क्या UP में बदलेगा गठबंधन का समीकरण, 2009 की तरह तो नहीं बन रहा माहौल!
किसान आंदोलन से आरएलडी को पश्चिम यूपी में राजनीतिक संजीवनी मिली है, जिसका लाभ कांग्रेस उठाना चाहती है। फिर, कांग्रेस और आरएलडी दोनों ही सूबे में अपना सियासी वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। दोनों के भविष्य के लिए यूपी के चुनाव को बेहद अहम माना जा रहा है।
UP में सियासी समीकरण पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट
लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव ( Uttar Pradesh Assembly Election 2022 ) में समाजवादी पार्टी ( Smajwadi Party ) और राष्ट्रीय लोक दल ( Rashtriya Lok Dal ) के बीच गठबंधन लगभग तय माना जा रहा था, लेकिन अब इसमें नया मोड़ आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। करीब डेढ़ पूर्व गठबंधन को लेकर अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav ) और जयंत चौधरी ( Jayant Chaudhary ) की मुलाकात हुई थी। उस समय कहा गया था कि बहुत जल्द हम इसकी औपचारिक घोषणा भी कर देंगे। अब अंदरखाते सूचना यह आ रही है कि दोनों के बीच सीट शेयरिंग ( Seat Sharing ) के फॉर्मूले पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है। ऐसे में नवंबर 2021 में प्रियंका-जयंत की मुलाकात ( Priyanka Gandhi Vadra-Jayant Chaudhary Meet ) के संदर्भ में चर्चा जोरों पर है कि क्या यूपी में गठबंधन का समीकरण ( Political equations ) बदलेगा? कहीं 2009 वाला गठबंधन रिपीट तो नहीं होगा।
फिलहाल, सपा और राष्ट्रीय लोक दल ( SP-RLD ) के बीच सीट बंटवारे को लेकर बात अटकी हुई है। 7 सीटें ऐसी हैं, जिनपर दोनों ही दल दावा ठोक रहे हैं। आरएलडी कितनी सीटों पर लड़ेगी, इसे लेकर भी सहमति नहीं बन पा रही है। पहले कहा गया कि 21 नवंबर को सपा और आरएलडी के बीच गठबंधन का ऐलान हो सकता है। फिर बताया गया कि नवंबर महीने के अंत तक गठबंधन का ऐलान हो जाएगा, लेकिन तक उस दिशा में कोई प्रगति की सूचना नहीं है। इस बीच मेरठ रैली में अखिलेख और जयंत एक मंच पर दिखे थे। अलीगढ़ रैली में भी दोनों को एक साथ मंच पर होना था। लेकिन अखिलेश उसमें शामिल नहीं हुए थे।
चरथावल सीट पर दोनों के बीच ठनी
सात सीटों में से चरथावल सीट हर हाल में दोनों पार्टियां अपने पास बरकरार रखना चाहती है। कांग्रेस पार्टी छोड़कर सपा में आए हरेंद्र मलिक की सीट चरथावल के साथ ही कुछ सीटें ऐसी हैं जिन्हें दोनों ही दल अपने कोटे में देखना चाहते हैं। चरथावल सीट से सपा ने हरेंद्र मलिक के नाम को हरी झंडी दे दी है। जयंत चौधरी भी इस सीट से दावेदारी कर रहे हैं। सपा का रुख जानते हुए भी जयंत चौधरी ने 20 नवंबर को चरथावल में बड़ी रैली की। पंकज मलिक शामली से 2007 और 2012 में कांग्रेस के विधायक रहे हैं। उनके पिता हरेंद्र मलिक राज्यसभा में कांग्रेस के सांसद रह चुके हैं। दूसरी तरफ लोधी वोट पर भी सपा की पैनी नजर है। इसी कड़ी में हाल ही में सपा ने बसपा के नेता क़ादिर राणा को पार्टी में शामिल कर लिया है।
RLD की SP से डील, कांग्रेस पर निगाहें
राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी सपा प्रमुख अखिलेश यादव से 50 विधानसभा सीटें मांग रहे हैं। सपा, आरएलडी को 28 से 30 सीटें देने के लिए तैयार है। 2019 के लोक सभा चुनाव में रालोद को बसपा-सपा गठबंधन के बीच 3 सीट दिलाने में अखिलेश यादव ने अहम भूमिका निभाई थी। अब बात 10 सीटों पर अटकी है। जयंत कम से कम 40 सीटों पर सपा से गठबंधन कर सकते हैं। इस बात को लेकर दोनों के बीच मगजमारी जारी है।
प्रियंका से मुलाकात के बाद आई Twist
मगर को कहानी में ट्विस्ट तब आया जब कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और जयंत ( Priyanka Gandhi Vadra and Jayant Chaudhary ) की लखनऊ के एयरपोर्ट पर मुलाकात की। इसकी तस्वीर भी वायरल हो गई। मुलाकात इत्तेफाक थी या आयोजित इस पर सोशल मीडिया पर चर्चा भी हुई थी। इस बीच कांग्रेस ( Congress ) की ओर से भी जयंत चौधरी को लगातार गठबंधन के ऑफर मिल रहे हैं। विपक्षी दल ही नहीं, सत्ताधारी दल की ओर से भी जयंत चौधरी को साथ लाने की कोशिशों की चर्चा में है। बीजेपी का भी एक धड़ा जयंत की पार्टी के साथ गठबंधन चाहता है। तीन कृषि कानूनों की वापसी के बाद बीजेपी की कोशिश अब जयंत को साथ लाने की है। गृह मंत्री अमित शाह को पश्चिमी यूपी का प्रभारी बनाए जाने के बाद से इस चर्चा को और बल मिला है।
