UP Election 2022 : सपा से पार पाना भाजपा की मुसीबत, 'बिग चैलेंज' बने अखिलेश यादव

सीएम रहते हुए अपने पांच साल के काम और दो दशक से राजनीतिक सक्रियता के अनुभव का लाभ उठाकर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इस बार भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं।

Update: 2022-01-09 08:50 GMT

लखनऊ। सियासी नजरिए से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव ( UP Election 2022 ) के लेकर सियासी जोड़तोड़ चरम पर है। भाजपा ( BJP ) सत्ता में दोबारा वापसी की मुहिम में जुटी है, तो अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav ) योगी-मोदी को पछांड़ पांच साल बाद फिर से सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं। सपा की इस मुहिम को कामयाब बनाने में समाजवादी पार्टी ( Samajwadi Party ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष कोई कमी नहीं रखना चाहते हैं। इसका असर यूपी की सियासी आवोहवा पर दिखाई भी देने लगी है। सीएम रहते हुए अपने पांच साल के काम और दो दशक से राजनीतिक सक्रियता के अनुभव का लाभ उठाकर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इस बार भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं।

सपा के तेवर से सकते में भगवा ब्रिगेड

सपा प्रमुख ने अकेले दम पर यूपी विधानसभा चुनाव 2022 ( UP Assembly Election 2022 ) को द्विधु्रवीय बना दिया है। यानि इस बार सपा और भाजपा आमने-सामने है। विधानसभा चुनाव प्रचार में सपा प्रमुख के ये तेवर पहली बार लोगों को देखने को मिला है, जिसे पसंद भी किया जा रहा है। प्रदेश भर में समाजवादी विजय रथ यात्रा ( SP Vijay Rath Yatra)  के जरिए उन्होंने भाजपा को स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वो उन्हें कम आंकने की कोशिश न करे। उन्होंने सपा रथ यात्रा के जरिए न केवल प्रदेश भर के युवाओं में नए उत्साह का संचार किया है बल्कि भगवा ब्रिगेड को सकते में भी डाल दिया है।

वेस्ट यूपी में सपा रालोद के साथ

दिल्ली बॉर्डर पर कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन ( Kisan Andolan ) का समर्थन कर अखिलेश यादव रालोद नेता जयंत चौधरी के साथ गठबबंधन का फैसला ले चुके हैं। ऐसा कर उन्होंने पश्चिम यूपी में जाट प्रभाव वाले 110 सीटों पर पार्टी को मजबूत बनाने की कोशिश की है। सपा रालोद गठबंधन से वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में कमजोर होगा। यानि मुस्लिम-जाट मतदाता पहले की तरह इस बार अपना दिखाएंगे।

अखिलेश ने मोदी के 'उपयोगी' को ऐसे बनाया 'अनुपयोगी'

इस बार अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav ) अपने पिता व नेताजी के नाम से लोकप्रिय मुलायम सिंह यादव की छवि से बाहर निकल चुके है। वह खुद की अलग पहचान बनाने में सफल रहे हैं। बसपा और कांग्रेस के तुलना में भाजपा के खिलाफ उनका तेवल भी ज्यादा आक्रामक है। यही वजह है कि यूपी विधानसभा चुनाव रोचक मोड़ की ओर अग्रसर है। अखिलेश यादव अब ट्विटर नेता के बदले जमीनी नेता बन गए हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने पीएम मोदी के उपयोगी योगी की धार को अपने अनुपयोगी योगी के जरिए कुंद भी कर दिया है। उन्होंने यूपी के लोगों को बताया है कि योगी का राज केवल एक तबके लिए उपयोगी है, बाकियों के लिए अनुपयोगी है। 

चाचा ने भी माना अखिलेश में है दम

अपने सपा पर प्रभुत्व को साल 2016 में मचे आंतरिक कलह, 2017 विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव 2019 में लगातार हार के बावजूद अखिलेश यादव समाजवादी समर्थकों को अपने साथ जोड़कर रखने में कामयाब रहे हैं। ऐसा कर उन्होंने साबित कर दिया है यूपी में असली समाजवादी उनके साथ ही हैं। इस बात को अब खुद प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल यादव स्वीकार कर चुके हैं। उनके इस स्वीकारोक्ति के बाद से समाजवादियों का मनोबल चरम पर है।

MY नहीं, इस बार सबके साथ

इस बार विधानसभा चुनाव में सपा की रणनीति न तो बड़े दलों के साथ गठब्ंधन की है न ही एमवाई पर जोर देने की। इसके बदले अखिलेश की रणनीति सबके साथ और जाति आधारित छोटे दलों से गठबंधन करने की है। उन्होंने इस बार कुर्मी, राजभर, दलितों को भी अपने साथ लेकर चल रहे हैं।

नॉन यादव ओबीसी पर जोर

इससे पहले सपा ने कांग्रेस के साथ 2017 और बसपा के साथ 2019 में चुनाव लड़ा था। लगातार दोनों चुनाव में सपा को करारी शिकस्त मिली थी। इस बार उन्होंने छोटी पार्टियों से गठबंधन को तवज्जो दी है। खासकर उनका फोकर नॉन यादव ओबीसी पर मतदाताओं पर ज्यादा है। सपा के एक सर्वे में पाया गया कि 2017 के चुनाव में 50 फीसदी से ज्यादा ओबीसी ने भाजपा के लिए वोट किया। सपा के लिए केवल 15 फीसदी लोगों ने मतदान किया। इस बार उन्होंने संदेश दिया है कि सपा नॉन यादव ओबीसी को अपने साथ लेकर चलना चाहती है। इसके अलावा, महान दल के केशव देव मौर्या और नोइया चौहान समुदायों को भी अपने पक्ष में कर लिया है। पार्टी के अपने विरोधियों शिवपाल यादव सुलह कर यादव मतदाताओं को भी मैनेज कर लिया है। सपा विजय रथ यात्रा में युवाओं की भागीदारी इसी का परिणाम माना जा रहा है। सपा को लगता है कि ये रथ्ज्ञ यात्रा में शामिल युवाओं का जोश वोट में तब्दील होगा।

राम का जवाब परशुराम से

अयोध्या में राम मंदिन के निर्माण और मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण के मुद्दे पर आक्रामक भाजपा का जवाब भी उन्होंने ढूंढ लिया है। इस बार उन्होंने भगवान राम का जवाब भगवान परशुराम से देने की नीति अपनाई है। इस योजना के तहत यूपी के सभी जिलों में भगवार परशुराम की प्रतिमा की स्थापना का कार्यक्रम जारी है। हाल ही में उन्होंने लखनऊ में परशुराम की मूर्ति का भी अनावरण किया है। सपा की इस योजना भाजपा को परेशान कर दिया है। इसके जवाब में भाजपा ने भी ब्राह्मण मतदाताओं पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए परशुराम की मूर्ति स्थापना शुरू कर दी है।


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