योगी के UP में नजूल संपत्ति विधेयक पर मची रार, कानून बनते ही करोड़ों की संख्या में बसे गरीबों के आशियानों पर चल जायेगा बुल्डोजर !
what is Nazool Land Bill : यूपी में नजूल की ज़मीन (Nazul land bill) से जुड़ा एक बिल योगी सरकार द्वारा पास कर दिया गया है, जिसके बाद न सिर्फ विपक्ष बल्कि उनकी खुद की पार्टी के भी कई नेता उनके खिलाफ हो गये हैं। नजूल जमीन के उस टुकड़े को कहा जाता है जिसका कोई वारिस नहीं होता। नजूल भूमि के पट्टे का अधिकार राज्य सरकार के पास होता है और और सरकार द्वारा अपने विवेक से ऐसी जमीन को किसी को लीज़ या पट्टे पर दिये जा सकता है। अब इसी नजूल की जमीन से जुड़े एक विधेयक का उत्तर प्रदेश में काफी विरोध हो रहा है। गौरतलब है कि इस विधेयक को जहां विधानसभा में मंजूरी मिल चुकी है, वहीं विधान परिषद में प्रस्ताव पास नहीं किया गया है।
नजूल भूमि विधेयक का विरोध करते हुए सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा है, "नजूल लैंड का मामला पूरी तरह से ‘घर उजाड़ने’ का फैसला है, क्योंकि बुलडोजर हर घर पर नहीं चल सकता है। भाजपा घर-परिवार वालों के खिलाफ है। जनता को दुख देने में भाजपा अपनी खुशी मानती है। जब से भाजपा आई है, तब से जनता रोजी-रोटी-रोजगार के लिए भटक रही है, और अब भाजपाई मकान भी छीनना चाहते हैं।"
भाकपा (माले) ने भी नजूल संपत्ति विधेयक 2024 को जनहित में वापस लेने की मांग की है। पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने शुक्रवार 2 अगस्त को जारी अपने बयान में कहा कि विपक्ष के विरोध के बीच विधानसभा से पारित होने के बाद विधेयक को विधान परिषद में विचारार्थ पेश किया गया, जहां से उसे प्रवर समिति को भेजा गया है। इससे उसके पास होने की प्रक्रिया कुछ समय के लिए भले ही टल गई है, मगर इसके कानून बनने की संभावना पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।
माले नेता ने कहा कि प्रदेश में नजूल भूमि पर बड़ी संख्या में कई पीढ़ियों से गरीब परिवार बसे हैं। यदि यह विधेयक कानून बना तो उनको बेदखल कर दिया जायेगा, उनके घरों पर बुलडोजर चलेगा। गरीबों के सिर से छत छीनने वाले इस विधेयक के बड़े दुष्परिणाम होंगे। विधेयक में विस्थापितों के लिए पुनर्वास व मुआवजे का कोई प्रावधान भी नहीं है।
राज्य सचिव ने कहा कि लखनऊ के अकबरनगर के विस्थापित परिवार बुलडोजर राज का दंश झेल रहे हैं। सरकार क्या उक्त विधेयक को कानून बनाकर अकबरनगर के मॉडल को पूरे प्रदेश में लागू करना चाहती है? क्या लोकसभा चुनाव का यही जनादेश है? यदि बुलडोजर नीति इतनी ही सही है, तो भाजपा को उत्तर प्रदेश में शिकस्त क्यों मिली? सरकार इस पर क्यों नहीं सोचती? आखिर यह विधेयक किसको लाभ पहुंचाने के लिए लाया गया है? नजूल भूमि के सार्वजनिक उपयोग की आड़ में उस पर बसे गरीबों को तबाह करने की इजाजत कतई नहीं दी जा सकती है। विधेयक पूरी तरह से सरकार वापस ले।
उत्तर प्रदेश में नजूल भूमि विधेयक को लेकर बीजेपी के सहयोगी सुभासपा अध्यक्ष और योगी सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने भी इसका विरोध करते हुए कहा कि नजूल की जमीन पर बसे गरीबों को न उजाड़ने को लेकर जब तक व्यवस्था नहीं होगी, तब तक ये विधेयक पास नहीं होगा।
गौरतलब है कि यूपी में करोड़ों की आबादी नजूल की जमीनों पर निवास करती है। ऐसे में यह विधेयक न सिर्फ एक बड़े विवाद का विषय बन गया, बल्कि उस आबादी के सर से छत छिनने का खतरा भी पैदा हो रहा है। इसी खतरे को भांपते हुए खुद योगी के विधायकों ने ही इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। यूपी विधानसभा में बहस के दौरान बीजेपी के प्रयागराज से विधायक हर्ष वाजपेयी और सिद्धार्थनाथ सिंह इसके विरोध में उठ खड़े हुए। एक अनुमान के मुताबिक करीब एक तिहाई प्रयागराज नजूल की जमीनों पर बसा हुआ है, ऐसे में इन लोगों के बेघर होने का खतरा पैदा हो गया था।
जानकारी के मुताबिक प्रयागराज शहर में करीब 71 लाख वर्गमीटर नजूल भूमि है और इन भूखंडों पर बड़ी तादाद में आम लोग रहते हैं। आंकड़ों के मुताबिक इनमें से 35 लाख वर्गमीटर पर काबिज लोगों ने जमीन फ्री होल्ड करा ली है यानी वे अब इसके स्वामी बन चुके हैं, इसके अलावा 1800 लोगों ने करीब 15 लाख वर्गमीटर जमीन फ्री होल्ड कराने के लिए आवेदन किया हुआ है। अगर यह विधेयक पास हो गया तो लोग जमीनें फ्री होल्ड नहीं करा पायेंगे।
हालांकि जिन लोगों ने जमीनों को फ्री होल्ड भी करा लिया है, खतरा उनके लिए भी टला नहीं है। इस विधेयक के कानून बनने पर सवाल खड़ा हो रहा है कि जिन लोगों ने नजूल की संपत्तियों को फ्री होल्ड करा लिया है, उनका क्या होगा? विपक्ष ने यूपी विधानसभा में यही सवाल उठाया कि विधेयक में इस बाबत स्पष्ट नहीं है कि जिन्होंने नजूल की संपत्ति को फ्री होल्ड करा लिया है और जो फ्री होल्ड का पैसा जमा कर चुके हैं, उनका भविष्य क्या होगा? विपक्ष दावा कर रहा है कि ये अधर की स्थिति प्रशासन को मनमानी करने का मौका देगी।