Pushkar Singh Dhami को ही क्यों सौंपी गयी मुख्यमंत्री की कुर्सी, ये हैं आठ बड़ी वजहें

Pushkar Singh Dhami : पुष्कर सिंह धामी आज उत्तराखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने जा रहे हैं, पिछले 22 वर्षों में उत्तराखंड में दो बार लगातार एक ही पार्टी सरकार नहीं बनी थी लेकिन हालिया विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस मिथक को तोड़ दिया....

Update: 2022-03-23 06:30 GMT

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Pushkar Singh Dhami : पुष्कर सिंह धामी आज उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री (Uttarakhand New CM) के रूप में शपथ लेंगे। करीब दर्जनभर दावेदारों को दरकिनार करते हुए कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) ने अपनी कार्यशैली के चलते एक बार फिर आलाकमान के सामने अपनी उपयोगिता साबित की है। विधानसभा चुनाव से महज छः महीने पहले प्रदेश की बागडोर संभालने वाले पुष्कर सिंह धामी के सामने पहले दिन से ही चुनौतियों का अंबार लगा था।

सबसे बड़ी चुनौती उनके सामने अपने ही पूर्ववर्तियों द्वारा प्रदेशभर में खड़े किए वितन्डे से निजात दिलाकर पार्टी को चुनावी पिच पर जीतने की आक्रामकता के साथ खड़ा करना था। महज छः महीने में इस लक्ष्य को हासिल कर धामी ने प्रदेश में पहली बार सत्ताधारी दल को इस स्थिति में लाने में सफलता हासिल की चुनाव मुकाबले में पार्टी पहले ही दिन से कांग्रेस से बढ़त लेती दिखी। अन्यथा अब से पहले की परंपरागत राजनीति में सत्ताधारी दल सत्ता बचाने और विपक्षी दल सत्ता छीनने पर आमादा दिखते थे। धामी ने इस पहली चुनौती को सफलतापूर्वक हल करके दिखाया। 

आलाकमान के सामने पेश की अच्छी छवि

समन्वय बनाकर काम करने का गुण भी एक बड़ी वजह बना जिसने आलाकमान के सामने धामी की अच्छी छवि पेश की। अपने मंत्रिमंडल के सहयोगी हो या फिर पार्टी विधायक। किसी की भी नाराजी की खबर मिलते ही वह उसे मनाने के लिए उसके घर जाने से भी धामी नहीं हिचके। यशपाल आर्य व हरक सिंह रावत जैसे दिग्गजों की नाराजगी दूर करने के लिए धामी कई बार इनके घर गए। समन्वय बनाने के इस गुण को आलाकमान ने आगामी चुनावों में रणनीतिक तौर पर महत्त्वपूर्ण मानते हुए धामी को अन्य दावेदारों पर तरजीह देना बेहतर समझा।

विवादास्पद या हास्यास्पद बयानबाजी की जगह संयमित स्वर

एक बात जो सभी को अपील करने वाली रही, वह धामी की संतुलित बयानबाजी रही। फटी जीन्स जैसे विवादास्पद व हास्यापद बयानबाजी से इतर धामी जो भी बोले, संतुलित और सारगर्भित बोले। यहां तक कि चुनावों के दौरान भी विपक्षी दलों पर उनके राजनैतिक हमले शान्त व संयमित स्वर में रहे। विवादों से दूर रहकर काम के बल पर पहचान बनाना धामी के लिए मुख्यमंत्री चयन की प्रक्रिया में बोनस बना।

नौकरशाही पर लगाम डालकर बना दी कड़क प्रशासक की छवि

काम होना ही नहीं, होते हुए दिखना भी चाहिए। मुख्यमंत्री बनने के बाद पुष्कर धामी ने इस सूत्र पर काम करने की ऐसी शैली विकसित की कि अच्छे-अच्छे नौकरशाह जो पहले मुख्यमंत्रियों को अपनी उंगली पर नचाने के लिए जाने जाते थे, धामी के सामने भीगी बिल्ली बने रहे। जिस साहस के साथ धामी ने जरूरत पड़ने पर ताश के पत्तों की तरह मुख्य सचिव से लेकर नीचे तक कि नौकरशाही को फेंटने में देर नहीं लगाई, उसने उनकी छवि एक कड़क प्रशासक की बना दी। पहली बार लगा कि नौकरशाही को भी लगाम डालकर सीधे काम पर ऐसे भी लगाया जा सकता है।

