जंग लगी केबल, ढीले नट बोल्ट के साथ ही लकड़ी की जगह एल्युमिनियम की फिसलन भरी प्लेट बनी मोरबी हादसे की वजह, मरम्मत के नाम पर हुई थी खानापूर्ति
गुजरात के जिस मोरबी में हुए केबल ब्रिज हादसे में इतनी मौत हुई है, उसमें ब्रिज के मेंटेनेंस के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हुई है। न तो जंग लगा पुराना केबल बदला गया और न ही ठीक से फ्लोर की प्लेट फिक्स किया गया
Morba bridge collapse : गुजरात में करीब डेढ़ सौ लोगों की जान (अभी 132 की अधिकृत सूची) लेने वाले मोरबी हैंगिंग ब्रिज का सच दुर्घटना के 36 घंटे बाद छन छनकर सामने आने लगा है। मेंटीनेंस के नाम पर जिस कंपनी के हवाले यह पुल कर दिया गया था, उसने न केवल खुलेआम लापरवाही की, बल्कि न जाने किस दबाव में तय समय से महीनों पहले ही लोगों की आवाजाही के लिए खोल दिया था। गुजरात पुलिस की शुरुआती जांच में भी यह तथ्य सामने आ चुका है कि तकनीकी और संरचनात्मक खामियां और मेंटेनेंस में कमी मोरबी हादसे की वजह हैं।
राजकोट आईजी अशोक कुमार यादव ने मीडिया को दिये बयान में कहा, पुलिस इस मामले में जांच के लिए फॉरेंसिक एक्सपर्ट और इंजीनियर्स की मदद ले रही है। अशोक कुमार यादव ने बताया कि शुरुआती जांच में पता चला है कि सर्टिफिकेशन के साथ मेंटेनेंस में कमी और तकनीकी और संरचनात्मक खामियां ब्रिज हादसे की वजह हैं।
गुजरात के जिस मोरबी में हुए केबल ब्रिज हादसे में इतनी मौत हुई है, उसमें ब्रिज के मेंटेनेंस के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हुई है। न तो जंग लगा पुराना केबल बदला गया और न ही ठीक से फ्लोर की प्लेट फिक्स किया गया। करार के मुताबिक कंपनी को 8-12 महीने के मेंटेनेंस के बाद ये ब्रिज खोलना था, लेकिन कंपनी ने इसे 7 महीने में ही खोल दिया। इसके पीछे किसका दबाव रहा, यह जांच का हिस्सा है। इतना ही नहीं कंपनी द्वारा इसे आम लोगों के लिए खोले जाने से पहले न ही फिटनेस सर्टिफिकेट लिया गया और न ही प्रशासन से किसी अनुमति ली। यह बड़ी चूक किसकी शह पर हुई, इसका सच सामने आना बाकी है।
मोरबी नगरपालिका ने अजंता कंपनी (ओरेवा) से जो मेंटेनेंस के लिए कॉन्ट्रैक्ट किया था, उसके हिसाब से कंपनी को पुल का 8-12 महीने तक मेंटेनेंस करने के बाद इसे खोला जाना था। एक नया तथ्य यह सामने आ रहा है कि कंपनी ने कथित तौर पर इसका रेनोवेशन का ठेका थर्ड पार्टी को दे दिया था। जिसने पैसे बचाने के चक्कर में रेनोवेशन के नाम पर ऐसी खानापूर्ति की कि मरम्मत के नाम पर ब्रिज पर नया रंग रोगन कर दिया। ब्रिज की मरम्मत की मद में जो 2 करोड़ रुपए खर्च हुए, उसके सदके मरम्मत के नाम पर ब्रिज पर पेंट के अलावा ब्रिज की प्लेट्स बदली गई थीं। कुछ और छोटा मोटा काम भी किया गया था।
अभी भी इस पुल की जो मौके पर स्थिति है, उसमें केबल ब्रिज के एंकर में लगी क्लिप में जंग साफ दिख रहा है। मरम्मत के वक्त जंग लगा पुराना केबल भी नहीं बदली गई थी। नट बोल्ट भी इतने कमजोर थे कि भीड़ के वजन से ही टेढ़े पड़ गए। केबल भी भीड़ के वजन को नहीं सह सका। सबसे बड़ी बात कंपनी ने लकड़ी के फ्लोर की जगह एल्युमिनियम की प्लेट का इस्तेमाल किया था लेकिन ये ठीक से फिक्स नहीं की गईं। जो ब्रिज में लोगों के फिसलने की भी वजह बनी।
अब तक मामले में यह हुआ
मोरबी में रविवार शाम 6.30 बजे केबल ब्रिज टूटने के वक्त ब्रिज पर 300-400 लोग मौजूद थे। इनमें से 135 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। पुलिस ने इस मामले में ओरेवा कंपनी के चार कर्मचारियों समेत जिन नौ लोगों को गिरफ्तार किया है उनमें से दो कंपनी के मैनेजर, जबकि दो टिकट क्लर्क हैं। 5 अन्य कर्मचारियों में 2 को ओरेवा कंपन द्वारा हायर कॉन्ट्रैक्टर्स हैं, जबकि तीन गार्ड हैं। इन पर आईपीसी की धारा 304 और 308 के तहत मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने इस मामले में मेंटेनेंस कंपनी पर भी मामला दर्ज किया है।
143 साल पुराना था यह ब्रिज
मोरबी की शान कहलाए जाने वाला यह केबल ब्रिज 143 साल पुराना था। 765 फुट लंबा और 4 फुट चौड़े इस पुल को एतिहासिक होने के कारण गुजरात टूरिज्म की लिस्ट में भी शामिल किया गया था। आजादी से पहले ब्रिटिश शासन में मच्छु नदी पर बना यह ब्रिज मोरबी का प्रमुख टूरिस्ट स्पॉट था। मोरबी के राजा वाघजी रावजी ने केबल ब्रिज ( झूलता हुआ पुल) बनवाया था। जिसका उद्घाटन 1879 किया गया था। ब्रिटिश इंजीनियरों के द्वारा बनाए गए इस पुल के निर्माण में आधुनिकतम तकनीक का इस्तेमाल किया गया था।