UP Elections 2022 : क्या आप जानते हैं फैजाबाद से कांग्रेस ने की थी 'Hindutwa' के नाम पर वोट मांगने की शुरुआत, जानिए पूरा इतिहास
UP Elections 2022 : यूपी की राजनीति में राम मंदिर आंदोलन का मुद्दा 1948 से ही जुड़ा है। सबसे पहले कांग्रेस प्रत्याशी बाबा राघव दा ने हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगे थे। 1989 में बीजेपी ने राम मंदिर को पार्टी के कोर एजेंडा बना लिया।
UP Elections 2022 : उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की वजह से राजनीति चरम पर है। सियासी दलों के बीच आरोप—प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। इसमें हिंदुत्व और राम मंदिर भी अहम मुद्दा है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि राम मंदिर के नाम पर सबसे पहले चुनाव में वेट किसने मांगा था। आइए, हम आपको बताते हैं यूपी में राम मंदिर आंदोलन हिंदुत्व को पर्याय कैसे बना।
दरअसल, अयोध्या यानि तत्कालीन फैजाबाद में राम मंदिर सियासी मुद्दा 1948 में ही बन गया गया था। तब भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार राम मंदिर का इस्तेमाल हुआ था। इसकी शुरुआत कांग्रेस ने की थी। वो भी उचुनाव में एक बागी को हराने के लिए कांग्रेस ने हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगे थे। तब से लेकर आजतक राम और मंदिर पर सियासत यूपी में समय-समय पर हलचल पैदा करती रही है। 2022 का चुनाव भी अयोध्या से ही लड़ा जाना तय माना जा रहा है।
माना जाता है कि हिंदुत्व की उपज भी कांग्रेस में अन्तर्कलह की ही देन है। 1934 में कांग्रेस के अंदर सोशलिस्ट पार्टी ने जन्म ले लिया था। इसमें राम मनोहर लोहिया से लेकर आचार्य नरेंद्र देव तक शामिल थे। इस गुट का मुख्य कांग्रेस यानि नेहरू कांग्रेस से टकराव रहती थी। 1948 आते-आते यह खींचतान और बढ़ गई और इस वर्ग ने कांग्रेस से खुद को अलग कर लिया। इतना ही नहीं सोशलिस्ट धड़े से 13 विधायकों ने यूपी विधानसभा से इस्तीफा तक दे दिया था। उपचुनाव का ऐलान हुआ तो उपचुनाव में फैजाबाद हॉट सीट बन गई थी। यहां से समाजवादी विचारक आचार्य नरेंद्र देव मैदान में थे। उस समय गोविंद वल्लभ पंत यूपी के सीएम थे, पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री और सरदार वल्लभभाई पटेल गृहमंत्री थे।
कांग्रेस प्रत्याशी राघवदास ने लिया थ
सोशलिस्ट पार्टी के आचार्य नरेंद्र देव फैजाबाद के ही रहने वाले थे। फैजाबाद यानि अब अयोध्या में उनकी जबर्दस्त पकड़ थी। कांग्रेस के लिए उन्हें हराना चुनौती बन गया था। तब हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति का जन्म हुआ। कांग्रेस ने आचार्य के मुकाबले महाराष्ट्र के बाबा राघव दास को चुनावी मैदान में उतार दिया। राघव दास वही हैं जिनके नाम पर गोरखपुर में मेडिकल कॉलेज है और दुनियाभर में इनसेफेलाइटिस की मौत से बदनाम है। राघव दास ने देवरिया में काफी वक्त बिताया था और समाज सेवा में भी बहुत नाम था। 1948 के उपचुनाव में ही बाबा राघव दास ने सौगंध ली कि वह राम जन्मभूमि को विधर्मियों से मुक्त कराएंगे। उपचुनाव से पहले अयोध्या में पोस्टर लगे जिसमें आचार्य नरेंद्र देव को रावण की तरह दिखाया गया और कांग्रेस प्रत्याशी बाबा राघव दास को राम की तरह पेश किया गया।
मस्जिद का ताला तोड़ रख दी भगवान की मूर्ति
इसके बाद बाबा राघवदास ने जितनी जनसभाएं की उसमें उन्होंने खुलकर राम जन्मभूमि के लिए संकल्प लिया और कहा कि अगर वह चुनाव जीतते हैं तो विधर्मियों से अयोध्या को मुक्त कराएंगे। इसका लाभ उन्हें मिला और आचार्य नरेंद्र देव महज 1,312 वोटों से हार गए। आचार्य नरेंद्र देव को इस चुनाव में 4,080 वोट मिले जबकि राघव दास को 5,392 वोट। यह घटना आज भी इतिहास में दर्ज है। जब आचार्य नरेंद्र देव हार गए तो राघव दास अपना संकल्प पूरा करने में जुट गए। अयोध्या में साधु-संतों के साथ उनकी एक बैठक हुई। इसके बाद दिसंबर 1949 में बाबा राघव दास और महंत अवैद्यनाथ समेत 5 लोग इकट्ठा हुए। इन्होंने सरयू में स्नान किया और राम की मूर्ति लेकर बाबरी मस्जिद की ओर बढ़े। मस्जिद का ताला खोलकर वहां भगवान राम की मूर्ति रख दी गई और भजन- कीर्तन शुरू हो हुए।
नेहरू ने सीएम पंत को दिया था मूर्ति हटवाने का आदेश
इस घटना के बाद अयोध्या को लेकर देशभर में सियासी हंगामा शुरू हो गया। उस वक्त केके नायर अयोध्या के डीएम थे। अयोध्या के हालातों से परेशान ततकालीन पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू ने गोविंद वल्लभ पंत को पत्र लिखा। इस खत में कड़े शब्दों में कहा गया कि इससे ज्यादा गलत कुछ नहीं हो सकता कि वहां पर मूर्ति रख दी गई है। अगर यह सच है तो बहुत गलत चीज है। कांग्रेस तो वहां (यूपी) पर विभाजित है। इस तरह के कदम रोके जाने चाहिए। तत्काल रूप से मूर्तियां हटवानी चाहिए।'
डीएम नायर ने मूर्ति हटवाने के बदले दे दिया था इस्तीफा
यूपी के तत्कालीन सीएम गोविंद वल्लभ पंत ने पत्र के आधार पर डीएम को मूर्ति हटाने के निर्देश दिए लेकिन केके नायर ने मूर्ति हटाने से इनकार यह कहकर कर दिया कि मूर्ति हटाई गई तो हिंसा हो जाएगी, खून खराबा होगा। मामला फंसा तो पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सरदार पटेल से कहा कि अयोध्या में बड़ा गलत हो रहा है। इस बार पटेल ने पंत को पत्र लिखा कि प्रधानमंत्री ऐसा चाहते हैं और इस मामले का विकल्प देखा जाए। पंत ने डीएम पर दबाव डाला तो केके नायर ने अपने पद से ही इस्तीफा दे दिया।
जब भाजपा ने छीन लिया मंदिर का एजेंडा
बस, क्या था, देखते ही देखते, यहीं से हो गई थी राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत। लेकिन 1990 के दशक से बीजेपी ने इसे भुनाना शुरू कर दिया। मंडल—कमंडल के दौर में बीजेपी ने इसे अपना सियासी हथियार बनाया। लगभग हर दल ने अयोध्या के नाम पर जमकर सियासी रोटियां सेंकी। यानी यह आंदोलन शुरू किसी ने किया, बीच में पकड़ा किसी और दल ने और अब अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है जिसके नाम पर 2022 का चुनाव लड़ा जा रहा है।