UP : मैं जनता के हित में बोलता हूं, ऐसा करने से मुझे कौन रोकेगा, पार्टी को लाभ ही होगा - Varun Gandhi

मुद्दे पार्टी या सरकार की सुविधा देखकर या किसी को असहज करने के लिए नहीं उठाए जाते। मैं किसी डर या निजी लाभ-हानि की दृष्टि से राजनीति नहीं करता। जनता के हित में बोलता हूं तो कौन रोकेगा, कौन टोकेगा।

Update: 2022-01-05 06:37 GMT

लखनऊ। पिछले कुछ समय से पीलीभीत ( Pilibhit ) से भाजपा सांसद वरुण गांधी ( Varun Gandhi ) के बयानों से लगता है कि वो पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रह हैं। लगातार अपने बयानों के जरिए अपनी ही सरकार से सवाल कर रहे हैं, जिसकी वजह से वो सुर्खियों में भी रहते हैं। चाहे किसान आंदोलन की बात हो या युवाओं से जुड़े मसले, इनके सवालों ने सुर्खियां बटोरी है। इन सवालों से भाजपा सरकार ( BJP Government ) कटघरे दिखाई दी तो विपक्ष को भी ताकत मिल रही है। लेकिन अहम सवाल यह है कि इसके पीछे उनकी मंशा क्या है? क्या वह पार्टी की किसी रणनीति के तहत ऐसा कर रहे हैं, या भविष्य में नए रास्ते पर चलने के लिए ट्रैक बना रहे हैं। इन सब मुद्दों पर उन्होंने एनबीटी के विशेष संवाददाता से साक्षात्कार में खुलकर अपनी राय रखी है। आइए, हम आपको बताते हैं वरुण गांधी ऐसा क्यों कर रहे हैं।

मेरे विचारों को मानने से पार्टी को लाभ होगा

दरअसल, बीजेपी सांसद वरुण गांधी ( Varun Gandhi ) लगातार अपने बयानों से अपनी ही सरकार से सवाल कर रहे हैं। उनका कहना है कि जनता ने मुझे अपने मुद्दे उठाने के लिए ही सांसद चुना है। यह मेरा लोकतांत्रिक कर्तव्य है कि मैं जनता के विषयों पर बोलूं। यदि जनता की समस्याओं को मैं नहीं उठाऊंगा तो फिर चुनाव लड़ने, सांसद बनने या राजनीति करने के कोई मायने नहीं हैं। मुद्दे पार्टी या सरकार की सुविधा देखकर या किसी परेशान करने के लिए नहीं उठाए जाते। मैं, किसी डर या निजी लाभ-हानि की दृष्टि से राजनीति नहीं करता। जनता के हित में बोलता हूं। ऐसा करने से मुझे कौन रोकेगा, कौन टोकेगा। पार्टी में संवाद तो होता रहता है। मेरे विचारों को मानने से पार्टी को लाभ ही होगा।

किसानों की शर्तों का मानने से लोकतंत्र मजबूत हुआ

नवंबर 2020 से दिसंबर 2021 तक कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का देशव्यापी आंदोलन चल रहा था, वे सड़क पर बैठे हुए थे। 700 से ज्यादा किसान इसमें शहीद हुए। उनकी पीड़ा को समझना चाहिए था। इसीलिए मैंने उनकी बात की। हमें समझना होगा हमारे देश में लोकतंत्र है। किसान ने भी बीजेपी को वोट दिया था। लोकतंत्र में बड़े वर्ग की अवहेलना कर कोई भी पार्टी राजनीति में टिक नहीं सकती। अंत में किसानों की बात मानकर कानून वापस ले लिए गए। यह लोकतंत्र की विजय है। इससे लोकतंत्र और मजबूत हुआ है। जहां तक मेरे सवालों के जवाब की बात है तो इस बिंदु पर जवाब से ज्यादा महत्वपूर्ण उनका हल निकलना चाहिए।

कृषि कानूनों में कुछ ऐसे प्रावधान थे जिनके कारण मंडी व्यवस्था बर्बाद हो सकती थी। कृषि एवं जिंस व्यापार कुछ निजी कंपनियों के हाथों में सिमट सकता था। कालांतर में किसान और उपभोक्ता, दोनों का नुकसान होता और देश में रोटी बहुत महंगी हो जाती।

कई मुद्दों को ध्यान में रखकर वोट करते हैं मतदाता

ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है कि जनता के मुद्दों का असर चुनाव पर पड़ता है। केवल कुछ मुद्दों के आधार पर ही चुनाव में हार-जीत होती है, यह कहना भी ठीक नहीं है। चुनाव में मतदाता बहुत सारी बातें ध्यान में रखकर वोट करते हैं। मुद्दों का असर तो पड़ेगा परंतु किस मुद्दे का कितना असर होगा, यह कहना बहुत मुश्किल है।

खेती घाटे का सौदा

किसानों को फसलों की उचित और लाभकारी कीमत नहीं मिल रही, लागत बढ़ रही है, खेती घाटे का सौदा बन चुकी है, अतः युवा खेती नहीं करना चाहते। दूसरे, बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है। बेरोजगार युवाओं को उचित रोजगार उपलब्ध करवाना, उनकी ऊर्जा को सकारात्मक रूप से देशहित में उपयोग करना देश के भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। तीसरे, अर्थव्यवस्था अलग-अलग कारणों से बहुत खराब स्थिति में है जिसका दुष्परिणाम महंगाई, बेरोजगारी आदि के रूप में सामने आ रहा है।

नकारात्मक विमर्श के लिए सभी जिम्मेदार

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सभी पार्टियां, सरकारें अपने-अपने तरीके और नीतियों से जनहित में काम करने का प्रयास करती हैं, जो जनता की नजरों में खरा उतरता है, उसे जनता दोबारा मौका देती है। जो ऐसा नहीं करते, उन्हें जनता चुनावों में बाहर कर देती है। मेरी राय से जनता की राय ज्यादा मायने रखती है, जनता सबकी राजनीति को हर पांच साल में तोल देती है। यही लोकतंत्र की खूबसूरती है। जहां तक नकारात्मक विमर्श की बात है तो इसके लिए सभी जिम्मेदार हैं। सरकार, राजनीतिक दल, आम जनता और मीडिया,सबकी जिम्मेदारी है। इसे रोकना होगा। परंतु अभिव्यक्ति की आजादी भी प्रभावित नहीं होनी चाहिए।

जैसा जनता चाहेगी, वैसा ही दिखना पसंद करूंगा

निजीकरण हर मर्ज की दवा नहीं है। हमारे देश में मिली-जुली अर्थव्यवस्था है। बैंक स्वस्थ अर्थव्यवस्था का आधार हैं। निजीकरण से अर्थव्यवस्था और समान धन-प्रवाह बाधित होगा। बैंकों तक आम आदमी की पहुंच बनी रहनी अत्यंत आवश्यक है। अन्यथा अर्थव्यवस्था का नुकसान तो होगा ही, आर्थिक असमानता और बढ़ेगी। अंत में उन्होंने यह पूछे जाने पर कि आप ​राजनीति में खुद को किस रूप में देखना चाहते हैं। इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि जैसा जनता चाहेगी। मैं खुद को उसी रूप में देखना पसंद करूंगा।

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