Varansi News: 'औरंगाबाद हाउस' की चौथी पीढ़ी ने कांग्रेस का साथ छोड़ थामा TMC का हाथ
Varansi News: अचानक बदले इस राजनीतिक परिदृश्य ने सभी को हैरान कर रखा है कि आखिरकार ऐसा क्या हुआ कि जिस चौथी पीढ़ी के पूर्वजों ने कांग्रेस की नींव रखे जाने के बाद कांग्रेस को सदैव मजबूत बनाने का काम किया हो, आज उसी परिवार के सदस्य ने इससे नाता तोड़ लिया?
संतोष देव गिरि की रिपोर्ट
Varansi News: पिछले 100 वर्षों से अधिक समय तक कांग्रेसी घराने से गहरा नाता रखने वाले वाराणसी के 'औरंगाबाद हाउस' (Aurangabad House) घराने की चौथी पीढ़ी ने आखिरकार कांग्रेस (Congress) का साथ छोड़ दिया है। इससे कांग्रेस को न केवल गहरा झटका लगा है, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के बिखरने के रूप में भी इसे जोड़कर देखा जा रहा है। वाराणसी (Varansi) का औरंगाबाद हाउस कोई मामूली हाउस नहीं है देश और प्रदेश की राजनीति में गहरी पकड़ रखने के साथ-साथ इस हाउस की पहचान दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के दूसरे हिस्सों तक भी बनी हुई है।
बात जब इलाहाबाद (Allahabad) के आनंद भवन की होती है तो बरबस ही जुबान पर वाराणसी के औरंगाबाद हाउस का भी नाम आ जाता है। आखिरकार आए भी क्यों नहीं, इसी भवन से निकलकर मुख्यमंत्री भवन तक का सफर तय करने वाली हस्तियों से लेकर रेल मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री तक का भी इस औरंगाबाद हाउस का गहरा नाता रहा है। हाल ही में औरंगाबाद हाउस के चौथी पीढ़ी से ताल्लुकात रखने वाले एवं कांग्रेस छोड़ कर पूर्व विधायक ललितेश पति त्रिपाठी ने अपने पिता पूर्व एमएलसी राजेशपति के साथ तृणमूल कांग्रेस (TMC) में शामिल हो गए हैं। जिन्हें स्वयं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने सदस्यता दिलाई है।
अचानक बदले इस राजनीतिक परिदृश्य ने सभी को हैरान कर रखा है कि आखिरकार ऐसा क्या हुआ कि जिस चौथी पीढ़ी के पूर्वजों ने कांग्रेस की नींव रखे जाने के बाद कांग्रेस को सदैव मजबूत बनाने का काम किया हो, आज उसी परिवार के सदस्य ने इससे नाता तोड़ लिया? हालांकि इसके पीछे 'औरंगाबाद हाउस' घराने की चौथी पीढ़ी की कांग्रेस में लगातार हो रही उपेक्षा, उत्तर प्रदेश नेतृत्व से सामंजस्य का ना होना बताया जा रहा है, लेकिन असल वजह कुछ और ही बताई जा रही है जो सीधे-सीधे कांग्रेस नेतृत्व से जुड़ा हुआ है। मनमुटाव की कहानी भी वहीं से शुरू हुई है। हालांकि इस मुद्दे पर काफी कुरेदे जाने के बाद भी न तो कांग्रेस नेतृत्व कुछ बोलने को तैयार है और ना ही औरंगाबाद हाउस परिवार के लोग।
गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय कमलापति त्रिपाठी (Kamlapati Tripathi) वाराणसी के औरंगाबाद हाउस से चलकर उत्तर प्रदेश कि राजधानी लखनऊ और देश की राजधानी दिल्ली तक दखल रखने वाले कुशल राजनीतिक कहे जाते रहे हैं। जिनके लगाव पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लगाए इंदिरा गांधी तक रहे हैं। कांग्रेस से औरंगाबाद हाउस खासकर के पंडित कमलापति त्रिपाठी का राजनैतिक ही नहीं बल्कि पारिवारिक रिश्ता भी मजबूत रहा है। यही कारण रहा है कि इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने उन्हें एक समय कार्यकारी अध्यक्ष भी कांग्रेस का बनाया था। तमाम उतार-चढ़ाव के बाद भी लोकपति त्रिपाठी (Lokpati Tripathi) का कांग्रेस से नाता बना रहा है जिसे उनके पुत्र लोकपति त्रिपाठी एवं पौत्र राजेश पति त्रिपाठी ने भी बरकरार रखा, लेकिन कालांतर में कांग्रेस में बढ़ रही कॉलोनी यह पारिवारिक रिश्ता तोड़ दिया है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं रेल मंत्री तक का सफर तय करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कमलापति त्रिपाठी के पुत्र लोकपति त्रिपाठी 'औरंगाबाद हाउस' घराने के दूसरी पीढ़ी के होने के साथ स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं। पूर्व मंत्री लोकपति त्रिपाठी के पुत्र राजेश पति त्रिपाठी कांग्रेस से एमएलसी रहे हैं जबकि राजेश पति के पुत्र एवं औरंगाबाद हाउस के चौथी पीढ़ी के ललितेश पति त्रिपाठी पहली दफा मिर्जापुर के मड़िहान सीट से वर्ष 2012 -17 के बीच विधायक रहे हैं। इसके बाद के हुए विधानसभा चुनाव में यह भाजपा (BJP) के रमाशंकर सिंह पटेल जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार में ऊर्जा राज्य मंत्री भी हैं से चुनाव हार गए थे। विधानसभा चुनाव की भांति लोकसभा चुनाव में भी भाग्य आजमा चुके ललितेश पति त्रिपाठी को पार्टी संगठन में चल रही गुटबाजी के चलते पराजय का भी सामना करना पड़ा था।
