UP Election 2022 : अखिलेश यादव की अपने दम पर यूपी फतह की फुल प्रूफ तैयारी, ये है अचूक रणनीति

UP Election 2022 : सियासी​ किला फतह करने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव इस बार कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहते हैं। इसलिए, उनका जोर भाजपा के पाले में गए लोगों को अपने पाले में लाने और बसपा के कैडर वोट को झटका देने की है।

Update: 2021-12-24 07:13 GMT


सपा की सोशल इंजीनियरिंग पर धीरेंद मिश्र का विश्लेषण


UP Election 2022 : समाजवादी पार्टी ( Samajwadi Party ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav ) उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव ( UP Election 2022 ) जीतने के लिए परंपरागत वोट बैंक को विस्तार देने की रणनीति पर काम कर रहे है। यानि सोशल इंजीनियरिंग ( Social Engineering ) के तहत एमवाई के अपने मतदाताओं के आधार और व्यापक बनाने की उनकी योजना है। ताकि वो यूपी काकिला फतह कर सकें। इस योजना के तहत पार्टी फ्रंटल संगठनों को मजबूत कर रही है। वहीं, पहली बार सपा में दलित संगठन खड़ा कर नए वर्ग को अपने पाले में खींचने और भाजपा ( BJP ) रुझान वाले अपने पुराने मतदाताओं की घर पर वापसी पर भी जोर दिया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में सपा विजय रथ यात्रा शुरू करने के पीछे पार्टी की यही रणनीति काम कर रही है। भाजपा के जनविश्वास यात्रा को अखिलेश यादव इसी वजह से सपा की नकल मानते हैं। सपा प्रमुख का दावा है कि विजय रथ यात्रा से भाजपा घबरा गई है। इसलिए सपा की नकल करने के लिए मजबूर है। इसके अलावा अखिलेश यादव ने प्रदेश भर में चल रहे पार्टी अभियान की समीक्षा की कमान अपने हाथों में ले ली है। कुल मिलाकर अखिलेश यादव पार्टी की सत्ता में वापसी कराने के लिए अपनी तैयार रणनीति पर अमल करने के लिए जीजान से जुटे हैं।

1. जिताऊ उम्मीदवार

लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर पार्टी की रणनीति होती है कि मतदाताओं के सामने ऐसे उम्मीदवार उतारे जाएं तो चुनावी जीत दिला सकें और लोग उस पर भरोसा कर सकें। इस बात को ध्यान में रखते हुए सपा इस बार जिताऊ उम्मीदवार की तलाश में जुटी है। जिताऊ उम्मीदवार का आकलन चुनाव क्षेत्र में दावेदारों की लोकप्रियता, क्षेत्र के मतदाताओं में जातियों का समीकरण के लिहाज से उपयोगता, पार्टी के प्रति निष्ठा और अन्य पहलुओं को मानक माना जा रहा है। अखिलेश यादव ने यह रणनीति मध्य प्रदेश और कर्नाटक में चुनाव के बाद हुए सियासी खेल के मद्देनजर अपनाया है। इन राज्यों में भाजपा ने विपक्षी विधायकों का सामूहिक दल-बदल कराकर अपनी सरकार बना ली थी। इस लिहाज से सपा में अब उम्मीदवारों की निष्ठा केवल पार्टी में से नहीं मापी जा रही है बल्कि अखिलेश यादव के प्रति भी निष्ठा होना जरूरी है। इस निष्ठा वाली कसौटी ने रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया जैसे नेताओं को परेशान कर दिया है, जिन्होंने अपनी जनसत्ता दल ( लोकतांत्रिक ) बनाई है और सपा के साथ गठबंधन करना चाहते हैं। लेकिन अखिलेश यादव उन्हें भाव नहीं दे रहे हैं। जबकि वो मुलायम सिंह यादव के करीबी हैं और हाल ही में उनसे मुलाकात भी कर चुके हैं। इसके बावजूद राजा भैया अखिलेश यादव का भरोसा नहीं जीत पाए हैं। ऐसे उम्मीदवारों का पता लगाने के लिए हैदराबाद की दो सर्वे एजेंसियों की सेवाएं भी सपा ले रही है। उम्मीदवारी की जांच करने के लिए पार्टी ने उनसे अर्जी और अपना बायोडाटा भेजने को कहा है। हालांकि, वर्तमान विधायकों से बायोडाटा नहीं मांगे गए हैं। यानि पुराने विधायकों में से ज़्यादातर को दोबारा टिकट मिलना तय है।

2. अति पिछड़ी जाति ( Most Backward Casts )

समाजवादी पार्टी की नजर इस बार एमवाई के दायरे को विस्तार देने की है। इस योजना के तहत पार्टी ने अति पिछड़ी जातियों ( मोस्ट बैकवर्ड कास्ट्स ) के मतदाताओं को अपने पक्ष में लाना चाहती है। यूपी में किसी पार्टी की जीत पक्की कराने में इन जातियों के मतदाताओं का बड़ा हाथ होता है क्योंकि वे किसी पार्टी से बंधे नहीं होते हैं। ऊंची जातियों के मतदाता भाजपा के, जाटव/चमार बसपा ( BSP )  के और यादव व मुसलमान सपा के पक्के वोटर्स माने जाते हैं। पहले एमबीसी मतदाता बसपा के मजबूत समर्थक माने जाते थे। मगर 2014 के बाद वे भाजपा के साथ हो गए। इस बार सपा उन्हें अपने पाले में लाने की पूरी कोशिश में जुटी है।