Congress को वेस्ट यूपी में मजबूत सहयोगी की तलाश
दरअसल, चौधरी अजीत सिंह के निधन की सहानुभूति और किसान आंदोलन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद की दावेदारी को मजबूत करने का काम किया है। ऐसे में रालोद की नजरें सहारनपुर , बागपत और मथुरा के बाहर बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, मेरठ , मुरादाबाद पर भी है। रालोद को लगता है कि मुस्लिम और जाट समेत उसको और हिंदू वोट भी मिलेंगे। अब पूरा मामला अखिलेश और जयंत की आगामी मुलाकात पर टिकी है। अभी दोनों के बीच मुलाकात तय नहीं हुई है। मगर प्रियंका से जयंत की मुलाकात ने गठबंधन की गणित में छौंक लगा दी है। अगर कांग्रेस के प्लेन में रालोद के नेता जयंत चौधरी उड़ेंगे तो उसके सियासी मायने भी निकाले जाएंगे। इससे इतर एक सच यह भी है कि पिछले दिनों दिल्ली से लखनऊ आते वक्त विमान में प्रियंका गांधी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच भी मुलाकात और बातचीत हुई थी। लेकिन प्रियंका गांधी और जयंत चौधरी के बीच मुलाकात ऐसे समय हुई है जब कांग्रेस यूपी में एक मजबूत सहयोगी के तलाश में है जिसके सहारे कांग्रेस की 2022 में चुनावी नैया पार लग सके। कांग्रेस के यूपी ऑब्जर्वर व छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने हाल ही में गठबंधन के लिए छोटे दलों को ऑफर दिया है। फिर किसान आंदोलन से आरएलडी को पश्चिम यूपी में राजनीतिक संजीवनी मिली है, जिसका लाभ कांग्रेस उठाना चाहती है। फिर, कांग्रेस और आरएलडी दोनों ही सूबे में अपना सियासी वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। दोनों के सियास भविष्य के लिए यूपी के चुनाव को बेहद अहम माना जा रहा है।
दीपेंद्र और जयंत की भी हो चुकी है मुलाकात
कांग्रेस ने दीपेंद्र हुड्डा को आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए स्क्रीनिंग कमेटी का सदस्य नियुक्त किया है। दीपेंद्र और जयंत चौधरी दोनों ही जाट समुदाय से आते हैं। उनके बीच रिश्ते भी अच्छे हैं। कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा और जयंत चौधरी के बीच हाल ही में कई बार मुलाकात हुई हैं। यूपी में जाट समुदाय को साधने लिए कांग्रेस ने दीपेंद्र हुड्डा को लगा रखा है। कांग्रेस की तरफ झुकने को लेकर आरएलडी संभावना इसलिए भी कि कि जयंत अंदर खाते 65 से 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। इनमें सबसे ज्यादा सीटें पश्चिम यूपी की हैं तो कुछ सीटें पूर्वांचल के इलाके भी प्रत्याशी को चुनाव लड़ाना चाहते हैं। इस बात पर सपा सहमत नहीं है। वहीं जयंत चौधरी ने दूसरे दलों के नेताओं को बड़ी संख्या में पार्टी में शामिल कर लिया है, वो सब टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। आरएलडी उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जहां जाट और मुस्लिम निर्णायक भूमिका में है। यही कारण है कि कांग्रेस ने पश्चिम यूपी के सियासी नजाकत को देखते हुए 2009 के लोकसभा चुनाव की तरह आरएलडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर काम शुरू कर दिया है। इसलिए जयंत चौधरी के साथ दीपेंद्र हुड्डा के बाद अब प्रियंका गांधी की मुलाकात के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।
2009 की तरह बन रहा UP का माहौल
बता दें कि 2009 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी यूपी में कांग्रेस को 15 सीटें दे रही थी, जिसके चलते गठबंधन पर बात नहीं बन सकी थी। इसके बाद कांग्रेस ने आरएलडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और पश्चिम यूपी से लेकर तराई बेल्ट की ज्यादा तर सीटें दोनों दलों के खाते में गई थी। कांग्रेस ने सपा के बराबर 22 सीटें जीतने में सफल रही जबकि आरएलडी 5 सीटें जीती थी। इस बार पश्चिम यूपी और तराई बेल्ट में किसान नाराज है। ऐसे में सूबे के बदले हुए सियासी और मौके की नजाकत को देखते हुए आरएलडी क्या सपा का साथ छोड़कर और कांग्रेस से हाथ मिलाएगी?