किसान आंदोलन के दौरान अन्नदाताओं को दिल्ली बॉर्डर पर रोकने वाले 6 पुलिस अधिकारियों को वीरता पुरस्कार देने की सिफारिश !
हरियाणा DGP ने जिन 6 पुलिस अधिकारियों को वीरता पुरस्कार देने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा है, उसमें सिफारिश की है कि शंभू और जींद के दाता सिंह वाला-खनौरी बॉर्डर पर आठ लेयर की सुरक्षा के चलते किसान आगे नहीं बढ़ पाए थे, इसी को आधार बनाते हुए सरकार ने गृह मंत्रालय को 6 पुलिस अधिकारियों के नाम वीरता पुरस्कार के लिए भेजे हैं...
Gallantry awards Controversy : अपनी तमाम मांगों को लेकर हमारे देश का अन्नदाता लंबे समय से आंदोलनरत रहा है और अब भी कई जगह किसानों का आंदोलन जारी है। किसान आंदोलन के दौरान लगभग एक हजार किसान शहीद हुए हैं। यह सब चर्चा यहां इसलिए कि अपनी मांगों को लेकर दिल्ली कूच करने आ रहे इन्हीं किसानों को बॉर्डर पर रोकने वाले हरियाणा के 6 पुलिस अधिकारियों को केंद्र सरकार से वीरता पुरस्कार देने की सिफारिश हरियाणा सरकार के डीजीपी द्वारा की गयी है।
हरियाणा के डीजीपी शत्रुजीत कपूर ने केंद्र की मोदी सरकार को भेजे प्रस्ताव में लिखा है कि हरियाणा पुलिस के कई अफसरों ने किसान आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए शंभू और खनौरी बॉर्डर पर रोका था। डीजीपी ने सरकार को भेजे प्रस्ताव में इन पुलिस अधिकारियों को बहादुर और साहसी बताया है, साथ ही सरकार से इन्हें वीरता पुरस्कार देने की मांग की है। खबरों के मुताबिक सरकार ने इस प्रस्ताव को गृह मंत्रालय को भेज दिया है।
हरियाणा सरकार ने जिन 6 पुलिस अधिकारियों को वीरता पुरस्कार देने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा है, उसमें सिफारिश की है कि शंभू और जींद के दाता सिंह वाला-खनौरी बॉर्डर पर आठ लेयर की सुरक्षा के चलते किसान आगे नहीं बढ़ पाए थे। इसी को आधार बनाते हुए सरकार ने गृह मंत्रालय को 6 पुलिस अधिकारियों के नाम वीरता पुरस्कार के लिए भेजे हैं। जिन पुलिस अधिकारियों के नाम प्रस्तावित किये गये हैं, उनमें अंबाला रेंज के आइजी सिबास कविराज, तत्कालीन एसपी जश्नदीप रंधावा, डीसीपी नरेंद्र कुमार, डीएसपी रामकुमार का नाम शामिल है। इसके अलावा दूसरे बॉर्डर पर एसपी सुमित कुमार, डीएसपी अमित भाटिया का नाम शामिल है। गौरतलब है कि सशस्त्र बलों, अन्य कानूनी रूप से गठित बलों और नागरिकों के अधिकारियों और कर्मियों की बहादुरी और बलिदान के सम्मान के रूप में गैलेंट्री अवॉर्ड दिए जाते हैं, मगर इस बार 6 नामों की सिफारिश आश्चर्य का विषय इसलिए है क्योंकि अन्नदाता पर लाठियां बरसाने वालों के लिए सम्मान मांगा जा रहा है।
पेशे से पत्रकार जगदीप संधू इस पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, 6 पुलिस अधिकारियों को वीरता पुरस्कार देने की हरियाणा सरकार द्वारा सिफारिश किया जाना एक ऐसी पहल है, जो वर्तमान भाजपा के किसानों के प्रति दृष्टिकोण के नकाब को पूरी तरह उतार देती है। राजनीतिक स्वार्थ के लिए चकाचौंध भरे मंचों से किसानों को अन्नदाता कहना और उनके उपर बर्बरता करने की मानसिकता को पुरस्कृत करना अपने आप में अनूठा साक्ष्य इस सरकार का है। किसान अपनी मांगों के लिए आंदोलन करके सरकार को उसके दायित्व के लिए सचेत करना चाहें तो गुनहगार की श्रेणी में खड़े कर दिये जाते हैं। एक अलग विचारधारा को पोषित करने में सरकार की भूमिका सवालों से बच नहीं सकती। निजी पूर्वाग्रह, अहंकार और पक्षपात को सार्वजनिक राजकीय सेवाओं में संविधान प्रदत अधिकारों के दुरुपयोग के मामले में सरकार के संरक्षण गंभीर सामाजिक व प्रशासनिक परिणाम उत्पन्न कर सकते हैं। इस सवाल को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि हरियाणा कैडर के तीन भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी सिबास कविराज, जश्नदीप सिंह रंधावा, सुमित कुमार के साथ हरियाणा पुलिस सेवा के 3 अधिकारियों नरेंदर सिंह, राम कुमार, अमित भाटिया को विशिष्ट सेवा मैडल से पुरस्कृत करने के लिए हरियाणा पुलिस महा निदेशक शत्रुजीत कपूर ने 2 जुलाई को केंद्र सरकार से संस्तुति की है।
किसान आंदोलन के दौरान सीबास कविराज अम्बाला मंडल के आईजी के तौर पर नियुक्त थे, जबकि जश्नदीप रंधावा अम्बाला जिला पुलिस अधीक्षक के तौर पर सेवा में थे। सुमित कुमार पुलिस अधीक्षक जींद और अमित भाटिया उप अधीक्षक के तौर पर जींद में तैनात थे, जिन्हें खनौरी बार्डर पर उत्कृष्ट कार्य के लिए विशिष्ट सेवा मैडल के लिए चुना गया है। इसी साल फरवरी में किसानों का आंदोलन फिर से शुरू हुआ था और पंजाब के किसानों के जत्थे 'दिल्ली चलो' के अपने अभियान के तहत दिल्ली के लिए हरियाणा से होकर जा रहे थे, जिनको हरियाणा की सीमाओं पर ही रोक दिया गया था।
हरियाणा पुलिस के इन 6 अधिकारियों के लिए वीरता पुरस्कार की मांग करते हुए कहा गया है, 'वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने सरकार को बताया कि इन अधिकारियों ने उस समय अपनी ड्यूटी निभाई, जब पुलिस को हर तरफ से हजारों आंदोलनकारियों के हमलों का सामना करना पड़ रहा था। अगर प्रदर्शनकारी दिल्ली की ओर बढ़ने में सफल हो जाते, तो वे राष्ट्रीय राजधानी को घेर लेते, जैसा कि उन्होंने 2020 में किया था, जब किसान कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करते हुए एक साल से अधिक समय तक रुके रहे थे। पुलिस ने अर्धसैनिक बलों के साथ उचित समन्वय बनाए रखने के अलावा सीमा पर बैरिकेडिंग तोड़ने के किसानों के प्रयासों को विफल कर दिया।' यानी अन्नदाता को राजधानी दिल्ली में न घुसने देना इतना महान और वीरता भरा काम था, जिसके लिए हरियाणा पुलिस के इन अधिकारियों को वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जाये।