3. एमवाई ( MY ) फार्मूला

यूपी में सपा को मूलत: यादव और मुसलमान ( MY ) की पार्टी माना जाता है। पार्टी की जिला इकाई के अध्यक्ष और महासचिव इन्हीं समुदायों में से हुआ करते थे। एक पद पर कोई यादव नेता होता, तो दूसरा पद पर मुसलमान नेता को दिया जाता था। मुझे बताया गया है कि अति पिछड़ी जाति के नेताओं को जगह देने के लिए अखिलेश यादव ने यह नीति बदल दी है।

4. यात्राओं का आयोजन

इस बार समाजवादी पार्टी ने अपनी रणनीति छोटी 'यात्राएं' निकालने को भी शामिल कर लिया है। यूपी में नरेंद्र मोदी द्वारा चुनाव अभियान शुरू करने से बहुत पहले ही सपा के संजय चौहान, नरेश उत्तम पटेल, इंद्रजीत सरोज, मिठाईलाल भारती, केशव देव मौर्य जैसे नेताओं ने प्रदेश के कई हिस्सों में यात्राओं का आयोजन शुरू कर दिया था। अंतिम रणनीति पिछले दो दशकों में उभरीं अति पिछड़ी जातियों में उभरी छोटी-छोटी पार्टियों से चुनावी गठबंधन करने की है। ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन इस चुनावी रणनीति का ही एक उदाहरण है। अपना लोकदल कृष्णा पटेल को साथ लेने के पीछे भी यही मकसद है।

5. आरक्षित चुनाव क्षेत्र

विधानसभा चुनाव 2022 ( UP Assembly Election 2022 ) में सपा की रणनीति ज्यादा से ज्यादा आरक्षित सीटों को जीतने की है। पार्टी इन सीटों पर पहले इसलिए ध्यान नहीं देती थी। ऐसी सीटें बसपा के मजबूत गढ़ होती थी। बसपा के कमजोर पड़ते ही भाजपा उन पर मजबूत दावेदार बन गई। आरक्षित सीटों को जीतने के मामले में भाजपा ने भारी बढ़त बना रखी है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसने 85 में से 75 आरक्षित सीटें भाजपा ने जीत ली थी। अब ज्यादा से ज्यादा इन सीटों को जीतने के लिए सपा, बसपा के प्रभावशाली नेताओं का 'आयात' कर रही है या पार्टी में शामिल कर रही है। मिठाई लाल भारती, इंद्रजीत सरोज, त्रिभुवन दत्त, तिलक चंद्र अहिरवार, केके गौतम, सर्वेश आंबेडकर, महेश आर्य, योगेश वर्मा, अजय पाल सिंह जाटव, वीर सिंह जाटव, फेरान लाल अहिरवार, रमेश गौतम, विद्या चौधरी, अनिल अहिरवार, सीएल पासी, आदि ऐसे ही लोगों में शामिल हैं। ये नेता बसपा में विधायक, सांसद, मंत्री और वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारी रह चुके हैं। सपा ने इन नेताओं को आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ाने की योजना बनाई है। अभी तक सपा इन सीटों पर अधिकतर गैर-जाटव-चमार उम्मीदवारों को खड़ा किया करती थी, लेकिन अब भाजपा ने यह रणनीति अपना ली है। इसलिए सपा इन सीटों पर जाटव-चमार उम्मीदवारों को खड़ा करने पर मजबूर हो गई है। सपा ने मिठाई लाल भारती के नेतृत्व में बाबासाहब अम्बेडकर वाहिनी का भी गठन किया है। ताकि इसकी मदद से अनुसूचित जाति के मतदाताओं को अपने साथ जोड़ सकें।

6. दलित संगठनों की मजबूती

पार्टी कार्याकर्ताओं की मेहनत और सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला को हकीकत में तब्दील करने के लिए सपा ने प्रदेश की 72 सदस्यीय नई कार्यकारिणी का एलान किया उसमें सभी वर्गों का विशेष तौर पर ध्यान रखा गया है। यहां तक कि जातीय समीकरण ऐसा साधा कि न तो यादवों को ज्यादा जगह मिली और न ही मुसलमानों को। इसमें समाज के सभी वर्गो को प्रतिनिधित्व दिया गया है। यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती के नेपथ्य में रहने का लाभ उठाते हुए दलित संगठन को मजबूती प्रदान करने में जुटी है। इस संगठन का प्रभारी मिठाई लाल भारती को बनाया गया है। भारती लंबे समय तक बसपा में रहे हैं।

7. छोटे संगठनों के समर्थकों को अपने पाले में लाने पर जोर

सपा की रणनीति के मुताबिक यूपी के दलित व मुसलमानों को अब प्रदेश के छोटे संगठनों पर भरोसा नहीं रह गया है। इसलिए उनका झुकाव अब सपा की ओर तेजी से बढ़ रहा है। चाहे बात असदुद्दीन औवैसी की पार्टी हो या भीम आर्मी के चंद्रशेखर उर्फ रावण के दल की। इन दलों का पूरे प्रदेश में नुमाइंदिगी नहीं है। इससे पहले भी मुसलमानों के कल्याण को लेकर पीस पार्टी बनी, लेकिन उसका अस्तित्व न के बराबर रहा। सोशल इंजीनियरिंग के जरिए सपा इस वर्ग को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रही है।

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