Uttarakhand News : 'मेरे पास माँ है' : अब हरीश रावत भी पहुंचे 'माँ' की शरण में, संस्मरण के सहारे भावनाओं को छूने का प्रयास

Uttarakhand News : साहित्य-कला-फिल्मों में माँ के विभिन्न पहलुओं को अलग-अलग रूप में चित्रित किया जाता रहा है। लेकिन भारतीय राजनीति में भी इन दिनों 'माँ' की विशेष चर्चा है।

Update: 2021-09-29 12:59 GMT

(उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने किया मां का स्मरण)

सलीम मलिक की रिपोर्ट

Uttarakhand News देहरादून। माँ की महिमा अपरंपार है। जीवन के हर क्षेत्र में इसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। सत्तर के दशक में आई ब्लॉक बस्टर सुपर हिट फिल्म 'दीवार' में जब शशि कपूर, अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachhan) की आंखों में आंखे डालकर जिस आत्मविश्वास से फ़िल्म का सर्वाधिक चर्चित संवाद "मेरे पास माँ है....!" बोल रहे थे, तब वह समुंदर से गहरी और पर्वतों से ऊंची माँ की महिमा के बीच में ही कहीं माँ की महिमा को प्रतिस्थापित कर रहे थे।

साहित्य-कला-फिल्मों में माँ के विभिन्न पहलुओं को अलग-अलग रूप में चित्रित किया जाता रहा है। लेकिन भारतीय राजनीति में भी इन दिनों 'माँ' की विशेष चर्चा है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) जिस तरह से जनभावनाओं को छूने के लिए अपनी 'माँ' की गरीबी का जिक्र करते हैं, कुछ उसी तर्ज पर चलते हुए प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस दिग्गज नेता हरीश रावत (Harish Rawat) ने भी अब 'माँ' की शरण ले ली है। मोदी और रावत की 'माँ' में इतना ही अंतर है कि माँ के जीवित होने के कारण मोदी को यह सुविधा प्राप्त है कि वह जब चाहे तब माँ को नोटबन्दी की लाइन में लगाकर तथा यदा-कदा उनके साथ खाना खाकर इस प्रयोग को जीवंत रूप दे देते हैं। लेकिन माँ की मृत्यु के हरीश रावत को अब केवल संस्मरणों का ही सहारा है, इसलिए वह उसी के सहारे आसन्न विधानसभा चुनाव से पूर्व अपनी 'माँ' को याद कर रहे हैं।

'उत्तराखंडियत, हरदा की कहानियां' नाम के चलाये जा रहे एपिसोड के ताजा संस्करण में हरीश रावत (Harish Rawat) ने अपने बचपन की गरीबी और पिता की मौत के पश्चात उनके अंतिम संस्कार के लिए जुटी माँ (Mother) के संघर्ष की गाथा को याद करते हुए यादों का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है।

चौथी माँ के बेटे के रूप में रावत ने अपने संस्मरणों के दौरान अपने गांव, घर, बचपन, गरीबी, परिवार, गरीबी के चलते पिता की मौत के बाद उनके सम्मानजनक अंतिम संस्कार के लिए बैचेन माँ, मामा की मदद, परिवार का भाईयों से अलग होना जैसे पहलुओं का चित्रण कर अपने आप को अपने बचपन से जोड़ने की कोशिश की है। सोशल मीडिया पर जारी इस वीडियो के माध्यम से हरीश रावत (Harish Rawat) ने जहां अपने आप को पहाड़ों की पहाड़ जैसी ज़िन्दगी से जोड़ते हुए पहाड़ों के दुःख-तकलीफों का जिक्र किया है वहीं उन्होंने बताया कि ताक़त (सत्ता) मिलने के बाद काम करने की प्रेरणा भी उन्हें उन्हीं विषम हालातों से मिलती हैं, जिनसे जूझते हुए वह यहां तक पहुंचे हैं।

रावत के समर्थकों द्वारा तेजी से वायरल (Viral Post) किये जा रहे 'हरदा की कहानियों' के इन वीडियो एपिसोड का यह क्रम यहीं तक सीमित नहीं रहने वाला, आने वाले एपिसोड में उनके अपनी माँ को धोखे देने जैसे कई बालसुलभ क़िस्से भी सामने आने वाले हैं।

सोशल मीडिया पर वीडियो जारी होने के बाद इसे विधानसभा चुनावों से पहले रावत का भावनात्मक स्ट्रोक बताया जाने लगा है। लेकिन खुद हरीश रावत इससे इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते। बकौल हरीश रावत जब वह उत्तराखंडियत को लेकर अपने भाव प्रकट करते हैं तो उन्हें अपनी माता की बहुत याद आती है। मेरी माँ ने मेरे लिए इतने संघर्ष किये हैं कि उन्हें किसी भी हाल में भुला पाना नामुमकिन है। माँ के संघर्ष की याद के बिना मेरी उत्तराखंडियत की यात्रा अधूरी है। यह मेरे अकेले घर की ही नही बल्कि उत्तराखंड के अधिकांश घरों की कहानी है।

विधानसभा चुनाव  (Uttarakhand Assembly Election 2022) से पहले कई मोर्चों पर एक साथ बैटिंग कर रहे हरदा के समर्थक इस 'भावनात्मक स्ट्रोक' से खासे उत्साहित हैं। आने वाले दिनों में इस भावनात्मक कार्ड की काट के लिए प्रदेश की भाजपा सरकार से जुड़े नेताओं के भी ऐसे मर्मस्पर्शी किस्से आने लगे तो हैरानी की बात नहीं।

Tags:    

Similar News