राजनीतिक साज़िश के तहत फंसाए गए उमर ख़ालिद और अन्य आरोपी, जमानत न देकर उन्हें जेल में सड़ने को किया जा रहा मजबूर !

उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, गुल्फिसां फातिमा, अथर खान, ख़ालिद सैफी, मोहम्मद सलीम खान, शिफ़ा उर रहमान, मीरान हैदर और शादाब अहमद जिनकी जमानत याचिका ख़ारिज की गई, वे सभी देश के संवैधानिक ढांचे को मज़बूत करने के लिए संघर्ष करने वाले युवा थे...

Update: 2025-09-04 11:44 GMT

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लखनऊ । छात्र नेता उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, गुल्फिसां फातिमा, मीरान हैदर और अन्य की जमानत याचिका ख़ारिज होने को राजनीतिक—सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने राजनीतिक साज़िश करार देते हुए कहा है कि उन्हें फंसाया गया और अब जमानत न देकर जेल में सड़ने को मजबूर कर दिया गया है।

रिहाई मंच अध्यक्ष मोहम्मद शोएब ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यूएपीए जैसे मामलों में भी बेल नियम है, जेल अपवाद है के सिद्धांत से समझौता नहीं किया जा सकता। वहीं दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा यह कहना कि केवल लंबी कैद व मुक़दमे में देरी के आधार पर जमानत देना सभी मामलों में सार्वभौमिक रूप से लागू होने वाला नियम नहीं है। न्यायालय द्वारा यह कहना कि जमानत देने या न देने का विवेकाधिकार संवैधानिक न्यायालय के पास है जो प्रत्येक मामले में विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है, इस पर सवाल करते हुए मोहम्मद शोएब कहते हैं कि यह विशिष्ठ तथ्य एवं परिस्थितियां एक ही तरह के मामले में अलग-अलग नहीं हो सकती है। भाजपा नेता अनुराग ठाकुर के धमकी और उकसाने वाले बयान पर अदालत ने कहा था कि मुस्कुराते हुए बोला था इसलिए अपराध की श्रेणी में नहीं आता। शायद यह फैसला इसलिए दिया गया की आरोपी भाजपा के मंत्री थे।

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रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, गुल्फिसां फातिमा, अथर खान, ख़ालिद सैफी, मोहम्मद सलीम खान, शिफ़ा उर रहमान, मीरान हैदर और शादाब अहमद जिनकी जमानत याचिका ख़ारिज की गई, वे सभी देश के संवैधानिक ढांचे को मज़बूत करने के लिए संघर्ष करने वाले युवा थे। दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी याद दिला दी कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को सिर्फ इसलिए कष्ट नहीं उठाना चाहिए, क्योंकि उसका नाम खान है।

आज बहस है कि मुस्लिम अभियुक्त होने की वजह से इस तरह का फैसला आया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि मुक़दमे को स्वभाविक रूप से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि जल्दबाजी में की गई सुनवाई अभियुक्तों और राज्य दोनों के लिए हानिकारक होगी। यहाँ सवाल उठता है कि पांच साल क्या कोई कम समय होता है इसलिए जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, जबकि इसमें से कई अभियुक्त देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के छात्र रहे हैँ और देश के निर्माण के लिए उन्होंने गंभीर अध्ययन के साथ आंदोलन का रास्ता भी चुना।

रिहाई मंच द्वारा जारी किये गये बयान के मुताबिक, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इन पर व्हाट्सअप ग्रुप में शामिल होने और उकसाने जैसे आरोप हैं। किसी को, किसी व्हाट्सअप ग्रुप में जोड़ देने से जुड़ने वाला कैसे आरोपी हो सकता है। जहां तक उकसावे वाली बात है नागरिकता आंदोलन के दौरान दिल्ली में कई बार आंदोलन कर रहे लोगों पर गोली चलाई गई। भाजपा के नेताओं ने खुलकर धमकी तक दी जिन पर न कोई कार्रवाई की गई और न ही उनके उकसावे पर दिल्ली में भड़के तनाव की साज़िश का उन्हें हिस्सा बनाया गया। आज़ादी के आंदोलन में इंक़लाब ज़िंदाबाद का नारा क्या आज़ाद भारत में लगाना गुनाह हो जाएगा। जेल में देर तक रहने वाले मामले का जिस तरह से सामान्यीकरण किया जा रहा है उससे यह प्रवृति बढ़ेगी कि किसी के ऊपर भी आरोप लगा दीजिए और बिना सुनवाई वह जेल में बिना कसूर तय हुए सड़ता रहेगा।

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