मोदी सरकार की लोकप्रियता और प्रचंड बहुमत का अस्तित्व ही टिका है झूठी खबरों-मनगढ़ंत आंकड़ों और भ्रामक सफलताओं की कहानियों पर
सोशल मीडिया को हथियार की तरह उपयोग में लाने का दूसरा चरण है, इन्टरनेट का सरकारी इस्तेमाल। सरकार अपनी मर्जी से इन्टरनेट का उपयोग हमें करने देती है और जब उसकी मर्जी नहीं होती तब पूरे देश या किसी क्षेत्र विशेष की इन्टरनेट सेवा ठप्प कर देती है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Social media can stoke conflicting views, polarization and populism in established democracies. एक नए अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन का निष्कर्ष है कि सोशल मीडिया या डिजिटल मीडिया पुराने और परम्परागत प्रजातंत्र को खोखला करता है, हालांकि इसी अध्ययन में बताया गया है कि नए उभरते प्रजातंत्र में सोशल मीडिया मदद भी करता है। इस अध्ययन को जर्मनी स्थित मैक्स प्लांक इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट और यूनाइटेड किंगडम स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिस्टल के समाज शास्त्रियों के संयुक्त दल ने किया है और इसे नेचर ह्यूमन बिहैवियर नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
यह एक रिव्यू अध्ययन है और इसके लिए सोशल मीडिया के जनता की राजनैतिक व्यवहार पर प्रभाव से सम्बंधित दुनियाभर में प्रकाशित 500 से अधिक शोधपत्रों का अध्ययन किया गया है। इस दृष्टि से इस अध्ययन को अब तक का सबसे बड़ा और विस्तृत अध्ययन बताया जा रहा है। अध्ययन के अनुसार सोशल मीडिया पूरी तरह से खराब नहीं है, पर पारंपरिक प्रजातंत्र के लिए यह अवश्य ही विनाशकारी है। इससे समाज का ध्रुवीकरण होता है, लोकलुभावनवाद बढ़ता जाता है और प्रजातंत्र महज एक प्रचारतंत्र बन जाता है, जहां काम नहीं बल्कि लुभावने वादे ही प्रमुख भूमिका अदा करते हैं।
इस दौर में सूचनाओं के आदान प्रदान का सबसे सशक्त माध्यम सोशल मीडिया है। यही सोशल मीडिया अब लोगों को राजनैतिक तौर पर गुमराह, प्रभावित और दिग्भ्रमित करने का एक कपटी हथियार बन गया है। दुष्प्रचार तो केवल इसका पहला चरण है, जिसके प्रभाव से लोकतंत्र ध्वस्त हो रहा है, पड़ोसी देशों को चकमा दिया जा रहा है, दूसरे देशों के चुनावों को प्रभावित किया जा रहा है और लोगों की सोच का दायरा निर्धारित किया जा रहा है।
सोशल मीडिया को बाजार तक लाने वाली कंपनियों ने आरम्भ में लोगों को व्यापक अनियंत्रित जानकारी और स्वच्छंद वातावरण से सशक्तीकरण का झांसा दिया था, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, अलबत्ता यह दुष्प्रचार और गलत जानकारियों का ऐसा सशक्त माध्यम बन गया जिससे एक साथ करोड़ों लोगों को आसानी से गुमराह किया जा सकता है। हालत यहाँ तक पहुँच गयी है की सही जानकारियों पर लोगों ने भरोसा करना बंद कर दिया है और गलत समाचारों को दुनियाभर में पहुंचाया जा रहा है।
दुनियाभर की वे शक्तियां, जिनका अस्तित्व दुष्प्रचार और अफवाहों पर ही टिका है, उनके लिए तो ये एक अनमोल माध्यम बन गया है। इन शक्तियों ने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि तेजी से वैश्विक होती दुनिया में अधिकतर लोग द्विविधा में हैं और ऐसे समय उनके विचारों को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है। दुनियाभर के देशों में पिछले कुछ वर्षों के भीतर ही एकाएक घुर दक्षिणपंथी दलों का सरकार पर काबिज होना महज एक इत्तिफाक नहीं है, यह सब सोशल मीडिया की ताकत है। आज स्थिति यह है की आप किसी घटना या फिर वक्तव्य की सत्यता को परखने का कितना भी प्रयास करें, दुष्प्रचार बढ़ता ही जाता है।
