Uttarakhand Congress : रस्सी जल गई - बल नहीं गए कांग्रेसियों के, कहीं दे रहें इस्तीफे तो कहीं दी जा रही धमकियां

Uttarakhand Congress : करीब महीने भर के मंथन के बाद बीती रात पार्टी आलाकमान ने नए प्रदेश अध्यक्ष सहित नेता-प्रतिपक्ष व उपनेता सदन पद पर क्रमश: करण मेहरा, यशपाल आर्य, भुवन कापड़ी की नियुक्ति कर दी थी। बस यह नियुक्ति होने की देर थी, कांग्रेसियों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया.....

Update: 2022-04-11 14:00 GMT

Uttarakhand Congress : रस्सी जल गई - बल नहीं गए कांग्रेसियों के, कहीं दे रहें इस्तीफे तो कहीं दी जा रही धमकियां

सलीम मलिक की रिपोर्ट

Uttarakhand Congress : अपनी गुटबाजी के लिए कुख्यात उत्तराखंड कांग्रेस (Uttarakhand Congress) के लगातार दो बार की चुनावी हार के बाद भी तेवर हल्के नहीं पड़े। बची-खुची कांग्रेस (Congess) को भी मटियामेट करने पर उतारू कार्यकर्ताओं को अब नए प्रदेश अध्यक्ष सहित नेता-प्रतिपक्ष व उपनेता सदन पर की गई आलाकमान की नियुक्तियां रास नहीं आ रही। नियुक्तियां में गढ़वाल मंडल (Garhwal Region) की आरोप लगाते हुए तमाम कार्यकर्ताओं ने पार्टी से त्याग पत्र देना शुरू कर दिया है। वरिष्ठ नेता प्रीतम सिंह भी इसमें पीछे नहीं रहे। नेता-प्रतिपक्ष न बनाए जाने से नाराज उन्होंने गुटबाजी का आरोप लगाए जाने का बहाना बनाते हुए विधायकी छोड़ देने की धमकी दे दी है।

बता दें कि करीब महीने भर के मंथन के बाद बीती रात पार्टी आलाकमान ने नए प्रदेश अध्यक्ष सहित नेता-प्रतिपक्ष व उपनेता सदन पद पर क्रमश: करण मेहरा (Karan Mehra), यशपाल आर्य (Yashpal Arya), भुवन कापड़ी (Bhuvan Kapri) की नियुक्ति कर दी थी। बस यह नियुक्ति होने की देर थी, कांग्रेसियों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। सबसे पहले पूर्व में नेता-प्रतिपक्ष व प्रदेश अध्यक्ष जैसे जिम्मेदार पद संभाल चुके मौजूदा चकराता विधायक प्रीतम सिंह (Pritam Singh) मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) से 'शिष्टाचार मुलाकात' करने निकल लिए।


मुलाकात के फोटो पब्लिक डोमेन में डालकर कार्यकर्ताओं को इशारा दिया गया। जिसके बाद अगले ही दिन किसी न किसी बहाने बची हुई कांग्रेस को कमजोर करने का खेल शुरू हो गया। प्रदेश अध्यक्ष से लेकर नेता प्रतिपक्ष आदि की नियुक्ति में गढ़वाल मंडल की घोर उपेक्षा के आरोप लगाते हुए गढ़वाल कांग्रेस की जिला कार्यकारिणी के समस्त पदाधिकारियों ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया। जबकि इन कार्यकर्ताओं के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि विधानसभा चुनाव से पूर्व दोनो महत्त्वपूर्ण पद गढ़वाल के पास होने के बाद भी पार्टी की सबसे ज्यादा दुर्गति गढ़वाल में ही क्यों हुई ?

सोशल मीडिया में भी इस मुद्दे को लेकर बहस शुरू करते हुए पार्टी के निर्णय को लेकर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं। इसे पार्टी में क्षेत्रीय संतुलन का घोर उल्लंघन बताया जाने लगा। रामनगर विधानसभा के मालधन चौड़ में भी पूर्व ब्लॉक प्रमुख रामनगर बसंती महेन्द्र आर्य के आवास पर उनके समर्थकों की बैठक में भी आरोप लगाए गए कि रामनगर विधानसभा प्रत्याशी महेन्द्र पाल को हरीश रावत सहित यशपाल आर्य गुट ने हराने का काम किया। फिर भी हरीश रावत के दबाव में हाई कमान ने अंतिम समय में निर्णय बदल कर प्रीतम सिंह की जगह यशपाल आर्य को नेता प्रतिपक्ष बना दिया। जो मंजूर नही है।


दूसरी ओर वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने भी अपने को नेता-प्रतिपक्ष न बनाए जाने पर विधायकी से इस्तीफा देने की धमकी दे डाली। हालांकि प्रीतम ने यह धमकी विधानसभा चुनाव प्रभारी रहे अविनाश पांडेय की उस रिपोर्ट को गलत बताते हुए दी जिसमें प्रदेश में कांग्रेस की चुनावी हार को पार्टी गुटबाजी का नतीजा बताया गया है। पाण्डे की इस रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि प्रदेश कांग्रेस में हरीश रावत, प्रीतम सिंह समेत कई गुट बन गए। जिनकी गुटबाजी के चलते कांग्रेस सत्ता में नहीं आई। प्रीतम सिंह ने इस रिपोर्ट की आड़ लेते हुए विधायकी छोड़ने जैसा बड़ा बयान दिया है। इस रिपोर्ट को गलत बताते हुए प्रीतम सिंह ने साफ तौर पर किसी गुटबाजी से इंकार किया है। उनके अनुसार पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं थी और ना ही वो किसी गुटबाजी में शामिल रहे। उन्होंने कहा है कि कोई इस गुटबाजी को साबित कर दे तो मैं विधायकी से इस्तीफा दें दूंगा।

हालांकि प्रीतम इस्तीफे की धमकी गुटबाजी के आरोप की आड़ में दे रहे हैं। लेकिन पीछे का सच हर कोई जानता है। जैसे आज प्रीतम किसी भी गुटबाजी से इंकार कर रहे हैं, वैसे ही कांग्रेस के किसी भी बड़े नेता ने गुटबाजी को कभी भी खुलेआम स्वीकार करने का साहस नहीं दिखाया। जबकि सच्चाई यह है कि पूरे प्रदेश में चार कांग्रेस कार्यकर्ता भी चुन लिए जाएं तो वह भी तीन अलग-अलग गुटों के मिलेंगे। इस गुटबाजी को आलाकमान स्तर से भी कभी सख्ती से कुचलने का प्रयास नहीं किया गया। अलबत्ता "पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र" जैसा नाम देकर इसे उल्टे प्रोत्साहित ही किया गया। इसी का परिणाम है कि पार्टी लगातार दो विधानसभा चुनाव न केवल हारी है। बल्कि अब भी उसके कुछ विधायक भाजपा में शामिल होने की फिराक में हैं।

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