Punjab News : क्या पंजाब मे बनेगी नई पार्टी, पंवार की राह पर चलेंगे कैप्टन अमरिन्दर सिंह ?
Punjab News : राजनीति मे 5 दशक की लम्बी पारी खेलते हुये 2017 मे अपने आखिरी चुनाव की घोषणा कर चुके थे,। अमरिन्दर अपना कोई राजनीतिक वारिस नहीं स्थापित कर पाये....
जगदीप सिंधू का विश्लेषण
जनज्वार। पंजाब (Punab) ने सत्ता के कई उतार-चढाव देखे हैं। कई दौर राष्ट्रपति शासन (President Rule) के भी रहे। आजादी के बाद से ही पंजाब में राजनीतिक सत्ता परंम्परागत रुप से कांग्रेस (Congress) और अकाली दल (Akali Dal) के बीच ही हस्तांतरित होती रही है।
पंजाब की राजनीति में पिछले कुछ समय से चल रही हलचल के परिणाम आखिरकार धरातल पर असंतुष्ट खेमे की जीत के रुप में सामने आ ही गये। अपनी कार्यशैली और महाराजा के अंदाज के कारण पिछले काफी समय से कैप्टन अमरिन्दर सिंह (Capt. Amarinder Singh) अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के निशाने पर रहे। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व से अच्छे संबंधों के कारण अमरिन्दर सिंह अपनी स्थिति को बार - बार संभालने मे सफल होते रहे। 2017 में कांग्रेस ने 10 बरस के बनवास के बाद अमरिन्दर सिंह की अगुवाई में ही पंजाब मे फिर से सत्ता प्राप्त की थी।
अमरिंदर सिंह ने अपनी सियासत की छवी के केंद्र में अपनी राजसी विरासत को हमेशा रखा। अपने विरोधियों को छोटा बनाने और बौना करने के मौके भी कभी नहीं चूके। अपनी राजनीतिक महत्वकाँक्षा की पर्देदारी भी नहीं की। राष्ट्रीयता और राष्ट्रसेवा की प्राथमिकता को अपने भूतपूर्व सैनिक (EX Soldier) होने से जोड़कर बार - बार सामने भी रखते रहे। पंजाब से एक विशेष मोह के कारण कैप्टन ने राष्ट्रीय राजनीति से इतर पंजाब को ही अपनी कर्मभूमि बनाये रखा। पांच बार पंजाब विधानसभा के चुनाव मे सफल रहे। तीन बार प्रदेश कांग्रेस के मुखिया रहे।
हाल के पंजाब के घटनाक्रम में नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को अहमियत मिलने और खुद को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने से कैप्टन अमरिंदर नाराज हैं। आने वाले 2021 के पंजाब विधानसभा के चुनाव के लिये कांग्रेस की बढ़ी हुयी चुनौतियों, बदलते समीकरणों और किसानों के आंदोलन से बदले हालात को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने भी कै अमरिंदर की कार्यशैली को 'आई ऐम सॉरी कैप्टन ' कह कर विराम लगा दिया। आलाकमान पर दबाव बनाने की रणनीति के माहिर कैप्टन को ऐसे निर्णय की उम्मीद नहीं थी। लेकिन अभी कुछ इंतजार कर रही आलाकमान कितने और समय तक कैप्टन को स्वीकार करेगी, यह प्रश्न भी बना हुआ है।
राजनीति के सफर में अमरिन्दर सिंह ने कई मौकों पर पार्टी हाईकमान को अनदेखा करते हुए फैसले लिए थे। 1984 मे ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) में भारतीय फौज के स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) में की गई कार्यवाही के फैसले से आहत होकर पार्टी छोड़ दी थी। हरियाणा के साथ पानी बंटवारे को लेकर भी पार्टी के मत व सुझाव के विरुद्ध सतलज यमुना लिंक नहर समझौता (Sutlej Yamuna Link Canal Agreement) रद्द कर दिया था। अपने राजनीतिक कद को पार्टी के समानांतर रखने के प्रयासों में खुले बयान देने से भी नहीं हिचके। अपने खिलाफ लगे आरोपों को कभी गंभीरता से ना मानते हुये उपहास व तंज करके खारिज करना कैप्टन की नियति रही है। पंजाब मे हुए राजनीतिक घटनाक्रम में कैप्टन अमरिन्दर के बेबाक बयानों का योगदान भी कम नहीं रहा।
सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के सलाहकारों पर सवाल उठाना व राहुल गांधी (Rahul Gandhi), प्रियंका वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) की राजनीतिक समझ को कटघरे में खड़ा करने वाले बयान में कैप्टन अमरिन्दर की हताशा साफ दिखाई देती है। नवजोत सिद्धू को आनेवाले 2021 के विधानसभा चुनावों में हराने के लिये किसी मजबूत उम्मीदवार को खड़ा करने के बयान से कैप्टन पार्टी से नाता तोड़ने के संकेत स्पष्ट कर रहे हैं।
चुनावों के करीब होने के कारण तेजी से बदलते समीकरणों में कई तरह की कयास लग रहे हैं। अचानक विपक्षी राजनीतिक दलों को अमरिन्दर सिंह में संभावनाए दिखाई देने लगी। भाजपा (BJP) सुर बदल कर अब कैप्टन अमरिन्दर की राष्ट्रीयता की प्रशंसा करने लगी। भाजपा से बढ़ती नजदीकियों की चर्चा पहले भी कैप्टन अमरिन्दर के बारे मे खूब जोर पकड़ती रही है। हालांकि राष्ट्रीयता के सवाल को कैप्टन अमरिन्दर ने नवजोत सिंह सिद्धू के बारे मे बयान देकर खुद खड़ा किया है। राज्य को सीमावर्ती क्षेत्र बताते हुए पाकिस्तान से होने वाले खतरों की आशंका को इस समय पे फिर से गिना दिया।
राजनीति मे 5 दशक की लम्बी पारी खेलते हुये 2017 मे अपने आखिरी चुनाव की घोषणा कर चुके थे। अमरिन्दर अपना कोई राजनीतिक वारिस नहीं स्थापित कर पाये। प्रदेश में पार्टी को संगठित कर एकजुट रखने मे भी असफल ही सिद्ध हुये। उम्र के इस पड़ाव पर एक बार फिर खुदको आजमाने की चाह से भी मुक्त नहीं हो सके। कांग्रेस मे रहते हुये अब ये संभावनाए बहुत सीमित हो गयी हैं। अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये नये विकल्प की तलाश ही एकमात्र रास्ता बचता है।
बदली हुई परिस्थितियों मे अमरिन्दर सिंह ने अपनी संभावनाओ को अभी स्पष्ट नहीं किया। भाजपा (BJP) की कोशिश आपदा मे अवसर खोजने की है। लेकिन एक विचारधारा से बंधकर लंबे समय तक राजनीति में खुद को बनाये रखने वाले ऐसे कद के नेता के लिये इस विकल्प से ज्यादा सशक्त एक नयी राह चुन कर अपने अनुभव और सामर्थ्य से राजनीति मे एक अलग विरासत को बनाया जाना हो सकता है ।