.....तो क्या उत्तर प्रदेश में ममता की राजनैतिक जमीन तैयार करेंगे ललितेश पति
कांग्रेस छोड़कर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के नेतृत्व वाले तृणमूल कांग्रेस (TMC) में शामिल होने वाले पिता-पुत्र एवं राजेश पति, ललितेश पति उत्तर प्रदेश में होने जा रहे 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए ममता बनर्जी के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करेंगे। जानकार बताते हैं कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी दोनों पिता-पुत्र को ब्राह्मण चेहरे के रूप बनाने का काम करेंगी, हालांकि इसमें ममता दीदी को कितनी सफलता मिलेगी यह अभी कह पाना मुश्किल होगा। लेकिन राजनीति के जानकारों की माने तो फिलवक्त यूपी में ममता दीदी के करिश्मे का कोई असर होने वाला नहीं है जहां तक चर्चा है समाजवादी पार्टी से उनके दल के गठबंधन की तो अभी वह भी दूर कहीं ढोल दिखलाई दे रहा है।
कहा जा रहा है कि यूपी में तृणमूल कांग्रेस (Congress) और सपा (Samajwadi Party) का गठबंधन होगा। सपा दो सीट तृणमूल कांग्रेस के लिए छोड़ेगी। जिसमें से एक सीट ललितेश पति त्रिपाठी लड़ेंगे, वह सीट मड़िहान और मझवांं दोनों में से एक हो सकती है वह भी ललितेश पति त्रिपाठी के पसंद के मुताबिक। हालांकि इसमें भी पेंच फंसता हुआ नजर आ रहा है, क्योंकि यदि ऐसा होता है तो भी ललितेश पति त्रिपाठी को सपा के ही लोगों के विरोध का सामना करना पड़ेगा। समर्थन तो उन्हें कम बल्कि भितरघात का सामना करना पड़ जाएगा। वजह बताया जा रहा है टिकट को लेकर समाजवादी में खुद ही अंदर ही अंदर रार मची हुई है एक दूसरे को पटखनी देकर आगे निकलने को लेकर।
कांग्रेस छोड़कर बड़े जोर शोर से अपने पिता पूर्व एमएलसी राजेश पति त्रिपाठी के साथ कोलकाता में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हाथों टीएमसी की सदस्यता लेने वाले पिता-पुत्र राजेश पति एवं ललितेश पति की पहचान उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में सशक्त एवं मजबूत ब्राह्मण चेहरे के रूप में है। जो कई पीढ़ियों से कांग्रेस के साथ जुड़ा रहा है, लेकिन कालांतर में यह साथ टूट चुका है। ऐसे में इस पिता पुत्र को सहेजने के लिए सभी दल लालाईत बताए जा रहे हैं।
खासकर के भाजपा भी इन्हें अपने खेमे में करने के लिए आतुर रही है, लेकिन बात नहीं बनी है बात बनी थी है तो कोलकाता (Kolkata) में जाकर अब इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं यह तो ममता और ललितेश पति ही बता सकते हैं। लेकिन इसको भी लेकर अंदर खाने में कई तरह की चर्चाएं हो रही है। आने वाले विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सरजमी खास करके पूर्वांचल में ब्राह्मण चेहरे के रूप में पिता-पुत्र की जोड़ी ममता बनर्जी के लिए क्या गुल खिला सकती है यह अभी-अभी कह पाना मुश्किल है लेकिन ममता बनर्जी का दामन थाम कर पिता-पुत्र खासकर के पुत्र ललितेश पति त्रिपाठी खासे उत्साहित नजर आते हैं। वह कुछ कहने से परहेज करते हैं लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि समय आने पर सब कुछ सामने होगा।
सादगी, ईमानदारी के लिए जाना जाता है यह परिवार
औरंगाबाद हाउस की चौथी पीढ़ी घराने के ललितेश पति त्रिपाठी (Lalitesh Pati Tripathi) की छवि एक ईमानदार, सादगी भरे वह भी मृदुभाषी स्वभाव का रहा है। अपनी सादगी के लिए वह अपने पूरे विधानसभा क्षेत्र में विख्यात हैं। आम हो या खास हो सभी के जुबान पर उनके नाम होते हैं। पहली बार विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने ललितेश पति त्रिपाठी ने कभी भी सुरक्षा प्रहरी नहीं लिया। इसके पीछे उनका मत था कि जब सभी उनके हैं तो फिर सुरक्षा प्रहरी का उनके साथ होने का क्या मतलब?