पहले सरकारी स्तर पर झूठी और भ्रामक खबरें और सरकारी दुष्प्रचार के लिए रूस, उत्तर कोरिया और चीन जैसे देश बदनाम थे, पर सोशल मीडिया के इस युग में लगभग हरेक देश की सरकारें और राजनैतिक पार्टियां इसी के सहारे पनप रही हैं। हमारे देश में तो सरकार की लोकप्रियता और प्रचंड बहुमत का अस्तित्व ही झूठी खबरें, मनगढ़ंत आंकड़े और भ्रामक सफलताओं की कहानियों पर टिका है। अब तो लॉबी और पब्लिक रिलेशंस की बड़ी कम्पनियां भी अफवाह फैलाने का ठेका लेने लगी हैं और यह एक बड़ा, महंगा और प्रतिष्ठित कारोबार हो गया है।
पिछले कुछ वर्षों से आपने गौर किया होगा, प्रेस कांफ्रेंस नहीं आयोजित की जाती है, इसका काम अब ट्विटर हैंडल करता है। ट्विटर पर डाला गया सरकारी मैसेज ही आगे, और आगे बढ़ाया जाता है। जाहिर है, जब प्रधानमंत्री या मंत्री मेसेज करेंगे तो सरकार के वाहवाही वाले मेसेज ही करेंगे, और इसी से सरकार के प्रति धारणा बनती है। पहले जब, प्रेस कांफ्रेंस होती थी तब प्रतिष्ठित और अनुभवी पत्रकार उसमें शिरकत करते थे, फिर अगले दिन के समाचार पत्रों में उस वक्तव्य या फिर नीति का पूरा विश्लेषण प्रकाशित होता था।
इसके बाद जनता इसकी अच्छाई और बुराई से परिचित होती थी। प्रेस कांफ्रेंस बंद कर चुके नेता सोशल मीडिया में अपने चाटुकार फोलोवर्स के लिए जरूर कांफ्रेंस आयोजित कर लेते हैं। ऐसा करने वालों में प्रधानमंत्री मोदी अग्रणी हैं।
सोशल मीडिया को हथियार की तरह उपयोग में लाने का दूसरा चरण है, इन्टरनेट का सरकारी इस्तेमाल। सरकार अपनी मर्जी से इन्टरनेट का उपयोग हमें करने देती है और जब उसकी मर्जी नहीं होती तब पूरे देश या किसी क्षेत्र विशेष की इन्टरनेट सेवा ठप्प कर देती है। इन्टरनेट नहीं होता तो सोशल मीडिया बंद हो जाता है और फिर उस क्षेत्र को ना ही कोई जानकारी बाहर से मिलती है और ना ही वहाँ की जानकारी बाहर आ पाती है। कश्मीर में यही लम्बे समय से किया जा रहा है।
सरकार हमेशा सबकुछ सामान्य बता रही है पर वहां की कोई खबर बाहर आ नहीं रही है। सरकारी दृष्टि से इसके दो फायदे हैं, पहला तो यह है की सरकारी दावे को परखने का कोई जरिया आपके पास नहीं है और दूसरा यह है की सरकार नागरिकों के दमन के लिए पूरी तरह स्वच्छंद है।
सूचनाओं को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का तीसरा चरण बहुत भयानक, प्रभावी और आक्रामक है। इसमें हमारे ऊपर आक्रमण केवल दुष्प्रचार या अफवाहों से ही नहीं होगा बल्कि हमारे मानस पटल पर आक्रमण किया जाता है। इसके लिए सोशल मीडिया पर हमारे अनुरूप एक दुनिया का निर्माण किया जाता है और फिर धीरे-धीरे हमारे मस्तिष्क और हमारी सोच पर आक्रमण किया जाता है। यह तब तक जारी रहेगा जब तक हमारी विचारधारा पूरी तरीके से आक्रमणकारी के अनुरूप नहीं हो जाए। इसके परिणाम बहुत खतरनाक हैं। यह सब इतने व्यापक पैमाने पर किया जाता है कि पूरे समाज की प्राथमिकताएं, परम्पराएं और नैतिक मान्यताएं ही बदल दी जाती हैं।
नेचर ह्यूमन बिहैवियर नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार सोशल मीडिया जनता को राजनैतिक तौर पर पूरी तरह से बदलने में सक्षम है, और यह विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास पैदा करने का काम करता है। सोशल मीडिया के जरिये समाज को लाभ पहुंचाने वाले आन्दोलन तो दुनियाभर में इक्का-दुक्का ही रहे हैं, दूसरी तरफ इसी सोशल मीडिया द्वारा फैलते अफवाह और दुष्प्रचार के कारण दुनियाभर में इतिहास, भूगोल, राजनीति, मानवाधिकार, राजनीति, अर्थव्यवस्था, विकास का पैमाना और पर्यावरण सब कुछ बदल चुका है। सोशल मीडिया का प्रसार तो अभी और बढ़ रहा है, ऐसे में समाज के पूरी तरीके से बदल जाने की संभावना है।
उदाहरण हमारे सामने है, हिंसक समूहों की भरमार हो गयी है, यह समूह किसी को भी जान से मारकर चला जाता है। आगे यह हिंसा और अधिक उग्र और व्यवस्थित होगी और समाज इसे मान्यता भी देगा। सोशल मीडिया पर बहस केवल अच्छे या बुरे की नहीं हो सकती, बल्कि अब तो बहस यह होनी चाहिए कि इसने समाज का मौलिक ढांचा किस तरह बदल डाला है, और किस तरह हम सामाजिक विकास में आगे नहीं, बल्कि पीछे जाने लगे हैं।