जमीन पर पांव रहने से बनी लोकप्रिय छवि

पुष्कर सिंह धामी को जब मुख्यमंत्री बनाया गया था तो सबसे बड़ा खतरा उनके हवा में उड़ने का था। लेकिन यह बेहद हैरान करने वाली बात रही कि सामान्य विधायक से सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचने के बाद भी धामी के पांव जमीन पर रहे। आम कार्यकर्ता हो या साथ काम करने वाले सहयोगी, सभी के साथ उन्हें पर्याप्त सम्मान देते धामी ने जिस कुशलता से सामान्य प्रशासनिक काम-काज किया उसने उनकी छवि एक लोकप्रिय नेता के तौर पर स्थापित की। युवा के साथ-साथ लोकप्रिय होना भी धामी के पक्ष में इसलिए भी गया कि पार्टी की अधिकांश प्रदेशस्तरीय लीडरशिप अपनी उम्र के उच्च मुकाम तक पहुँचने लगी है। नई पीढ़ी की लीडरशिप खड़ा करने का इससे अच्छा अवसर पार्टी को शायद आगे न जाने कब मिलता।

पार्टी हाईकमान को धामी पर भरोसा

एक और बात जो धामी को अपने राजनैतिक गुरु व वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से सीखने को मिली कि उत्तराखण्ड में लम्बी राजनैतिक पारी खेलने के लिए दून और दिल्ली में संतुलन बनाना जरूरी है, का बखूबी इस्तेमाल भी आलाकमान के सामने धामी के अंकों में इजाफा करने में सफल रहा। अपने पूरे कार्यकाल में धामी ने हाईकमान को कभी भी यह नही लगने दिया कि राज्य में उसके एजेंडे की उपेक्षा हो रही है। मोदी के विजन को धरातल पर उतारने के लिए जिस प्रकार धामी ने दिन रात एक किया, उसने भी हाईकमान को धामी पर भरोसा करने की वजह दी।

भू-कानून व देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड जैसे मुद्दे

राज्य से जुड़े कठोर भू-कानून जैसे संवेदनशील मुद्दे हो या गले की हड्डी बना देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का मुद्दा। सभी को बखूबी हल करते हुए चलना भी हाईकमान को खूब रास आया। सख्त भू-कानून के लिए कमेटी बनाना और देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का रोल बैक करके धामी ने सख्त फैसले लेने की अपनी जो छवि बनाई वह उनसे पूर्व के मुख्यमंत्री अपनी ढुलमुल कार्यशैली के चलते नहीं बना सके। अपने कड़क फैसले लेने वाले प्रधानमंत्री मोदी को भी धामी की यह शैली पसंद आई। खुद मोदी ने कई मौकों पर धामी की प्रशंसा कर इसके संकेत भी दिए थे। इसी दृढ़ता में हाईकमान को धामी में भविष्य में केंद्र के साथ बेहतर तालमेल बनाने वाले राजनेता की छवि दिखाई दी।

हाईकमान ने पहचानी ने धामी की साफगोई

पिछली विधानसभा में लगातार मुख्यमंत्री बदलने को लेकर हो रही आलोचनाओं को लेकर भी इस बार हाईकमान सतर्क रहा। हाईकमान फैसले में देर तो चाहता था, लेकिन पहले की तरह जगहंसाई नहीं। ऐसे में जब मुख्यमंत्री पद के अन्य दावेदार किसी न किसी तिकड़म का सहारा ले रहे थे तो धामी के पास उनकी साफगोई और अपने कार्यकाल की कार्यशैली के अलावा कुछ नहीं था। हाईकमान ने धामी की इसी ताकत को पहचाना भी।

केंद्र के साथ तालमेल और स्थानीय मुद्दों पर कठोरता से निर्णय

कुल मिलाकर युवा जोश, केंद्र के साथ अच्छा तालमेल, संगी-साथियों को भरोसे में लेकर चलना, प्रशासन पर मजबूत पकड़ के अलावा केंद्रीय एजेंडे के साथ स्थानीय मुद्दों पर कठोरता से निर्णय लेने की क्षमता ने धामी को अपने उन प्रतियोगियों के साथ बढ़त हासिल करने में खासी मदद की। थोड़ी-बहुत कसर संघ लॉबी को संतुष्ट करने की थी, वह उनके राजनैतिक गुरु व महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने इस दौरान दिल्ली प्रवास के दौरान कर दी। सारे समीकरण साधकर अब धामी की राह निष्कंटक हो चली है।

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