यह बहुत कम ही लोगों को पता है कि ललितेश पति त्रिपाठी को हिंदी बोलना बहुत कम ही आता है। चुनाव से पूर्व उनके पिता पूर्व एमएलसी लोकपति त्रिपाठी भी इसको लेकर काफी सशंकित हुआ करते थे, लेकिन बदलते समय के साथ न केवल पूर्व विधायक ललितेश पति त्रिपाठी हिंदी में परिपक्तय हैं, बल्कि हिंदी साहित्य में भी गहरी रुचि रखते हैं। इस बात को बल प्रदान करता है उनका वह फेसबुक वॉल, जिस पर उन्होंने कांग्रेस और संगठन में मिले दायित्व को त्यागने के बाद टिप्पणी की थी जो कुछ इस प्रकार से थी-
"जिधर भी जाता हूँ, उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ,
जड़ता को तोड़ने के लिए भूकम्प लाओ।
घुप्प अँधेरे में फिर अपनी मशाल जलाओ।
राष्ट्रकवि दिनकर जी की जन्मतिथि पर उनकी इन्हीं पंक्तियों के साथ कांग्रेस (Indian National Congress) की प्राथमिक सदस्यता से शीर्ष नेतृत्व के सादर इस्तीफ़ा देता हूं। 100 से अधिक वर्षों की प्रतिबद्धता से विमुख होना बहुत ही भावनात्मक है परंतु वर्तमान परिस्थितियों में, जब पार्टी के लिए खून पसीना एक करने वाले परिवारों, दलगत आंदोलन के लिए लाठी खाने वाले कार्यकर्ताओं का सम्मान नहीं हो रहा, मेरा जमीर किसी पद पर बने रहने की गवाही नहीं देता।"
कांग्रेस छोड़ने के बाद जब उन्होंने अपने पिता के साथ ममता बनर्जी का दामन थामा तो कुछ इन शब्दों में अपने भावनाओं को अपने फेसबुक वॉल पर प्रकट किया- 'जो शांति और प्रेम की विचारधारा हमें विरासत में मिली है, जो समभाव के संस्कार हमें दिए गए हैं, उनसे बिना समझौता किए जनसेवा में स्वयं को समर्पित कर समाज की प्रगतिशीलता सुनिश्चित करना वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आदरणीय ममता बनर्जी जी के नेतृत्व में ही संभव है। खेला होबे!'
सोशल साइटों पर ललितेश पति को मिल रही है तीखी प्रतिक्रियाएं
सोशल मीडिया पर खासे सक्रिय रहने वाले पूर्व विधायक एवं कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष ललितेश पति त्रिपाठी इन दिनों खुद ममता बनर्जी का दामन थाम कर तीखी प्रतिक्रियाओं से दो-चार हो रहे हैं। इनके फेसबुक वॉल पर गौर किया जाए तो इनके इस निर्णय को समर्थन प्रदान करने वालों से कहीं ज्यादा विरोध करने वाले लोगों का है जिनमें ज्यादातर इनके प्रशंसक नसीहत भरे शब्दों से इन्हें जवाब दे रहे हैं। इनके इस निर्णय से हतोत्साहित भी नजर आते हैं तो कुछ इनके निर्णय को मौन स्वीकृति भी प्रदान करते हुए दिखते हैं।