीनियर पत्रकार एसके चहल ने बताया कि नवजोत सिंह सिदधू को कैप्टन प्रदेशाध्यक्ष के पदपर नहीं देखना चाह रहे थे। लेकिन प्रशांत किशोर को लगता था कि विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धू की बग़ावत कांग्रेस को भारी पड़ सकती है। इसलिए वह कांग्रेस नेतृत्व के निर्णय पर चुप रहे। यह भी बताया जा रहा है कि सिद्धू के प्रदेशाध्यक्ष बनने में प्रशांत किशोर सहमत है। कैप्टन इस बात से नाराज है।

दूसरी वज़ह यह है कि प्रशांत किशोर अब केंद्रीय राजनीति में सक्रिय होना चाह रहे हैं। वह थर्ड फ्रंट की बात कर रहे हैं। उनका टारगेट 2024 के लोकसभा चुनाव है। इसलएि भी वह पंजाब को छोड़ कर केंद्र में जाना चाह रहे हैं। तीसरी वज़ह यह है कि पंजाब में कांग्रेस ने अब अपने लिए चीजे उलछा ली है। इसका असर विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन पर नज़र आ सकता है। इस सभी त्थ्यों को देखते हुए प्रशांत ने सीएम के मुख्य सलाहकार के पद को छोड़ना उचित समझा।

एसके चहल ने बताया कि एक ओर वज़ह यह है कि पंजाब सीएम के मीडिया सलाहकार रवीन ठुकराल की कार्यप्रणाली से प्रशांत किशोर सहमत नहीं है। कम से कम दो मौको पर रवीन ठुकराल की भूमिका को वह सही नहीं मान रहे हैं। पहला तो तब जब पंजाब केबिनेट ने कांग्रेस के दो विधायकों को आतंकवाद पीडित परिवार की मदद के लिए सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया था।

दूसरा जब सिद्धू प्रदेशाध्यक्ष बने तो यह ट्वीट करना कि जब तक सिद्धू कैप्टन के प्रति दिए गए बयानों पर माफी नहीं मांगते, तब तक कैप्टन सिद्धू से मिलेंगे नहीं। पार्टी के भीतर जो चल रहा है, उसे इस तरह से सार्वजनिक करना प्रशांत किशोर को रास नहीं आ रहा था। यह भी एक वज़ह थी कि वह ख़ुद को पंजाब में असहज महसूस कर रहे थे। इसलिए भी वह यहाँ से जाना चाह रहे थे।

पत्रकार चहल ने बताया कि निश्चित ही प्रशांत किशोर के जाने से कैप्टन को धक्का लगेगा। यह ऐसा मौका है, जब कैप्टन पंजाब की राजनीति में न सिर्फ़ अकेले पड़ रहे हैं, बल्कि लगातार कमजोर भी होते नज़र आ रहे हैं।

अब देखना होगा कि कैप्टन कैसे वापसी करते हैं। क्योंकि कुछ भी हो, कैप्टन की एक खासियत है और वह यह है कि वह हार नहीं मानते।

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