तमिलनाडु की विधानसभा में CAA के खिलाफ प्रस्ताव पारित, CM स्टालिन ने पीएम मोदी से की कानून वापस लेने की मांग

स्टालिन ने कहा, नागरिका संशोधन अधिनियम शरणार्थियों के साथ उनकी धार्मिक संबद्धता और राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव करने के लिए बनाया गया था, चाहे उनकी स्थिति कुछ भी हो....

Update: 2021-09-08 07:55 GMT

जनज्वार। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राज्य विधानसभा (Tamilnadu Assembly) में प्रस्ताव पेश किया है। इसमें उन्होंने केंद्र सरकार से नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को निरस्त करने की मांग की है। प्रस्ताव पर बोलते हुए स्टालिन ने कहा, नागरिका संशोधन अधिनियम शरणार्थियों के साथ उनकी धार्मिक संबद्धता और राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव करने के लिए बनाया गया था, चाहे उनकी स्थिति कुछ भी हो।

इससे पहले स्टालिन ने कहा था कि श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के कल्याणा के लिए जल्द ही एक समिति का गठन किया जाएगा जो नागरिकता और श्रीलंका लौटने वालों के लिए व्यवस्था करने जैसे मामलों के अलावा अन्य चीजों पर दीर्घकालिक समाधान की दिशा में काम करेगा।

उन्होंने कहा था कि 261.54 करोड़ रुपये शिविरों में रहने वालों के लिए घरों के पुनर्निर्माण व बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए खर्च किए जाएंगे जबकि 12.25 करोड़ रुपये शिक्षा व नौकरी के अवसर सुनिश्चित करने के लिए और 43.61 करोड़ रुपये उनके जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए खर्च किए जाएंगे।

स्टालिन सार्वजनिक उपकरणों के निजीकरण के खिलाफ भी अपनी बात रख चुके हैं। बीते शुक्रवार 3 सितंबर को उन्होंने केंद्र सरकार से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की थी। स्टालिन ने कहा था कि वे देश के औद्योगिकीकरण व आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों में अहम भूमिका निभाते हैं। इससे एक दिन पहले विधानसभा में स्टालिन ने कहा था कि वह प्रधानमंत्री को इस संबंध में पत्र भी लिखेंगे। 

सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में कहा है कि ऐसी इकाइयों को लगाने के लिए सरकारी भूमि के अलावा लोगों की जमीन भी दी गई थी। इसलिए लोगों को ऐसे उपक्रमों पर गर्व व अधिकार है।

मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि केंद्र की राष्ट्रीय मौद्रीकरण पाइपलाइन योजना छोटे व मझोले उद्योंगों व वहां काम कर रहे कर्मियों पर क्या असर डालेगा। नाम को छोड़ भी दिया जाए तो देश के वर्तमान आर्थिक परिदृश्य पर गौर करने से पता चलता है कि बड़े पैमाने पर ऐसे निजीकरण से सरकारी संपत्तियां कुछ समूहों या बड़े निगमों के हाथों में चली जाएंगी।

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