पश्चिम बंगाल के रण को जीतने के लिए पीएम मोदी की यह तस्वीर महज पूर्वनियोजित मास्टस्ट्रोक है
अच्छी फ़ोटो है, लेकिन प्रधान मंत्री जहां भी जाते हैं, एसपीजी उनसे कई दिन पहले वहां पहुंच जाती है। प्रधान मंत्री से डी-एरिया के अंदर या मंच पर या उसके आस-पास कोई भी व्यक्ति पूर्व अनुमति के नहीं मिल सकता। इस तस्वीर में तो यह व्यक्ति न सिर्फ बिल्कुल पास आ चुका है बल्कि एक तरीके से शारीरिक दूरी की न्यूनतम सीमा भी पार हुई है...
जनज्वार ब्यूरो, कोलकाता। पश्चिम बंगाल को हो रहे विधानसभा चुनाव में दो चरणों का मतदान निपट चुका है। इस पूरे दौर में ममता बनर्जी ने हिंदुत्व की बात की। सवाल उठा कि ममता बनर्जी ऐसा क्यों कर रही हैं। दरअसल, इसकी महत्वपूर्ण वजह है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बंगाल की कुल आबादी में मुसलमानों की 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है। कई सीटों पर अल्पसंख्यक एकतरफा जीत और हार तय करते हैं। इन सबके बीच यह भी देखना अहम है कि सिर्फ अल्पसंख्यकों के वोट से सत्ता तो हासिल नहीं की जा सकती। ऐसे में अहम हिंदू वोटबैंक भी है।
तो एक वायरल फोटो में पीएम मोदी एक अल्पसंख्यक वोटर से इस कदर बतियाते देखे जा रहे हैं जैसे वह उनके कद के बराबर का कोई नेता हो। कुछ उससे भी जादा जितना उन्होने राजनाथ सिंह के भी साथ आज तक नहीं दिखाया। इस वायरल फोटो पर स्वतंत्र पत्रकार मुकुंद हरि लिखते हैं कि 'अच्छी फ़ोटो है लेकिन प्रधान मंत्री जहां भी जाते हैं, एसपीजी उनसे कई दिन पहले वहां पहुंच जाती है। प्रधान मंत्री से डी-एरिया के अंदर या मंच पर या उसके आस-पास कोई भी व्यक्ति पूर्व अनुमति के नहीं मिल सकता। पूरी सूची बनती है और उसकी समीक्षा तक की जाती है। पार्टी के नेताओं के साथ ही पार्टी का संगठन भी इसमें सहयोग करता है। विशेष पास जारी किए जाते हैं। कई स्तरों का सुरक्षा चक्र मौजूद रहता है।
अपवाद यह हो सकता है कि प्रधानमंत्री स्वयं किसी को मिलने को बुलाएं या उसके पास चले जाएं। तब भी उनकी सुरक्षा में लगे एसपीजी के अधिकारी बिना अपनी संतुष्टि के प्रधानमंत्री को ऐसा जोखिम लेने नहीं देते। इस तस्वीर में तो यह व्यक्ति न सिर्फ बिल्कुल पास आ चुका है बल्कि एक तरीके से शारीरिक दूरी की न्यूनतम सीमा भी पार हुई है। ऊपर से कोविड के चलते प्रधानमंत्री वैसे ही अत्यधिक नियमों के घेरे में रखे जाते हैं।
बिहार के विधान सभा चुनाव प्रचारों में तो यह स्थिति थी कि प्रधान मंत्री का मंच बिल्कुल अलग बनता था और एनडीए के उम्मीदवार बिल्कुल अलग मंच पर बैठते थे। प्रधान मंत्री के मंच पर बमुश्किल एकाध सांसद या पार्टी के बड़े नेता ही रहते थे। इसलिए, पूरी उम्मीद है कि यह तस्वीर पूर्व नियोजित हो सकती है। फिर भी ऐसे सांकेतिक चित्र यदि सामाजिक सौहार्द को बढ़ाएं तो स्वागत है लेकिन इसका राजनैतिक लाभ लेना एक भिन्न अवसरवादी विषय भी हो सकता है। उम्मीद है जालीदार टोपी में दिखाई दे रहा व्यक्ति वही होगा जो वो दिखाई दे रहा है। अंगूठी, कलाई की चेन पर न जाएं, सब पहनते हैं।
बंगाल के राजनीतिक जानकार कहते हैं 'ममता बनर्जी के हालिया बयानों ने (जिसमें उन्होंने कहा कि मैं हिंदू हूं रोज घर से चंडीपाठ करके निकलती हूं, मेरा गोत्र शांडिल्य) यह साफ किया है कि वह अपनी सुविधा के मुताबिक हिंदुत्व का चोला ओढ़ने का प्रयास कर रही हैं। वरना इस दिखावे की चुनाव प्रक्रिया के दौरान तो जरूरत ना ही पड़ती। इसके साथ बीजेपी भी यह साबित करने में सफल रही है कि ममता बनर्जी को हिंदू वोटबैंक की कोई फिक्र नहीं। इस बात को ममता बनर्जी के 'जय श्री राम' के नारे के विरोध ने प्रमाणित भी किया।'